बोज़ो, पूनाची, बल्थज़ार और नीत्शे के आँसू
“निस्वार्थ जीव अपना जीवन त्रासदियों में ही बिताते हैं”
3 जनवरी 1889 की सुबह, विशालकाय मूँछे लिए एक महान दार्शनिक इटली के Turin नामक शहर की सड़कों पे अपने विचारों से लड़ते, थकते और हारते चला जा रहा था। उसकी बग़ल से कोई अपनी सायकिल पर ब्रेड लेकर निकला, तो एक औरत फूल बेचते हुए गुज़री, नगर के व्यस्ततम चौराहे पर उसे असंख्य आवाज़ों के बीच एक घोड़े के चीख सुनायी दी।
सड़कों पर तेज़ी से आगे बढ़ता ये दार्शनिक नीत्शे था
अतिमानव / Superman ( Ubermensch) की कल्पना हमारे हाँथों में सौंपने वाला फ्रेडरिक नीत्शे पश्चिम के बुद्धिजीवी और जन मानस में एक नयी वैचारिक क्रांति का प्रणेता बन चुका था । Europe के ज्ञानोदय काल (Age of Enlightenment) में नीत्शे की एक प्रतीतात्मक घोषणा से खलबली मची हुयी थी। उसने कहा था कि
— “ईश्वर मर चुका है”/ GOD IS DEAD”
सभ्यताओं के अध्यात्मिक उत्थान के लिए एक महान क्रांति को ज़रूरी समझने वाला ये विचारक लोगों को सीख देता था कि नश्वरता और इस दुनिया की सार हीनता से ऊपर उठकर पहाड़ों की ढलान पे रहना सीखो और सतत अपने लिए लड़ो और अपना वजूद स्थापित करो।
इस विचारधारा के प्रसारक ने पैदल चलते हुए उस दिन जब एक घोड़े की चीख सुनी, और पलट कर देखा तो एक ताँगे वाला अपने घोड़े पर चाबुक बरसा रहा था। वो अचानक घोड़े की तरफ़ दौड़ा, चीखा- चिल्लाया और घोड़े से गले लगकर फफक-फफक के रोने लगा, घोड़े से भर्रायी आवाज़ में क्षमा माँगने लगा। ताँगे वाले से गुज़ारिश की; इस बेज़ुबान पर अब और चाबुक मत चलाओ और उसके बाद वो अपना संतुलन खोकर ज़मीन पर बदहवास गिरने से पहले घोड़े के कानों में बड़बड़ाया बुदबुदाया “मैं तुम्हें समझता हूँ”
उस सुबह नीत्शे ने उस घोड़े की आँखों में देख़ कर ऐसा क्या महसूस किया कि एक विद्वान अपने ही अस्तित्व से हताश हो गया, होश में आने के बाद उसने अपने आख़री शब्द बड़बड़ाए “माँ, मै एक बेवक़ूफ़ मनुष्य हुँ” "Mutter, ich bin dumm” और वो आजीवन गूँगा हो गया। जीवन के अगले 11 वर्ष उसे अंधकार की ओर ले गए, पागलखानो और अस्पतालों में उसने अपने अंतिम दिन गुज़ारे और एक त्रासद अंत से जूझते हुए मर गया।
ये लेख एक प्रयास है जानवरों के जीवन में मौजूद उस ईश्वरीय तत्व के पास पहुँचने पाने का, जिसे ढूँढने हम तीर्थ यात्रा पर ज़ाया करते हैं
पहला अध्याय - बोज़ो - एक छोटा सा कुत्ता, जिसने अपने जीवन के दो महीने मेरे साथ बिताए
दूसरा अध्याय - बल्थज़ार - दुनिया की महानतम फ़िल्मों में से एक, रॉबर्ट ब्रेस्सों की “Au Hasard Balthazar” आधारित एक साधारण चिंतन
तीसरा अध्याय - पूनाची - भारतीय उपन्यासकार पेरुमल मुरुगन द्वारा रचित एक बकरी की आत्म कथा
बोज़ो -
बोज़ो के शरीर में तिनके मात्र शक्ति भी नहीं बची थी, उप्पर भिनभिनाती मक्खियों से भी संघर्ष करना छोड़ दिया था वो लगभग हम सब को छोड़ कर जाने ही वाला था, उसने आख़री साहस किया, पूरे शरीर में बचा हुआ ज़ोर लगाया और फ़र्श के उस चौकोर हिस्से में जाकर लेट गया जहां धूप गिर रही थी। धीरे धीरे बंद होती उसकी आँखों को देख़ कर लगा की उसने मृत्यु को स्वीकार कर लिया है, बहुत धीरे से उसने अपनी आँखें बंद करने के पहले एक बार मेरी ओर भरपूर देखा और आँखें बंद कर लेट गया।
