बूढ़े पिता की कमज़ोर होती स्मृति से परेशान होता बेटा एक शाम अनजान बूढ़े आदमी से मिलता है। स्वप्न और स्मृतियाँ एक दूसरे में मिल कर तीसरा यथार्थ रचने लगती हैं।
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स्मृतियाँ
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बूढ़े पिता की कमज़ोर होती स्मृति से परेशान होता बेटा एक शाम अनजान बूढ़े आदमी से मिलता है। स्वप्न और स्मृतियाँ एक दूसरे में मिल कर तीसरा यथार्थ रचने लगती हैं।