कंडक्टर शाहरुख़ की नींद
एक जानलेवा वायरस सब कुछ रोक देगा, हमेशा चलते रहने वाली "कमला बस" भी रुक जायेगी। मिलते हैं कंडक्टर शाहरुख़ से
कंडक्टर शाहरुख का बस नाम शाहरुख़ था, चाल पूरी सलमान की थी।दुबले पतले हाँथों में नीला ब्रेसलेट झूलता रहता था, बीच से माँग निकालता था और भीड़ से भरी बस में टिकट काटते हुए ऐसे मूव करता था जैसे चल नहीं रहा हो, ग्लाइड कर रहा हो। आने जाने वालों से ऐसे बात करता था जैसे उनका रिश्तेदार हो, कभी एक पैसा इधर से उधर नहीं, सबका बाक़ी छुट्टा उनकी जेब में पहुँच ही जाता था।
सुबह ५ बजे से शाम ५ बजे तक कमला नाम की बस में, उस्ताद और शाहरुख़ सैकड़ों लोगों को बैठा कर उनकी मंज़िल तक पहुँचाते थे। उस्ताद घाट पे ऐसे गाड़ी काटते थे जैसे बस घबराकर नहीं, बल्कि झूमते हुए, लहराते हुए ख़तरनाक मोड़ों को पार किए जा रही हो।आज अपनी कंडक्टर सीट से आख़री सीट तक पहुँचते हुए शाहरुख़ ने रियलाईज़ किया, मास्क पहनने वालों की तादाद बढ़ गयी है।
डेली अपडाउन करने वाले सरकारी टीचर के डबल मास्क को देख़ उन्हीं के सामने रुक गया
“चीन का वाइरस अपने घर तक आ गया है क्या मास्टर ज़ी ?” मास्टर जी ने हाँ में सर हिलाया।
शाहरुख़ टिकट काटकर लौटा और दरवाज़े से लगी सीट की रॉड पे टिक कर खड़ा हो गया, छोटी ऊँगली, सहारे के लिए दरवाज़े की चिटकनी के ऊपर टिकायी और ज़रा देर के लिए आँखें बंद कर ली। उस्ताद ने कसेट का साइड बदला और “मैंने प्यार किया” का “दिल दीवाना बिन सजना के माने ना” बस में गूंजने लगा।
सुबह की पहली और आख़री ट्रिप में दस- पंद्रह मिनट की झपकी ऐसे ही लेता था शाहरुख़। अचानक पीछे से किसी के चिल्लाने की आवाज़ आयी “गाड़ी रोको, गाड़ी रोको, मास्टर जी बेहोश हो गए हैं”
शाहरुख़ तुरंत पीछे भागा, लोग घबरा के उठे और बस के एक तरफ़ सिमट गए, सबने अपनी मुँह नाक ढाँक ली थी, उस्ताद ने ब्रेक लगाया और लोग बस से बाहर निकल आए।
बस में सिर्फ़ शाहरुख़, उस्ताद और मास्टर ज़ी थे जो साँस नहीं ले पा रहे थे। शाहरुख़ मास्टर ज़ी के शर्ट की बटनें खोलने लगा, उस्ताद ने एक रुमाल उसकी ओर फेंका, शाहरुख़ ने उस्ताद की ओर देखा, उस्ताद ने भी अपना मुँह बाँध रखा था।
उस रात बस के अंदर जब उस्ताद शराब की बोतल खोल ही रहे थे तब शाहरुख़ ने पूछा
“उस्ताद, मास्टर जी बच जाएँगे ना?”
उस्ताद ने गम्भीरता के साथ दोनो हाथ ऊपर कर दिए
“अस्पताल तो पहुँचा दिया, बाक़ी वाहेगुरु के हवाले”
“ 'लॉक डाउन' मतलब सही में सब 'लॉकडाउन' हो जाएगा?”