मुझे धुंधली याद आती है वो दोपहर जिस दिन मै और मेरा एक मित्र घर के बाहर खड़े हुए थे, हैंड पम्प के आस पास लगी घाँस में से किसी घायल जानवर के चीखने की आवाज़ आयी, मैंने और मेरे मित्र ने जाकर देखा तो लगभग एक-देढ़ महीने का बोज़ो दर्द से चीख रहा था, दो तीन लोगों ने बताया कि एक टाटा सूमो उसके पिछले पैरों के ऊपर से होकर निकल गयी है। हमने बोज़ो को उठाया और अस्पताल ले गए। अस्पताल में डॉक्टर से ज़्यादा मदद सुदामा नाम के एक कंपाउँडर ने की । बोज़ो के लिए एक जुगाड़ू प्लास्टर का प्रबंध किया गया, टूटे हुए पैर के दोनो तरफ़ लकड़ी की छोटी पटिया रखी गयी और एक कपड़े के सहारे कस कर बाँध दिया गया। बोज़ो की चीख से पूरा अस्पताल गूंज पड़ा। वो पहले तो बहुत घबराया फिर धीरे धीरे उसने इन लकड़ियों के प्लास्टर को स्वीकार लिया, डॉक्टर ने बताया की कुछ महीनों में बोज़ो का पैर ख़ुद ठीक हो जाएगा, पर बोज़ो की इम्यूनिटी और बॉडी स्ट्रैंथ बहुत कम थी, उन्होंने कुछ दवाइयाँ बतायी। उन दवाइयों को बोज़ो को खिलाना एक अलग संघर्ष था, बोज़ो के जबड़े एक तरफ़ से कस कर पकड़ने होते थे और वो दवाई सिरिंज की मदद से उसके मुँह में डालनी होती थी। अब ओखली में सर दिया तो मूसल से क्या डरना।
घर पहुँचते पहुँचते बोज़ो ने तो अपनी पट्टी को चीर डाला था, चिंता बोज़ो का प्लास्टर नहीं था चिंता थी कि इसे रखा कहाँ जाए। बोज़ो बहुत छोटा था और मोहल्ले के बाक़ी कुत्ते उसे मोहल्ले में रहने नहीं देते, घर के अंदर यूँ ही उसे ले आना सम्भव नहीं था तो घर के ठीक बग़ल पड़ोसी और घर के बाजू वाली छोटी गली में बोज़ो के लिए रहने का प्रबंध एक छोटे से खोखे/बॉक्स में किया गया और एक पुराना कम्बल, और कटोरी में दूध रोटी और पानी।
अगली सुबह, मैंने जाकर देखा तो खोखा ख़ाली था, नज़र दौड़ायी तो बोज़ो अपने से बड़े कुत्तों के साथ खेल रहा था, मुझे देख़ कर वैसे ही उल्टा भाग जैसे बहुत समय बाद किसी दोस्त से मिले तो वो भागते हुए आता है। मैंने बोज़ो को डाँटा तो वो कूँ कूँ की आवाज़ निकाल कर उल्टा लेट गया, बोज़ो को धूप में उल्टा लेट जाता था और अपना पेट सहलाने की ज़िद्द करता था।
जब भी उसे आभास होता की उसे खाना मिलने वाला है तो उत्साह में भागने के उसने एक नया तरीक़ा इज़ात कर लिया था, बोज़ो अपने शरीर को टेढ़ा कर के अपने पुट्ठे हिलाता था, कुछ लोगों ने कहा कि ये शकीरा जैसे नाचता है। इस बात पर मोहल्ले में बहस भी हुयी की इस का नाम बोज़ो नहीं शकीरा होना चाहिए। जिन लोगों ने शकीरा का नाम नहीं अब तक नहीं सुना था वो शकीरा को गूगल कर के उसके फ़ैन हो गए और मोहल्ले में हजामत की दुकान पर “ओह बेबी, माई हिप्स डोंट लाई” दिन रात बजने लगा।बोज़ो मुझे मियाज़ाकी के उकेरे किसी किरदार जैसे लगने लगा ।
मोहल्ले के बच्चे बोज़ो के साथ आकर खेलते भी थे। बोज़ो रिकवर कर रहा था, उसका शरीर भरने लगे था, वजन मशीन पर उसका वजन भी ठीक हो चला। एक दिन सुबह-सुबह मेडिकल स्टोर चलाने वाले चाचा ने घर आकर घंटी बजायी, मुझे जल्दी से बाहर बुलाया, मै समझ गया की बोज़ो ने फिर कुछ कांड किया है। उन्होंने दिखाया “बोज़ो चारों पैर का इस्तेमाल कर के चल रहा था, और बकरियों के साथ खेलने की कोशिश में उनके पीछे भाग भी रहा था। उस समय ऐसे लग रहा था मेरे साथ और भी लोग बहुत ख़ुशी महसूस कर रहे हैं क्योंकि बोज़ो को ठीक करने में सबने मदद की थी । ठंड की हल्की धूप में मेरी तरफ़ भागता बोज़ो ऐसे याद है जैसे आज सुबह की ही बात हो।
