सिनेमा घर “नयी दुनिया” था या “दैनिक भास्कर” ठीक-ठीक याद नहीं अखबार के कोने में छपे कूपन बहुत ही एहतियात से काट के रखे थे दीदी ने
ये जो"कुछ" है ना वो बहुत कुछ है, उसकी भी एक दुनिया है।
लाजवाब, अपने पूराने दिनों में जाना कितना सुखद लगता है। 👏👏👏💐
ये जो"कुछ" है ना वो बहुत कुछ है, उसकी भी एक दुनिया है।
लाजवाब, अपने पूराने दिनों में जाना कितना सुखद लगता है। 👏👏👏💐