उस्ताद ने ना में सर हिलाया, “ ऐसा कभी हो सकता है की मार्केट बंद हो जाएँ, गुरुद्वारे, मंदिर, मस्जिद बंद हो जाएँ, दफ़्तर बंद हो जाए, पूरा देश बंद हो जाएगा। अरे देश की छोड़, तू बता कमला एक जगह खड़ी रहेगी! वो तो खूद से निकल लेगी इत्ता रोकोगे तो”
शाहरुख़ हंस पड़ा।
अगले दिन जब शाहरुख़ सुबह - सुबह, गुलाबी थैली में टिफ़िन मटकाता हुआ उस्ताद के घर के पीछे वाले मैदान में पहुँचा, जहां बस को खड़ा किया जाता था, शाहरुख़ बस के अंदर घुसा और गणपति को अगरबत्ती घुमाने लगा, उस्ताद घर से बाहर निकले और शाहरुख़ को नीचे बुलाया। शाहरुख़ ने खिड़की से ही गर्दन निकाल कर पूछा “क्या हुआ?”
“ कल रात फोन आया था, कमला यहीं खड़ी रहेगी अगले चौदह दिन”
“ तो फिर लोगों को कौन लेकर जाएगा”
“ लॉकडाउन हो गया है, सब घर में रहेंगे, घर जा तू भी, अम्मी और जैनब का ख़याल रख।”
“कमला यहीं खड़ी रहेगी?” उस्ताद ने हाँ में सर हिलाया।
“देश बंद हो जाएगा फिर तो उस्ताद”
“देश बंद हो गया आज से ”
“पैसे हैं कि नहीं तेरे पास”
“ज़ैनब ने बचा कर रखे होंगे।”
शाहरुख़ दांतों के बीच बीड़ी फ़साये चल पड़ा।
घर लौटते - लौटते शाहरुख़ ने पहली बार अनुभव किया की ख़ाली बाज़ार कैसे महसूस होते हैं, बिज़ी चौराहों की सड़कें सूनी पड़ी हो तो वहाँ कौन सी आवाज़ें होती हैं। पुलिस की गाड़ी देख़ शाहरुख़ पेड़ के पीछे छुपा और देखा कि जितने लोग बाहर निकले हुए थे, सभी को पुलिस ने रोक रखा था। सिर्फ़ मेडिकल की दुकानें खुली हुयी थी। सभी पुलिस वालों ने मास्क पहन रखा था। शाहरुख़ ने अपना गंदा रुमाल निकाला और नाक पे बाँध लिया।
घर पहुँचते ही ज़ैनब शाहरुख़ को देख़ बोल पड़ी “कह रही थी मैं, मत जाइए, सब बंद है, आप सुनते ही नहीं।”
शाहरुख़ पलंग पर बैठ गया, ज़ैनब एक गिलास पानी लेकर पहुँची, और शाहरुख़ के सामने खड़े रही
“क़ुछ शरम है तुझे, आँठवा महीना है उसका, पानी नहीं पी सकता खुद से लेकर ”
शाहरुख़ ने अम्मी की तरफ़ देखा “अम्मी, मैंने तो पानी माँगा ही नहीं, ये खुद ले आयी” ज़ैनब मुस्कुरा रही थी क्योंकि शाहरुख़ को बेवजह अम्मी से डाँट पड़ रही थी।
दोपहर में जब शाहरुख़ ने पूछा “खाने में क्या है”, ज़ैनब बस उसकी तरफ़ देखते रही, शाहरुख उसकी नज़र समझ गया।
ज़ैनब ने निकाह के लिए हामी ही इसलिए भरी थी क्योंकि लड़के का नाम शाहरुख़ था। निकाह के बाद पता चला की शाहरुख़ सलमान का फ़ैन है तो वो खींज गयी उसने साफ़ - साफ़ कह दिया “जब तक बाहें फैला कर नहीं खड़े होगे शाहरुख़ जैसे, हाँथ भी नहीं लगाने दूँगी”