पापा बाहर अख़बार पढ़ने बैठे तो उनके बग़ल आ कर बैठ जाता, मम्मी के साथ दूध डेयरी तक जाता तीन टांगों पर उछलता बोज़ो किसी चाबी वाले खिलौने सा बार बार पैरों में टकराता फिर आगे बढ़ता, फिर टकराता। पर बोज़ो की चाबी खतम नहीं होती थी, उसमें इतना जीवन इतना लबालब भरा हुआ था की बाहर छलकता था। ज़ल्द ही बोज़ो ने घर के उस कमरे में जगह बना ली जहां घर की गाड़ियाँ खड़ी होती हैं और चप्पलें रखी जाती हैं। सुबह 5 बजे ही वो दिन निकलने को भाँपते ही वो घर वालों को उठा देता फिर घूमने के लिए बाहर जाने की ज़िद करता था
बोज़ो को बीच बीच में अस्पताल ले जाते रहा, इस बीच इतने जानवरों को उनकी पीड़ा के चरम पर देखा, रोने बिलकने के लिए जिनके पास उनकी माँ की गोद भी नहीं थी। एक किसान और उसकी पत्नी अपनी गाय को ज़िला अस्पताल लेकर आए थे, गाय बछड़े को बाहर नहीं निकाल पा रही थी तो सुदामा दादा की मदद से बछड़े को बाहर निकाला गया, उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थी। किसान की पत्नी गाय को सहलाते हुए रोने लगी, गाय ने आगे बढ़कर अपने बछड़े को चाटना शुरू किया और उसे अपने सिंघो से हिलाती भी रही। अचानक बछड़ा लड़खड़ाते हुए खड़ा हुआ सुदामा दादा बोले की कोई नयी बात नहीं है, कभी कभी बच्चे पहले आ जाते हैं उनके प्राण बाद में आते हैं। बोज़ो अपनी जीभ निकाल कर अस्पताल परिसर के बाहर खुले आँगन में यहाँ से वहाँ भागते रहा जैसे नवजात का स्वागत कर रहा हो।
ठंड की धूप में रेत पर पसर जाता, और जब वहाँ से धूल- धूल होकर घर लौट-ता तो उसे छत पर नहलाया जाता। नहाते वक्त डरता था बोज़ो पर नहा लेने के बाद TOWEL ओढ़ कर बैठा रहता था और जब सो जाता था तो सूँ -सूँ की आवाज़ें उसकी नाक से लगातार बाहर आते रहती । हम सब ने ये मन ही मन मान लिया था की बोज़ो अब यहीं रहेगा पर ऐसा नहीं था।
एक सुबह अचानक -
मैं किसी काम से शहर से बाहर गया था, लौटा तो समझ आया कि बोज़ो खाना नहीं खा रहा है, अगले दिन भी बोज़ो ने खाना नहीं खाया और जिस बक्से में वो सोता था उसमें खून की बूँदें दिखायी दी, डॉक्टर ने सबसे पहले तो अस्पताल के बाक़ी कुत्तों को बोज़ो से दूर भगाया की कहीं बोज़ो की बीमारी उन तक ना पहुँच जाए। फिर बताया की बोज़ो की ये हालात पार्वो वायरस के चलते हुयी है, अगले तीन दिन अगर बोज़ो लड लिया तो बच सकता है नहीं तो पार्वो वाइरस 95 प्रतिशत कुत्तों को मार डालता है।
तीन दिन तक बोज़ो लड़ा, अपने पूरे साहस से जैसे पूरी क्षमता से जीना चाहता हो, दिन में तीन बार ज़िला अस्पताल में उसे ड्रिप के सहारे दवाइयाँ दी जाती, और तीनों दफ़ा घंटा बोज़ो को लेटाकर मुझे ही उस ड्रिप को पकड़े रहना पड़ता, पहले दिन तो बोज़ो ने विरोध किया फिर दूसरे दिन से वो बस चुप चाप लेटे रहता था। एक दिन सुदामा दादा अस्पताल में नहीं मिले, मै उनका इंतेज़ार में बैठे रहा, शाम को वो अस्पताल पहुँचे। उन्होंने बताया कि पास की इलाक़े में एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदते हुए बंदर बिजली के तार से टकरा गया और झुलस कर नीचे गिर और बेहोश हो गया।