6 Comments

तीन नज़रियों को छाते में समेटता लेख👍😊👌👏

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:)

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मुझे अपने बचपन के छाते कि याद दिला गई है ये कविता, जो बार बार अपने जोड़ से टूट जाता था और मैं बार बार उसे जोड़ने कि कोशिश करता था।

बहुत सारा प्यार आपको💐

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:)

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पुराने छाते की मुठिया याद आ गई.! बचपन मे में तेज बरसाती हवाओं में छाते की मुठिया को हथेलियों से साधने की निरन्तर नन्ही कोशिश होती थी।

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वाह! क्या बात है दा। धन्यवाद

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