भाग-1 * पिता के दस्तानों में जहाँ जहां से उन उधड़ गया था, वंका अपने पीले दस्तानों से उन्हें ढकने की कोशिश करने लगा पर कोई ना कोई छेद खुला ही रह जाता *
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मक़सूद मास्टर को लगा जैसे कपड़ा सीते सीते वो खुद को भी सीते जा रहे हैं।सुबह आँगन में बिल्ली के छोटे छोटे बच्चे यहाँ से वहाँ कूद रह रहे थे! वह पक्षी जैसे…
“निस्वार्थ जीव अपना जीवन त्रासदियों में ही बिताते हैं”, चाबुक से पीटते एक घोड़े को देख़ कैसे एक महान दार्शनिक का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया, उस भाव के…
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गर्मियों में जब घर के सभी लोग दोपहर का भोजन करके ऊँघने लगते थे, हम बच्चे चुपके से छत की ओर भाग आते थे। उस दिन छत पर तीन बरनियाँ रखी हुयी थी, तीनों में…
पिता को अपने आज में शब्दों के सहारे खोजते तीन कवि। क्या ऐसा कभी हुआ है कि आप अपने कामकाजी शहर से कुछ दिनों के लिए घर लौटे हों और आपके पिता एक कहानी…
एक निर्देशक की आँखो-देखी
गुलदस्ते में फूल अब भी ज़िंदा थे, सी-सी की कजरी आँखों में नारंगी और पीले चमकते दिखे, एक पल के लिए उसे लगा उसके पीछे साँप हैं, फिर समझ आया उसकी ही पूँछ…
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भाग 2। वंका और उस जोकर की आँखों के बीच में जो जगह थी वहां समय थम गया था और उस थमे हुए समय में वंका के भीतर एक ही दिशा में उसकी सारी इच्छाएं दौड़ रही थी।
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