उसी के इलाज में लगे हुए थे दवाइयाँ दी, पानी छिड़का और और जो लोगों कि भीड़ वहाँ जमा थी वो हनुमान चालीसा पढ़ने लगी । मैंने पूछा बंदर बचा की नहीं? सुदामा दादा ने पेड़ की ओर इशारा किया।।।बंदर उनके पीछे पीछे पेड़ों पे उछलता हुआ अस्पताल तक आया था। सुदामा दादा ने बोज़ो के तरफ़ देखा और कहा की अब तुम ज़्यादा मेहनत मत करो इसके पीछे, ये नहीं बच पाएगा। बिना कुछ खाए पिए बोज़ो की हड्डियाँ दिखायी देने लगी थी, ये बात साफ़ थी की बोज़ो का बचना बहुत मुश्किल है, अगले चौबीस घंटे में बोज़ो अपने प्राण छोड़ देगा, पर उस समय इतनी तकलीफ़ के बीच बोज़ो की आँखों में एक अजीब सी उदारता दिखने लगी
वो अपनी मृत्यु को स्वीकार कर चुका था, अपनी पीड़ा से हार कर थक चुका था।अपनी मृत्यु को स्वीकार कर लेने वाले लोग या तो महान संत बनते हैं या कोई बिकट अपराधी।
बोज़ो ने आख़री दम लगाया, अपना पूरा ज़ोर और जाकर उस उस जगह लेट गया जहां धूप गिर रही थी, मेरी ओर अपनी आँखों से ऐसे देखा जैसे पिता अपने बच्चों को देखते हैं, जैसे गुरु अपने शिष्यों को, जैसे दुनिया को छोड़ कर ऊपर उठता हुआ कोई नीचे देखता है,
बोज़ो के अचानक जाने से वो सभी बहुत उदास हुए जो बोज़ो के साथ खेला करते थे, उसे बिस्किट दिया करते थे वे सभी बोज़ो के मृत शरीर को देखने भी आए और हाथ जोड़ कर चले गए। जैसे किसी संत का देहावसान हुआ हो ।
जिस सुबह बोज़ो को एक छोटी सी कब्र में दफ़नाया गया, उसी शाम हुबहू बोज़ो के जैसे धब्बे लिए एक पिल्ला मुझे सड़क पर भटकता हुआ मिला। उसे रखने का बहुत मन हुआ पर लगा की जैसे बोज़ो अजीब से परीक्षा ले रहा है। मैं उस पिल्ले की माँ को ढूँढ कर उसे वहीं उसकी गरमाहट में छोड़ आया
उसके बाद से लगातार ऐसा होते रहा है की जब भी कोई कुत्ता घायल होता है घर के चबूतरे के पास आकार बैठ जाता है, जैसे बोज़ो ने उसे भेजा हो। उन्हें ज़रूरी पानी, खाना और कुछ देर के लिए बोरा ओढ़ा दिया जाता है, कुछ देर में शायद वो ठीक महसूस कर के निकल जाते हैं। पर मेरा ऐसा मानना है की उन सभी को ये आभास रहता है की उनके साथ इस घर में अच्छा बर्ताव किया जाएगा, जैसे थके हारे यात्री आकर किसी धर्मशाला में रुकते हैं वैसे ही आस पास के और दूर से भटकते हुए आए कुत्ते, बकरी, गाय आदि घर के सामने ज़रूरी आराम कर अपने अड्वेंचर पर आगे बढ़ जाते हैं। दिन के किसी भी समय, तीन कुत्ते घर के सामने ऊँघते मिल जाते हैं, दोपहर और शाम गाएँ घर के बाहर रोटी के लिए रंभाती हैं, और घर में हर दिन पहली रोटी गायों के लिए बनायी जाती है। इन रोटियों को खिड़की की आड़ में रख दिया जाता था, ताकि जब गाय आए तो उसे वहीं से निकाल कर रोटी खिला दें, पर बोज़ो उछल कर रोटियाँ निकाल लेता था और बड़े चाव से खाता था। अब भी रोटियाँ खिड़की की आड़ में रखी रहती हैं, पर बोज़ो नहीं उछलता और कुछ भी नहीं खाता।
घर के बाहर ऊँघते कुत्ते प्यार के इतने भूखे होते हैं की ज़रा सा उनका सिर सहला दो, या पेट पर हाथ रख दो तो वैसे ही उछल-कूदन करने लगते हैं जैसे
बोज़ो इधर उधर भागा करता था
जैसे बल्थज़ार मैरी के इर्द गिर्द उछलता था
वैसे ही जैसे पूनाची खेत खलिहानों में अपने पैर उछालकर यहाँ से वहाँ कूदती थी ।
2। बल्थज़ार -
चार पैरों पे चलता संत
जिसका जीवन , एक अंतहीन यातना
जिसका अस्तित्व, एक अंतहीन प्रार्थना