जब भी शाहरुख़ को ज़ैनब से कोई पर्मिशन लेनी होती थी तो उसे पोज़ करना पड़ता था। जैसे थाली में मटन उसके लिए तभी परोसा जाता था जब वो ज़ैनब के लिए बाहें फैला कर खड़े हो। जैसे वो अभी खड़ा है।
ज़ैनब मन ही मन बहुत खुश थी की शाहरुख़ उसके साथ ही समय बिताएगा।खाना खाकर शाहरुख़ को अम्मी ने छत पे धुले हुए कपड़े डालने भेजा, वो साथ ही मटन की हड्डियाँ भी ले आया।छत पर चढ़ कर उसे लगा कि वो सालों बाद अपने ही घर की छत पर चढ़ रहा है। सीढ़ियों के बग़ल में पुराने दरवाज़ों और लकड़ी के टुकड़े रखे थे, पुराना गैस स्टोव और अब्बू के जूते।
बंडल में गिनती की बीड़ियां बची थी, शाहरुख़ ने एक सुलगायी और मोहल्ले के ख़ाली पन को देखने लगा।
सब बंद था। बस कुत्ते थे, जो आज़ाद थे। चार - पाँच कुत्तों का झुंड शाहरुख़ की उँगलियों में दबी हड्डियों को देख़ उत्सकता से यहाँ से वहाँ कूदने लगा, शाहरुख़ ने सारी हड्डियाँ लहरा दी और बीड़ी फेंक कर नीचे लौटा।
ज़ैनब नीचे गद्दे पर लेटी हुयी थी, अम्मी ऊपर पलंग पर, शाहरुख़ ने कभी अपनी पत्नी और माँ को दोपहर में सोते हुए नहीं देखा था, वो एक सेकंड के लिए वहीं रुक गया। अम्मी की नींद लग गयी थी, खिड़की से गिरती रोशनी में ज़ैनब का चेहरा सुनहरा दिख रहा था।
“दोपहर में सोते हुए कोई इतना सुंदर कैसे लग सकता है”, ज़ैनब के पैरों पर चादर डालने शाहरुख़ नीचे झुका तो ज़ैनब ने उसकी ओर देखा, उसे पास बुलाया, उसकी आँखों में घूरते हुए कहा “बच्चा होने के बाद अगर तुमने बीड़ी नहीं छोड़ी तो याद रखना” शाहरुख़ मुस्कुरा दिया और ज़ैनब के बग़ल में बैठ गया। “तुम ऊपर क्यों नहीं सोती? नीचे लेटने में तकलीफ़ होती होगी?” ज़ैनब ने आँखें मूँदे मूँदे ही जवाब दिया “होती है, पर अम्मी जितनी नहीं होती, उनके तो घुटने दिन भर दुखते हैं, नीचे लेटेंगी तो उठ ही नहीं पाएँगी।”
शाहरुख़ ज़ैनब के बग़ल में लेट गया, ज़ैनब ने चादर के अंदर शाहरुख़ का हाँथ पकड़ा और सो गयी।
“ठंडे क्यों है तुम्हारे हाँथ इतने”
“खाना खाने के बाद मैं बरफ उठा लेता हूँ”
ज़ैनब ने नाखूनों से उसकी हथेली दबा दी और फिर सो गयी।
शाहरुख़ बग़ल में लेटा रहा, उसके कानों में घड़ी की टिक टिक साफ़ सुनायी देती रही। उसने आँखें मूँद ली पर नींद कहीं बहुत दूर थी।
रात में ज़ैनब को बार बार उठना पड़ता था, शाहरुख़ उसे सहारा देकर उठाता, पीछे गूसलखाने तक ले जाता, उसे पानी देता फिर वो सो जाती।
“नींद डिस्टर्ब हो रही है?”
