Pierre Cardin की जेब-घड़ी मेरे हथेलियों में थमाते हुए नानी ने कहा था कि इसको “तुम ही रखो! तुम ही सम्भाल पाओगे! रख लो नहीं तो कोई भी घुमा देगा!”
घड़ी के सफ़ेद डायल पर पीलापन चढ़ रहा था! या इतने सालों में पूरा चढ़ कर फिर उतर रहा था?
काँटे टूट कर काँच की रिम के पीछे अटके रह गए थे। चेन को पकड़ के रखने वाला हुक टूटा हुआ था।
मेरे हाथ में वो घड़ी थी जिसे कभी नाना के पिता जी पहना करते थे! घर में उन्हें सब बाबा बुलाया करते थे!
बीसवीं शताब्दी के बीच का दशक रहा होगा! ऊनीस सौ पचास - साठ के बीच का या आजु-बाजू का समय रहा होगा! उस समय बहुत कम लोग अंग्रेज़ी बोल पाया करते थे। शहर की बड़ी केमिकल फ़ैक्टरी में जब अंग्रेज विशेषज्ञ आया करते थे तो फ़ैक्टरी से supervisor बाबा को बुलवाने के लिए रिक्शा घर भिजवाते थे!
बाबा रिक्शा लौटा देते!
“आप चलिए, हम आ रहे हैं!” कड़क प्रेस की सफ़ेद धोती पहने बाबा पैदल निकल ज़ाया करते थे! वहाँ पहुँचकर अंग्रेजो की बात फ़ैक्टरी वालों को, और फ़ैक्टरी वालों की बात अंग्रेजो को समझाते थे!
अंग्रेजो ने बाबा के ट्रांसलेशन से खुश होकर बाबा को Pierre Cardin की वो हाथ घड़ी भेंट की थी!
ये सब नानी ने माँ को बताया होगा फिर माँ ने मुझे बताया था मैंने वापस जाकर नानी को यही कहानी बतायी और उन्होंने ऐसे सुनी जैसे पहले बार सुन रही हों!
फिर उन्होंने बताया था कि
जब नाना रेल्वे में गार्ड थे, कई-कई रात नहीं सो पाते थे! जब भी छुट्टी में घर आते उनके सोने का विशेष ख़याल रखा जाता था, गहरी नींद में नाना रेल को हाथ हिलाकर सिग्नल दिया करते थे फिर उनका हाथ पकड़ कर धीमे से नीचे रखना होता था
एक रेल्वे-गार्ड के स्वप्न में अंत-हीन पटरियों की जोड़ी पर एक साथ दौड़ती रेल गाड़ियाँ!
टेबल कवर से लेकर अपने बच्चों की फ़्रॉक! सब कुछ! जूट के पर्स और क्रोशिया की टोपी सब नानी घर पर ही सी देती थी! कपड़ों के साथ साथ पूरे घर पर भी नानी की पक्की सिलायी थी!
चिड़िया के आकार की रोटी! कटहल का अचार और अनेक मसालों के मिश्रण से बना बुकनू !
यह सब नानी अपने बच्चों को दे गयी!
उस समय घर बहुत छोटा था ! और परिवार बहुत बड़ा
पर बहुत से लोगों के एक साथ रहने के लिए ज़रूरी नहीं की घर बड़ा हो!
हाँ हमेशा खुला ज़रूर रहना चाहिए!
आस पास के लोग भी नानी को मम्मी कहकर ही पुकारा करते थी भले ही वो उनसे उम्र में बड़े हों
नानी का नाम माया-बाई से बदल कर मम्मी ही पड़ गया
कैसे सुख की अनुभूति होती होगी उन्हें कि वो छोटे-बड़े हर किसी के लिए माँ जैसी हैं
बहुत तीखे नैन नक़्श थे नानी के ! उतनी ही सुंदर मुस्कुराहट थी एकदम लाल गाल! जैसे-जैसे उमर बढ़ती गयी उन्हें उठने बैठने में तकलीफ़ होती थी तो कुर्सी पे बैठे-बैठे ही सब्ज़ी तोड़ दिया करती थी! गाती बहुत सुंदर थी, भगवान में इतनी आस्था थी उनकी की रोका ना जाता तो अंत तक उपवास रखना ना छोड़ती!
मम्मी
मम्मी धीमे-धीमे नानी जैसी दिखने लगी हैं
पापा धीमे-धीमे बाऊजी जैसे
कुछ समय में मैं शायद पापा के जैसा दिखने लगूँगा
और दीदी शायद मम्मी जैसी
हम सब अपने अपने बूढ़े आइने
एक दूसरे को सौंपते जा रहे हैं
एक गोल सुघड़ घेरे में
जैसे कोई बच्चों का खेल हो
पप्पी, पूनम और सुंतु अपनी बड़ी बहन को माँ समझने लगेंगी
और दोनों बुआ अपने छोटे भाई को अपना पिता
हो सकता है की शशि बुआ और उषा बुआ पापा को माँ जैसी लगने लगे
और हो सकता है
कि
चाचा और बड़े पापा को याद करते हुए
पापा बाऊजी को याद कर लें
गुड्डा, अनिल और सुनील में माँ दद्दु को खोजे
ताकि समय पड़ने पर
हम एक दूसरे में उनको खोज सके
जो अब यहाँ नहीं हैं
वे कहीं और हैं
जैसे नानी की पतली नाक
माँ के चेहरे पर
और बाऊजी का मोटी फ़्रेम का चश्मा
पापा की नाक पर
मैं चाहता हूँ कि एक दिन समूची दुनिया
अपने “अपनों” को कमरे, घर, छत और क्लर्क की डेस्क के पीछे ढूँढने के बजाए
अपने “अपनों” को दूसरों में ढूँढे
लोगों में ढूँढे
ये समूची दुनिया मेरा घर
और इस पर चलता एक-एक इंसान
मेरा रिश्तेदार
हम सब अपने अपने बूढ़े आइने
एक दूसरे को सौंपते जा रहे हैं बहुत ही बेहतर लिखा है👌
Mujhe apni naani yaad gayin yeh padh ke. Thanks for putting it in words :)