कुछ कहानियाँ अपने भीतर इतनी हिंसा समेटने के बाद भी इतनी कोमल होती हैं कि उन्हें छूने में उँगलियों की पोर बहुत संकोच करती हैं, फ़्रेंच फ़िल्म मेकर रॉबर्ट ब्रेस्सों द्वारा निर्मित “Au Hasard Balthazar” इस संसार में अब तक बनी महानतम फ़िल्मों में अपना स्थान दर्ज करती है, इसे देखते समय कई बार आँखें मोड़ कर किसी और दिशा में देखने के लिए बाध्य हो जाते हैं और कहानी के ख़त्म होने के बाद अपने भीतर देखने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
क़ाली जैकेट पहने अपने दोस्तों के साथ हुड़दंगी करता जेरार्ड बल्थज़ार की पीठ पे वजन लादकर उसे आगे बढ़ने का आदेश देता है, बल्थज़ार अपनी जगह से आगे नहीं बढ़ता, जेरार्ड फिर बल्थज़ार की पीठ पर लात घूसे बरसाता है, अंततः उसकी पूँछ में एक काग़ज़ बाँध कर आग लगा देता है , बल्थज़ार घबराकर भागने लगता है और आगे जाकर झाड़ियों की झुरमुट के बीच ऐसे खड़े हो जाता है जैसे छिप गया हो। उस समय बस यही प्रार्थना करते हैं कि बल्थज़ार अदृश्य हो जाए, फिर किसी इंसान को कभी ना दिखायी दे पर त्रासदी यही है की बल्थज़ार की कहानी अभी बहुत बाक़ी है। बल्थज़ार की आँखों में झांकने से आपको एक अजीब से साहस की ज़रूरत पड़ती है।
“निस्वार्थ जीव अपना जीवन त्रासदियों में ही बिताते हैं”
बल्थज़ार गाँव के अलग अलग लोगों के लिए मज़दूर गधा है, और ज़्यादातर समय लोगों के लिए काम करते हुए बिताता है, घास चरते हुए कम। मन सोचने पे विवश हो जाता है की क्या नींद में बल्थज़ार खुली घाटियों में चरते गधों के स्वप्न देखता होगा, या सूरज की रोशनी से स्वर्णिम दिखती नदी के साथ भागते सात नौजवान घोड़े या फिर अपने सपनो में वो मनुष्यों का नक़ली करुण चेहरा देख़ कर अचानक उठ खड़ा होता होगा।
बल्थज़ार एक बार भूसे से लदी गाड़ी लिए गिर पड़ता है और घटना स्थल से भाग कर अपनी मित्र मैरी के पास, मैरी अब जवान हो चुकी है। मैरी के पिता जो शिक्षक हैं, एक लीगल केस में फँसे हुए हैं और बल्थज़ार गाँव के अलग अलग लोगों के लिए मज़दूर है।
बल्थज़ार की आँखों में देखने के लिए आपको मैरी की सहायता लगती है, मैरी अकेली ऐसी मनुष्य है जो बल्थज़ार से निः स्वार्थ प्रेम करती है, कहानी में मैरी का चेहरा सर्वत्र उदासीन है पर बल्थज़ार जैसे ही मैरी के निकट होता है, मैरी के चेहरे पे एक ऐसा भाव आता है जिसे महसूस कर ऐसा लगता है की मैरी इस पूरी शृष्टि की ज़ननी है और शायद इसलिए वो खिन्न रहती है।
क़ाली जैकेट पहने अपने दोस्तों के साथ हुद्दंगी करता भटकता जेरार्ड मैरी की तरफ़ आकर्षित है और बार-बार मैरी को छूने की कोशिश करता है, मैरी बल्थज़ार से बहुत प्रेम करती है इस बात की ईर्षा भी उसे बल्थज़ार को प्रताड़ित करने के लिए बाध्य करती है। एक दिन जब मैरी बीच सड़क पर बल्थज़ार को खड़ा पाती है तो रुक कर उसे सहलाती है, उसका दुलार करती है, जेरार्ड मैरी की कार में छिपकर उसका इंतेज़ार करता है और मैरी के लौटते ही उसकी गर्दन पर अपनी हथेलियाँ रख देता है, बहुत कोशिशों के बाद मैरी हार मान लेती है और बल्थज़ार सब कुछ घटते हुए देखता है।
जब भी बल्थज़ार पर आपकी आँखें टिकती हैं आपके सामने वो जीव खड़ा हुआ मिलता है जिसने अपने जीवन में यातनाओं के अलावा कुछ नहीं झेला पर तकलीफ़ इस बात से ज़्यादा होती है कि शायद बल्थज़ार अपने जीवन को अपना चुका है, किसी प्रकार की बग़ावत या क्रोध बल्थज़ार में नहीं दिखता, वो बस घाँस में पड़ती धूप में कुछ देर लेटना चाहता है। और फिर उठकर वो हमारी यातनाओं को झेलने तैय्यार हो जाएगा। और होता भी ऐसा ही है