“नींद आ ही नहीं रही”
“मेरे तरफ़ करवट कर के सो जाओ, नींद आ जाएगी”
पूरी रात शाहरुख़ ज़ैनब के गालों को देखता रहा।
हर दिन केसेज़ बढ़ते ज़ा रहे थे, एक दो क़रीबियों के घर से भी बुरी खबरें आयी, मोहल्ले में अजीब सी उदासीनता पसरी हुयी थी। शाहरुख़ ने टीवी पर न्यूज लगाना बंद कर दिया, चारों ओर हताश ही थी। ज़ैनब और अम्मी के साथ शाहरुख़ टीवी पर रामायण महाभारत देख लिया करता था।
ज़ैनब अब हर रात शाहरुख़ को थपकियाँ देती थी, पर कुछ देर में वो खुद ही सो जाती, उसके सोते ही शाहरुख़ की आँख खुल जाती। सड़कों पर जब भी एंबुलेंस की साइरन सुनायी देते तो अम्मी अल्लाह से लोगों को हौसला देने की दरखास्त करती और उसके छोटे से परिवार को महफ़ूज़ रखने का शुक्रिया अदा करती।
घर से थोड़ी दूर पीले बैरिकेड खड़े हुए थे और पूलिस वाले बैठे हुए थे।
ज़ैनब पीछे छोटे से आँगन में बर्तन माँज रही थी, शाहरुख़ उसे देखता रहा। बार - बार उसका झुक कर बर्तन उठाना, साबुन के पानी में भिगाना फिर तसले के पानी में में डुबाना।
"जाओ तुम्हें अम्मी बुला रही हैं"
ज़ैनब सम्भल कर उठी, “पत्थर के पास काई है, सम्भल कर!”
ज़ैनब धीरे - धीरे दरवाज़ों को पकड़ कर अंदर तक पहुँची, “क्या हुआ अम्मी?” “अम्मी ने भी पूछा “क्या हुआ?”
“बुलाया आपने?”, आँगन से बर्तनों के घिसने और पानी में डूबने की आवाज़ आयी। अम्मी और ज़ैनब ने जाकर देखा तो शाहरुख़ बैठ के बर्तन माँज रहा था।
“किसी बढ़िया कॉलोनी में घर, बच्चे के लिए स्कूल, ज़ैनब के लिए पलंग” बीड़ी के धुऐं के बीच उसके दिमाग़ में ये सब चल रहा था
हालात ऐसे हो गए थे कि हॉस्पिटल में बेड मिलना मुश्किल हो रहा था। हर दिन लोग अपनों से बिछड़ रहे थे। छत से शाहरुख़ को दिखायी दिए बहुत सारे लोग, जो पीठ पे बैग टाँगे, बस्तियों की तरफ़ बढ़ रहे थे। उन्हें पूलिस वाकों ने बैरिकेड के पहले रोक लिया।
रात में जब शाहरुख़ ज़ैनब के बग़ल लेटा तो उसने पूछा “हमारे पास पैसे कितने हैं?”, “लगभग दो तीन हज़ार होंगे”
सारी रात शाहरुख़ को घर की फ़र्श ठंडी लगी। उसने गद्दे के ऊपर एक कम्बल बिछाया और ज़ैनब को धीरे से अपनी ओर खिसका के कम्बल पे सुलाया और फिर दूसरा कम्बल उसके ऊपर उढ़ा दिया, रात भर वो इधर से उधर पलटता रहा।
सुबह ४ बजे ठोका पीटी की आवाज़ से ज़ैनब की नींद खुली, शाहरुख़ उसके बग़ल में नहीं था।
छत पर सौ वाट के बल्ब के उजाले में कुछ ढूँढ रहा था, अब्बू के जूतों के पीछे उसे एक टूल बॉक्स मिला, जिसे अब्बू ने ही अपने हाथों से बनाया था। टूल बॉक्स में एक फ़ोटो चिपकी हुयी थी, शाहरुख़ अब्बू की गोद में और अम्मी बुर्के में। शाहरुख़ ने मेजरिंग टेप उठाया और लकड़ी के दरवाज़ों को नापने लगा।
ज़ैनब सीढ़ियों से ऊपर पहुँची, “पागल हो क्या ज़ैनब! तुम ऊपर क्यों आयी?”
“मुझे लगा चोर तो नहीं है कहीं?”
“और चोर होता तो!”
