कमरे के भीतर कमरे के बाहर
कमरे के भीतर, अनगिनत किताबों के बीच…..
मैं जीना चाहता हूँ एक अनाम सदी के प्रारम्भ से अनाम सदी के अंत तक
प्रकाश के जन्म से लेकर समय की मृत्यु तक
देखना चाहता हूँ सभ्यताओं को बनते हुए
बसते हुए, मिटते हुए
समय के भीतर रहकर समय के बाहर झाँकना चाहता हूँ
देखना चाहता हूँ कालक्रम
मछली के पानी से बाहर निकल दो पैरों पे चलता हुआ आदमी बनते हुए
भाषा के अविष्कार से लेकर संसार के पहले कवि को कुछ लिखते हुए
जानना चाहता हूँ कि भाषा की उत्पत्ति के पहले कवि होते थे या नहीं ?
देखना चाहता हुँ
खेती के लिए पहली कुदाल बनते हुए
बरगद के नीचे बैठे सिद्धार्थ को बुद्ध बनते हुए
और सौ बरगदों की जगह एक कारख़ाना बनता हुए
लाओ त्ज़ु के जन्म से लेकर गांधी वध की तारीख़ देखना चाहता हूँ
मिलना चाहता हूँ उस मूँछ वाले दार्शनिक से जिसने कहा था कि भगवान मर चुका है.
फिर उस छोटी मूँछ वाले तानाशाह से भी जिसने कहा था कि मैं भगवान हूँ
Archduke Franz Ferdinand की हत्या से लेकर वियतनाम में नापाल्म से जली बच्ची को नंगे भागते हुए, फिर एक तस्वीर बनते हुए
पत्थरों को हथियार बनते हुए, भगवान बनते हुए.
मस्जिद के टूटने से लेकर Notre-Dame के गिरिजाघर को जलते हुए
हिरोशिमा-नागासाकी को मरते हुए, पुनर्जीवित होते हुए.
जंगलों को मरुस्थल बनते हुए
इस छोटे से जीवन में सब देखना चाहता हुँ.
फिर एक लम्बा मौन रख कर समय में हज़ार कोस दूर उल्टा चलना चाहता हूँ
पूछना चाहता हूँ किसी ज्ञानी से की क्या हमारा सम्पूर्ण इतिहास, ब्रम्हाण्ड की एक छोटी सी स्मृति तो नहीं ?
असंख्य घटनाओं की उथल पुथल के बीच जब अचानक प्यास लगी
मैं चुप चाप उठ कर कमरे से बाहर आ गया।
बाहर आँगन में मैंने देखा कि
पिता दाल भात खा रहे थे,
ऊपर से डाला गया घी दाल में पिघल रहा था
माँ पौधों में पानी डाल रही थी और पिता को बता रही थी की इस बार जासवन अच्छा उगा है
पलाश के सूखे पत्ते हिल रहे थे आँगन में पसरी धूप में बैठ, पत्नी वर्ग पहेली भर रही थी
उसने पूछा संस्कृत में तीन अक्षर का शब्द जिसका अर्थ “होना” होता है ,
पिता बुदबुदाए “ भवति ”
मैंने मटके का ठंडा पानी पिया,
इच्छा हुयी की बाहर निकल कर किसी अनजान आदमी का हाल चाल पूछूँ ,
मैंने पूछा “ ठीक हो?” उसने मुस्कुरा के बताया “ ठीक हूँ”
मैं उतना ही जीना चाहता हुँ जितना ज़रूरी है।
कुछ प्रमाणित नहीं करना चाहता
अपनी धीमी गति से बस सबको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहता हुँ
सबके एक कोस के लिए मैं अपना ढाई चलना चाहता हूँ
मैं बस “होना” चाहता हूँ
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