ऑर्नल्ड नाम का शराबी बल्थाज़ार को कुर्सियाँ फेंककर पीटता है, उसके ठीक सामने शराब की बोतलें फोड़ता है और बल्थज़ार को एक ग़ुलाम से ज़्यादा क़ुछ नहीं समझता
एक दिन बल्थज़ार ऑर्नल्ड के हाथों में शराब की बोतल देखता है और भाग निकलता है। बल्थज़ार भाग कर एक सर्कस पहुँचता है, जहां वो पिंजरे में क़ैद शेर की आँखों में झाँकता है , फिर बंदर, फिर भालू और अनेक दूसरे जानवर को दर्शक की तरह देखता है, यहाँ बल्थज़ार को शायद ऐसा महसूस होता है की वो यातनाएँ झेलने वाला अकेला जीव नहीं है, पूरा जंगल पिंजरे के अंदर है ताकि आदमी आज़ाद घूम सके।
बल्थज़ार को रिंग के बीच खड़े कर रिंग मास्टर गणित के प्रश्न हल करवाते हैं, और गधा ज़मीन पे अपने खुर ठोंक कर जटिल समस्याओं को हल करने की क्षमता से बहुत तालियाँ बटोरता है पर इस वहीं सामने दर्शक दीर्घा में बैठा ऑर्नल्ड शराब पी रहा है , बल्थज़ार उसे देखते ही अनियंत्रित होकर रिंग से भागने की कोशिश करता है।अंत में ऑर्नल्ड बल्थज़ार को अपने साथ ले जाता हैं और गाँव पहुँचकर उसे पता चलता है उसका दूर का रिश्तेदार उसके नाम अपनी सारी सम्पत्ति छोड़ गया है और ख़ुशी में सभी को दावत पे बुलाता है, जेरार्ड और उसके दोस्त, नशे में धुत्त ऑर्नल्ड को बल्थज़ार पर बैठाकर रवाना कर देते हैं, और अर्नोल्ड किसी जगह पहुँचकर बल्थज़ार की पीठ से गिर कर मर जाता हैं।
मैरी के पास उसके बचपन का मित्र जैक विवाह का प्रस्ताव रखता है, मैरी जो कि जेरार्ड के साथ एक अब्यूसिव रिलेशनशिप में है, एक आख़री बार बार जेरार्ड से मिलने जाती है, पर वहाँ जेरार्ड और उसके दोस्त मैरी को निर्वस्त्र कर उसे पीट कर खेतों से होकर भागते हैं और जगह जगह मैरी के कपड़े फेंकते हुए दूरी में ओझल हो जाते हैं।
मैरी के पिता जब उस सूने मकान की खिड़की से अपनी बेटी को देखता हैं तो एक पहाड़ उसकी छाती में आकर बैठ जाता है , उसके अंदर कुछ मृत हो जाता है, वो चीज़ जो हर इंसान के भीतर बची रहनी चाहिए। मैरी को हम कहानी में फिर कभी नहीं देखते। मैरी के पिता इस यातना में अपने प्राण छोड़ देते हैं।
जेरार्ड और उसके दोस्त मैरी की माँ से बलथाज़ार की माँग करते हैं, मैरी की माँ उनसे प्रार्थना करती है की “बल्थज़ार को अब वे भगवान के लिए बख़्श दो, बल्थज़ार एक संत है”
रात के अंधेरे में जेरार्ड बल्थज़ार को चुरा कर ले जाता है, और उस पर कॉंट्रबैंड लादकर बॉर्डर पार करवाने की कोशिश करता है, दूसरी ओर से गोलियों की आवाज़ सुनायी देती है, जेरार्ड भाग निकलता है पर बल्थज़ार वहीं रहता है। बल्थज़ार के पैरों से खून बह रहा है, दूर से आती हुयी भेड़ें उस घेर लेती हैं जैसे बल्थज़ार एक देवदूत है और वे सभी इस गधे के निकट आकर अपनी प्रार्थना के बाद उसका आशीर्वाद लेना चाहती है। बल्थज़ार यहीं, घास पर अपनी अंतिम सांसें लेता है।
बल्थज़ार की कहानी गधे की आँखों से देखी हुयी मानवीय हिंसा और एक मनुष्यता के लगातार नीचे गिरने की कहानी है, जिसे ब्रेस्सों एक अद्भुत करुणा और क्रूरता के समन्वय से दिशा देते हैं ।
3।पूनाची -