“आपको नींद नहीं आती क्या?”
शाहरुख़ ने बॉक्स ज़ैनब को दिखाया, फ़ोटोग्राफ़ देख़ कर ज़ैनब रोने लगी,
“रो क्यों रही हो?”
“आप कितने क्यूट थे बचपन में”
ज़ैनब को आहिस्ते से शाहरुख़ नीचे लेकर आया, अम्मी उठी।
“रात में ज़मीन पे सोए थे, उठे तो आसमान से उतरे, शाहरुख़ कोई शर्म हया है की नहीं! क्यों तंग करता है इसे”
ज़ैनब मुस्कुरा दी।
अगले दिन सुबह से लेकर शाम तक शाहरुख़ अब्बू की सिखायी हुयी कारपेंट्री करता रहा। और ज़ैनब के सोने के लिए दरवाज़ों और लकड़ी के पायों को जोड़कर एक पलंग तैयार कर दिया। अब समस्या ये थी की इसे सीढ़ियों से नीचे कैसे उतारा जाए। शाहरुख़ ने अकेले बहुत कोशिश की पर सागोन की लकड़ी का वजन खूब था। शाहरुख़ इतना थक चुका था की आज वो बस लेटेगा और उसे नींद आ जाएगी।
पर आज उसे घाट के अंधे मोड़ पे झूम कर मुड़ती हुयी कमला नज़र आयी, उस्ताद की पगड़ी और साफ़ चमकती बत्तीसी, बस की भीड़ नज़र आयी, खिड़की से हवा उसके गालों तक पहुँची, बस एक सकरी सड़क से रिवर्स हो रही थी। वो चीख पड़ा “हाँ काटो उस्ताद काटो, आने दो आने दो” शाहरुख़ के हाँथ हवा में उस्ताद को निर्देश दे रहे थे। “काटो काटो”
“क्या काटो?” ज़ैनब उसे घबराकर देख रही थी। शाहरुख़ उठा और धीरे से बोला “उस्ताद बस रिवर्स ले रहे थे”
“उस्ताद सपने में भी आते हैं? मैं आती हूँ कभी?”
शाहरुख़ ने पानी पिया और अपने आँखों को मींचते हुए बोला “सो जाओ ज़ैनब”
एक सुबह शाहरुख़ ब्रश से पलंग पर पेंट कर रहा था, छत पे किसी के चढ़ने की आवाज़ आयी, “ज़ैनब, तुम ऊपर मत आओ”
“ओह खोते ज़ैनब नहीं है, ज़ैनब का चाचा आया है”, उस्ताद सामने खड़े थे, उनके हाँथ में शाहरुख़ का टिफ़िन का डब्बा था, शाहरुख़ उठ खड़ा हुआ। “तु उधर ही रह, बाहर कंडिशन बडी ख़राब है यार”
उस्ताद रेलिंग के दूसरे छोर पे खड़े हो गए
“ज़ैनब दो चाय!” शाहरुख़ छत से चिल्लाया
“अजीब आदमी है, ज़ैनब चाय बनाएगी!”
“अम्मी दो चाय!”
“ बहुत ही बड़ा पट्ठा है यार तू, अम्मी से चाय बनवाएगा!”
“मैं ही जाता हूं उस्ताद”
“ओ कहीं मत जा, बैठ”
उस्ताद ने टिफ़िन बग़ल में रखा
“पोलिस वालों ने रोका नहीं”
“सरदार देख़ के ज़्यादा नहीं उलझे, एक ही डंडा मारा बस। मैंने बोला मेरी बच्ची के लिए लड्डू ले जा रहा हुँ, जाऊँगा तो ज़रूर। वो बोले जाओ वापस मत दिख जाना। मैं बोला वापस भी तो आऊँगा, तुम एक और मार लो।”
एक सेकंड की खामोशी के बाद दोनों हंस पड़े।
“सोता नहीं तू आजकल!”
