सब कुछ बचा रहेगा
बाबा के कंधों पर खड़े होकर
पके अमरूद तक हाथ पहुँचाते-पहुँचाते
पत्तियों की खिड़की से दिखी
नीले आसमान में उड़ती एक काली पतंग
उदास, जैसे टूटता तारा
दौड़ा उसे पकड़ने
कंधे के एक छोर से मैं कूद पड़ा
और पाया खुद को खड़ा
इस समूची दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ पर
जिसके आजू-बाजू बहती है एक अनदेखी नीली
आकाश गंगा
किसी बर्फीले ग्रह के सोए हुए पठारों पर लहराते दिखा
अम्मा का हाथ से बुना पीला शॉल
सिरा पकड़ कर फ़िसलता हुआ पहुंचा उस समय में
जब जन्म ले रहा था पृथ्वी का सबसे बूढ़ा ज्वालामुखी
लावा बन के रिसता रहा पृथ्वी के गर्भ से
गर्म खून
क्षण में सदियां बीती
खुद को पाया एक असीमित सैलाब के भीतर
महासागर की सतह से कछुए की पीठ पे बैठ पहुंचा
वहां,
जहां पानी पे लहरा रही थी सूरज की गर्म पीली रोशनी
पत्नी की उंगली थाम कर किनारे तक आया
जहां सब दोस्त खड़े राह देख रहे थे
उनके साथ ढूंढने निकल पड़ा
आंसू का सोया झरना
मन का होना
सपनों का भगोना
पर
इस महान पृथ्वी पर
घर के ही भीतर मिला
अपना एक कोना
जहां समय स्थिर है
और हम सब उसमें तैर रहें हैं
अपनी-अपनी धुरी में बंधे
घूमते निरंतर
अर्थहीन से
अपने अपने सौर मंडल में भटकते
अपने अपने ग्रह
एक जादूई विस्मय लिए अपनी आंखों में
छू कर भीतर कहीं अपने पड़ोसियों को
टकराते, गले लगाते,
हम भर देते हैं उन्हें अपने सुख से
अपने दुख से
बदले में हम भी लबालब हो जाते हैं उनके जीवन से
इस महान पृथ्वी पर
ढूंढा
अपना एक कोना
जहां पत्तियों की खिड़की से निरंतर दिखती है
नीले आसमान में उड़ती एक काली पतंग
उंगली की पोरों में अब भी चिपकी है
अंतरिक्ष की धूल
एक गर्म लाल आंच
महासागर की बूंद
आंगन की मिट्टी
और अमरूद की महक