जैसे बल्थज़ार के अंतिम समय में उसके निकट भेड़ बकरियों का एक झुंड बल्थज़ार के पास पहुँचता है, जैसे बल्थज़ार से समीपता बाक़ी जीवों के लिए तीर्थ जैसा अनुभव है। लगभग वैसे ही पूनाची नाम की क़ाली बकरी, पेरुमल मुरुगन द्वारा रचित उपन्यास में देवतत्व पा लेती है। तमिलनाडु के एक छोटे से गाँव में ये कहानी कुछ ऐसे शुरू होती है
“एक बार की बात है, एक बकरी थी। कोई नहीं जानता था कि वो कहाँ पैदा हुयी। किसी साधारण जीव के जन्म लेने की घटना कभी अपना कोई निशान नहीं छोड़ती या छोड़ती है?” एक बूढ़ा चरवाहा जो एक छोटी पहाड़ी के ऊपर आराम कर रहा है, उसे दूर से एक विशालकाय छवि अपनी ओर आते हुए दिखायी देती है, बूढ़ा चरवाहा घबराकर इस विशालकाय जीव की आँखों में नहीं देख़ पाता, और ये जीव चरवाहे के हाथों में एक दिन पहले जन्मे बकरी का मेमना छोड़ जाता है। घर पहुँच कर बूढ़ा आदमी अपनी पत्नी को बताता है की “जब पूनाची को उसके हाथों में रखा गया तब उसे लगा किसी ने उसकी हथेलियों पर हथोड़ा मारा है पर अगले ही पल ऐसा लगा की एक फूल उसकी हथेलियों में दुबक गया है”
इस वृद्ध जोड़े ने कभी अपने जीवन में इतना छोटा और इतना काला बकरी का बच्चा नहीं देखा जो दरसल बिल्ली के बच्चे जितना ही बड़ा है, वो उसे गोद में लेकर बैठ जाती है और बकरी के बच्चे को ज़ल्द ही नाम मिलता है “पूनाची”।
चरवाहे की पत्नी पूनाची को दूसरी बकरी का दूध पिलवाती है जो अभी अभी माँ बनी है पर जैसे ही पूनाची दूध पीने के लिए बकरी के थनों पर मुँह लगाती है, बकरी दूध देना बंद कर देती है। चरवाहे की पत्नी पूनाची को चाँवल का पानी पिला कर उसका पेट भरती है और अपने ईश से प्रार्थना करती है की पूनाची अगर लम्बी आयु पाकर माँ बनती है तो वो पूनाची के पहले बेटे की बलि चढ़ाएगी।
पूनाची को ऊथन और उजुम्भन नाम के दोस्त मिल जाते हैं पर अधिकतर बकरियाँ उसकी तरफ़ देखती भी नहीं।
ज़ल्द ही पूनाची इतनी बडी हो जाती है की उसे अपनी एक संख्या पाने के लिए सरकारी कैम्प में ले ज़ाया जाता है जहां अफ़सर पूनाची के जन्म और माँ बाप के विषय में चरवाहे और उसकी पत्नी से सवाल जवाब करते हैं, घबराए हुए दोनों, अफ़सरों से झूठ बोलने का साहस जुटाते हैं सिर्फ़ पूनाची के लिए। पूनाची के कानों में एक नम्बर प्लेट पहनाई जाती है और उसके कानों से लगातार खून टपकता है
माढ़ का पानी पीने के बाद पता नहीं उसके शरीर में कितना खून बन पाया होगा, पर जन्म से ही बहुत कमजोर पूनाची हर स्तर पर अपने जीवन के लिए लड़ती है ।
कथानक में यह बात कही जाती है की कैसे सरकार के पास एक अदृश्य और कमाल की ताक़त है, अपने ही लोगों को किसी भी क्षण अपना दुश्मन घोषित कर देने की, चरवाहे की पत्नी चरवाहे को बताती है की “बकरों के सींघ होते हैं, है की नहीं! तो कभी किसी बकरे ने अगर सरकार की तरफ़ अपने सींघ तान दिए तो सरकार को पता तो होना ही चाहिए की किस बकरे ने उन पर हमले की साज़िश की है? इसलिए उनके कान पे नम्बर प्लेट लगायी जाती है।” चरवाहा अपनी पत्नी की बात समझ लेता है। पर कहानी में पूनाची का सहारा लेकर उसे रूपक नहीं बनाया गया है , पूनाची ही मुख्य किरदार है शायद इसलिए हम कहीं भी किसी इंसान का नाम नहीं पढ़ते।