शाहरुख़ ने उस्ताद को देखा।
“बाप हुँ तेरा! देख़ के सब समझ जाता हूँ, आँखें सूज गयी हैं ”
“नींद ही नहीं आ रही उस्ताद, दिन भर कुछ ना कुछ काम करता रहता हूँ की थक जाऊँ पर कुछ समझ ही नहीं आ रहा”
“ नींद तो मुझे भी नहीं आती, इस महीने की पगार नहीं मिलेगी”
“क्यों?”
“तीन हफ़्ते से कमला एक ही जगह खड़ी है, काम करेंगे तो पैसा मिलेगा ना! ये ज़ैनब के लिए लड्डू हैं सोंठ के, चाची ने भिजवाएँ हैं।”
टिफ़िन शाहरुख़ को थमाया। साथ में एक बीड़ी का बंडल भी “और ये तेरे लिए।”
उस्ताद ने सैनिटाइजर की बोतल निकाली और हाँथ साफ़ करते हुए सूंघने लगे।
“महक एकदम दारू जैसी ही है, पी तो नहीं सकते, सूंघ तो सकते हैं”
“उस्ताद दो हाँथ लगाओगे, ये पलंग नीचे पहुँचाना है।”
उस्ताद ने शाहरुख़ को पीछे हटने के लिए कहा और दो दरवाज़ों से बना पलंग खुद उठा लिया, और सीधे शाहरुख़ के दरवाज़े के सामने रख के चलते बने। “वाहेगुरु!”, “वाहेगुरु उस्ताद” शाहरुख़ ने दबे हुए स्वर में कहा।
शाहरुख़ ने बीड़ी का बंडल खोला फिर माचिस हाँथ में लिए बैठे रहा। फिर बंडल वापस रख दिया।
“आज उस्ताद को देखा तो थोड़ा अच्छा लगा”
“तुम इतने दिनों से घर पे हो तो मुझे रोज़ अच्छा लगता है” शाहरुख़ ज़ैनब को देख़ मुस्कुराया, बल्ब की हल्की रोशनी में दोनों मियाँ बीवी रंगीन चादरों से ढके लेटे हुए थे। अम्मी गहरी नींद में थी।
“तुम मेरे साथ मत जागो, सो जाओ!”
“सो जाऊँगी!”
अचानक ज़ैनब को तेज़ दर्द महसूस हुआ, और वो चीख पड़ी। अम्मी की नींद खुली, शाहरुख़ घबराकर उठ गया
“ज़ैनब! ज़ैनब!;
ज़ैनब तेज दर्द से कराह रही थी।
शाहरुख़ घर के बाहर भागा, पड़ोस की औरत उठ के बाहर आ गयी थी, चीख़ों को सुन वो समझ गयी की ज़ैनब के पास अस्पताल पहुँचने के लिए ज़्यादा समय नहीं । आसपास के घरों की बत्तियां जल गईं, लोग मास्क पहने बाहर आए, कुछ अंदर से देखते रहे।
अब्दुल के घर के बाहर ऑटो नदारद था। शाहरुख़ ने हॉस्पिटल फोन किया पर कोई भी ऐम्ब्युलन्स ख़ाली नहीं मिली, वो भागता रहा।कुत्ते भी उसके साथ बेचैन थे, वो भी उसके साथ हो लिए।
एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले पहुँच गया। उस मोहल्ले के कुत्ते इन कुत्तों पर भौंकने लगे। पास ही चेक पोस्ट थी, शोर सुनकर पहले तो पुलिस वाला उसके पीछे डंडा लेकर दौड़ा, शाहरुख़ ने उसे बताया कि उसकी बीवी को अस्पताल पहुँचाना है, ऐम्ब्युलन्स ख़ाली नहीं हैं।
पुलिस वाले अपनी जीप लेकर शाहरुख़ की गली तक पहुँचे पर एक मोड़ के बाद जीप रुक गयी, अंदर पहुँचने की जगह नहीं थी ।
शाहरुख़ जीप से कूदता हुआ घर की ओर भागा, घर में चार - पाँच औरतों का जमावड़ा था, एक साड़ी से आड़ की गयी थी। सभी ने पलट कर शाहरुख़ को देखा, शाहरुख़ अपने कदमों में वही रुक गया।
कमरे में एक तेज किलकारी गूंजी।
फोन के टॉर्च की रोशनी में साड़ी के उस पार ज़ैनब और बच्चे की परछाई दिखी, अम्मी की आंखें नम थी, वो शाहरुख़ से लिपट पड़ी।
अगली सुबह शाहरुख़ मेडिकल पहुँचा, दवाई लेने के बाद वो घर लौटते - लौटते कुछ मीठा लेकर दूसरे मोड़ पे चल पड़ा। ख़ाली सड़कों पर अब चिड़ियाओं की आवाज़ उसे सुंदर लग रही थी, चलते चलते वो उस्ताद के घर के सामने जा खड़ा हुआ। उसने खिड़की पे दस्तक दी, चाची ने दरवाज़ा खोला और शाहरुख़ को देख़ मुस्कुरा दी “मुबारक हो बच्चे” “शुक्रिया चाची जान, उस्ताद?”
