शायद इस बरस!
"इस बरस आएगा लगता है!"
गरम हवा के थपेड़ो से सूखते होठों से एक बड़बड़ाहट निकली । बड़बड़ाने की आवाज़ के दरवाज़ा पार करते ही दीवारों के पीछे किसी पुराने सूपे में उछलते अनाज की आवाज़ रुक गयी और अनाज के किसी डब्बे में गिरने की आवाज़ आने लगी ।
"हओ। बड़ा आ रा वो , तीन बरस हो गए जरा भी ख़याल रहता तो आ नहीं जाता मरा अरे रुकता नहीं पर मुँह तो दिखा देता , पिछले बार आया था जभी तो पूरो गाँव खुस था ।”
फटे पुराने लाल कोट में लिपटा बूढा इंसान , एकदम खांसने लगा और कुछ देर बाद तो लगा की एक खासी और आएगी और वो अपने फेफड़े भी थूक देगा ।
"धेत्त...जा मर जा, दूँगीच नै पानी-वानी, कल का मरता आज ही मर जा"
बूढा थोड़ा संभला और दीवार की एक बड़ी सी दरार पर हाथ फेरते हुए संभल कर बैठा और लम्बी साँस लेने लगा । साँस लेते लेते दीवार को उसने ऐसे देखा जैसे दरारों में अब दीवार बसर करती हो । तपती धूप में पैर जलते से थे , लाल कोट वाला बूढ़ा हाँफते हुए बोला " मैं मर जाऊँगा तब पानी लाएगी मादरचोद ! पानी दे और वो बण्डल फेक इधर, सुबह से जरा भी नहीं लगी होठ को ,देख कैसे काँप रहे हैं, पी लेता हूँ तो खासी रुक जाती है ।”
कुछ देर बाद मेढ़ पर एक भरा हुआ लोटा आकर धम्म से बैठा और जमीन पे बीड़ी का बंडल जैसे जोर से दे मारा । घर के अंदर से आती आवाज़ एकदम रुआंसी सी हो गयी " बड़े वाले को सूखा लील गया, छोटे को सहर !कुछ अता-पता नहीं, अब तू मर गया तो
“ दिन भर बड़बड़ाते रहती है,ऊँचा बोला कर ।"
पैरों पे पड़ती तेज़ धुप अब चमड़ी खाने लगी थी, बूढ़ा धीरे धीरे उँगलियाँ अंदर की तरफ भींच कर छाँव में खसकने की कोशिश कर रहा था ।
इस बार आवाज़ तेज़ होकर, अंदर के दरवाजे से निकली और बूढ़े कानों में गिर पड़ी ।
" अरे तो यहाँ अंदर बैठना, वहां कहाँ मर रहा है धूप में "
" इंतजार कौन करेगा तेरा बाप ...हैं !"
देख मैं बोला था , इस बार आएगा !
बादल उठ आये हैं देख !"
औरत की आवाज़ दौड़ते हुए अंदर से बहार को आयी और लाल कोट वाले बूढ़े के भ्रम से बने बादल को आशा से देखने लगी ।