पूनाची के जीवन में ज़ल्द ही, चरवाहे की बेटी के गाँव में रहने वाले पूवन नाम के एक सुंदर बकरे का आना होता है और वो उसके साथ अपना जीवन बिताने के स्वप्न देखने लगती है, पूवन भी पूनाची से प्रेम करने लगता है। गाँव लौटकर पूनाची को एक बूढ़े बकरे के सामने खड़ा कर दिया जाता है जो पूरे गाँव में इसी काम के लिए जाना जाता है। पूनाची को उसकी गंध और उसके स्पर्श से भी नफ़रत होती है पर पूनाची कुछ नहीं कर सकती, और करती भी नहीं। पूनाची पूवन के नज़दीक जाने के लिए तड़प उठती है और मौक़ा पाते ही वो एक पर्व के दौरान पूवन से मिलने आती भी है, वो पल पूनाची की बितायी सबसे सुंदर याद का एक हिस्सा बन जाते हैं ,पर पूनाची इस बात से अनजान है की ये पूवन की आख़री रात है।
अगली सुबह पूवन की बलि दे दी जाती है और पूनाची उसके धड़ से लगे सर को अपलक देखते खड़े रहती है। पूनाची जब माँ बनती है तो सात बच्चों को जन्म देती है, ये चमत्कार देखने पूरा गाँव आता है, वहीं वो चरवाहा और उसकी पत्नी पूनाची को कोसने लगते हैं क्योंकि गाँव में सूखा पड़ा है और पूनाची के बच्चों की देख़ रेख के लिए उनके पास संसाधन नहीं हैं, पूनाची उनकी गालियाँ सुनते हुए अपना दिन बिताती है।
पूनाची जब दूसरे बार अपने बच्चों को जन्म देती है तो उसे पूवन का धड़ से अलग सिर उसकी आत्मा को कोसता है, पूनाची के सात बच्चों में से एक बकरे की बलि उसी तरह चढ़ायी गयी है जैसे वो पूवन हो। अब पूनाची स्वतंत्र नहीं है, उसके गले में हमेशा एक रस्सी बांधी होती है और रस्सी की लम्बाई जितनी आज़ादी ही उसके पास है। पूनाची अपने जीवन से थक चुकी है, पूनाची तीसरी बार गर्भवती होती है और अपने मालिकों के लिए बोझ बन जाती है। और शुरू होती है पूनाची की वो जींदगी जिसमें बल्थज़ार और बोज़ो के जीवन की झलकियाँ है, उतनी ही संतुष्टि, त्रासदी और हिंसा है पर पूनाची अपनी ज़िंदगी को तब तक पकड़े रहती है जब तक उसमें सहनशीलता का आख़री कतरा बाक़ी रहता है।
पूनाची एक दिन अदृश्य हो जाती है और चरवाहे की पत्नी को पूनाची जैसे दिखने वाली एक पत्थर की मूर्ति मिलती है। पूनाची त्रासदियों की सूखी नदी के उस पार देवत्व पाकार पूजनीय बन जाती है।
ये कहानी पूनाची की आत्मकथा है जिसे हर उस इंसान को पढ़ना चाहिए जिसने बिना किसी कारण के, यूँ ही सड़क पर घूमते जानवरों से बैठ के बात की है, उन्हें गले लगाया है या उनके सर पर हाँथ रखा है और जिन्होंने नहीं की है, वो यह कहानी पढ़कर ज़रूर ही उनसे बात करने जाएँगे।
कुछ लोग ये भी कहते हैं की “mother, I was wrong” नीत्शे के आख़री शब्द थे
The Unbearable Lightness of Being, के आख़री अध्याय में मिलन कुंदेरा लिखते हैं की शायद नीत्शे घोड़े से, रने देकार्त की बातों के लिए क्षमा माँग रहे थे, अपने दर्शन में देकार्त जानवरों को आत्मा रहित मशीन के तौर पे देखते थे जिनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ़ मनुष्यों को आराम देना है, कुंदेरा सोचते हैं कि शायद नीत्शे घोड़े को उसकी आत्मा लौटाने आए थे, और अपनी आत्मा से निकटता खोजने भी।
हो सकता है उस दिन नीत्शे घोड़े की आँखों में बोज़ो, बल्थज़ार और पूनाची इन सब के जीवन की झलकियों को महसूस किया हो और हमारी सभ्यता को युद्ध से लेकर यात्रा में मदद करने वाले जीव के एहसान तले नीत्शे ने स्वयं के प्रभुत्व को दबता हुआ महसूस किया और टूट कर बिखर गए कि फिर कभी ना जुड़ सके।
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While reading this gem, I've cried for every animal I haven't treated right.