चाची चुप रही, “वो घर में रहते ही नहीं”
“फिर कहाँ रहते हैं ”
घर के पीछे वाले मैदान में कमला खड़ी थी, खिड़कियों पे धूल जमी हुयी थी। शाहरुख़ रुक कर बस को देखते रहा। उस्ताद की सीट के पास अंदर पंखा चल रहा था, शाहरुख़ फुटस्टैंड पे चढ़ा और अंदर झांका,
उस्ताद गद्दा डाल कर अंदर सो रहे थे ।
शाहरुख़ ने ठकठकाया।
उस्ताद की नींद खुली और शाहरुख़ को देख़ कर मुस्कुरा दिए, शाहरुख़ ने मिठायी का डिब्बा दिखाया।
दरवाज़ा खोलते ही उस्ताद ने शाहरुख़ को गले लगा लिया।
“बहू ठीक है?”
“दोनों ठीक हैं” उस्ताद बस शाहरुख़ को देख ख़ुशी से मुस्कुरा रहे थे
“इधर क्यों सोते हो उस्ताद?” शाहरुख़ ने बस में बिछे हुए गद्दे को देखते हुए पूछा
“यार कमला अकेली थोड़ी खड़ी रहेगी।”
कूछ देर शाहरुख़ चुप खड़ा रहा, कुछ सोचता हुआ फिर अचानक
उसने उस्ताद को सीट पे बैठाया और चाबी दी, उस्ताद ने शाहरुख़ की तरफ़ देखा और बस चालू कर दी।
सायलेन्सर से धुआँ निकला, जलते हुए डीज़ल की महक को शाहरुख़ ने भरपूर सूंघा, कान में पेन फँसा लिया। बस हिल रही थी, धुआँ उड़ा रही थी।
एक सेकंड में सामने वाली कंडक्टर सीट से पीछे की सीट पे पहुँचा, लोगों की टिकट काट-ता हुआ।
उस्ताद ने कसेट टेप में फ़िट किया
“ दिल दीवाना बिन सजना के माने ना” बस में गूंजने लगा
शाहरुख़ सीट की रॉड पे टिका, चटखनी में ऊँगली टिकायी और अपनी आँखें बंद कर ली।
बस वही खड़े खड़े धुआँ छोढ़ रही थी, शाहरुख़ की आँखें अचानक भारी होकर बंद होने लगी
ये कंडक्टर शाहरुख़ की झपकी का वक़्त था ।
Bhai, kya likha hai!! Maza aa gaya. Pure visuals samne the.
अप्रतिम !
इस रचना ने हिंदी कहानियों की उन पूर्व स्मृतियों को ताज़ा कर दिया, जो कुछ 20 वर्ष पूर्व मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करती थीं। पात्र इतने वास्तविक और अपने जैसे लगते हैं। इस कहानी की सफलता इसी में है कि मैं हर पल को अपनी आँखों के सामने देख पाने में सक्षम हुआ। बधाई !