वंका
भाग 2। वंका और उस जोकर की आँखों के बीच में जो जगह थी वहां समय थम गया था और उस थमे हुए समय में वंका के भीतर एक ही दिशा में उसकी सारी इच्छाएं दौड़ रही थी।
पिछले भाग से -
पिता ने टॉर्च वंका को थमाया और खुद साइकिल से उतर कर पैदल चलने लगे वंका टॉर्च की रौशनी को जादुई शक्ति समझ कर यहाँ से वहां घुमा रहा था |
“पापा ! अगले महीने न्यू ईयर आ जायेगा ?
“हम्म !”
“जनवरी ! “
“हम्म”
“मेरा जन्मदिन?”
“हम्म “
वंका कुछ देर तक उँगलियों पे गिनता रहा! फ़िर एक उत्साह से बोला ..
“34 डेज़”
एक अनजान चिंता का भाव पिता के चेहरे पर पल भर के लिए मंडराया फिर ओझल हो गया
भाग २
घरों की दीवारों पर, खिडकियों पर, चौराहे पे बठे अलाव तापते आदमियों के झुण्ड पर ! टॉर्च की रौशनी हर दिशा में हलचल मचा रही थी । कुछ गिनी-चुनी दुकाने खुली थी । टॉर्च की रोशनी पहली दुकान से शुरू हुई और आखरी तक पहुंची फ़िर आखरी से पहली की दिशा में बढ़ने को हुई ही थी कि…
वंका ने कुछ ऐसा देखा की रौशनी वापस आकर एक छोटी सी दुकान पर आकर रुक गयी जहां टॉर्च की रोशनी थमी थी वहीँ वंका की बड़ी बड़ी आँखें भी गढ़ी रह गयी!
गिलहरी सी फुर्ती से वंका साइकिल से कूद कर अचानक उस दुकान की और भागा| वंका के पिता ने आवाज़ लगाई पर जब तक वंका दूकान तक पहुँच चुका था।दुकान के बाहर से ही वंका उसे एक-टक देख रहा था
छोटे से गुलाबी चेहरे पर अनोखे आश्चर्य का भाव!
कांच के उस पार सैकड़ों खिलौनों में उसकी ही आँखें थी जो वंका को यहाँ तक खींच लायी थी ...
बड़ी सी गोल गोल आँखें और नाक को घेरे एक लाल गोला ...ढीला सा पीला पतलून और लाल शर्ट पहने लगभग एक फीट का जोकर जिसकी तोंद पे ड्रम लटका हुआ था, जोकर के लाल जूते उसके मुँह से भी बड़े थे।
वंका और उस जोकर की आँखों के बीच में जो जगह थी वहां समय थम गया था और उस थमे हुए समय में वंका के भीतर एक ही दिशा में उसकी सारी इच्छाएं दौड़ रही थी। वंका के मुँह से भाप निकली और जाकर कांच पे जम गयी जोकर धुंधला गया, वंका ने कांच को साफ़ करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया ही था कि वंका के पिता ने झटका देकर उसे पीछे खींच लिया।
“पच्चीस बार समझाया है तुझे… ऐसे कहीं भी मत भागा कर! गाड़ियाँ चलती रहती है… समझ में नहीं आता ?”
वंका की आँखों में आंसू आ गए.. उसने रोता हुआ मुँह बनाकर.. पूरी सड़क पर यहाँ से वहां नज़र दौड़ाई ।
सब सुन-सपाट ! किसी भी गाड़ी का नामो-निशाँ नहीं था ..हल-चल के नाम पर दूर एक स्ट्रीट लाइट थी जो भभक कर जल उठती थी फ़िर बंद हो जाती थी “ वंका ने अपनी बड़ी बड़ी आँखों को और बड़ा कर के पिता की ओर गुस्से से देखा और आँखों से पूछा “कहाँ है गाड़ी? “
“अरे तो तुझे बता के आएगी क्या ? वंका ! मैं आ रही हूँ! हट जा! क्या देखने आया था ऐसे भागकर !”
ये सुनते ही वंका ने अपने आंसू पोछे और तेज़ क़दमों से वहीँ जाकर रुक गया! वंका ने अपने पिता को झुकने का इशारा किया ...अब दोनों ही बड़ी ध्यान से उस जोकर को देख रहे थे । वंका के पिता की नज़र उसकी कीमत पे पड़ी .. उन्होंने वंका को वापस धीरे से गोद में उठा लिया ..
पिता के कंधो पर लदा वंका पीछे मुड़ कर उस जोकर को अपने से दूर जाते हुए देखता रहा तब तक जब तक वो जोकर एक झील मिल करती रंगीन लाल-पीली रोशनी में बदल गया!
वंका साइकिल के डंडे पे लगी अपनी छोटी सी सीट पर चुप बैठा था।पिता समझ गए की आख़िर वंका चुप क्यों है!
“क्या हुआ “
“ वो जोकर कितना सुंदर था पापा!”
“ हट्ट! डरावना था! जोकर कभी सुंदर होते हैं क्या?”
“नहीं ..पापा सुंदर था ..टमाटर जैसी नाक थी ..इत्ता मोटा पेट और उसपे बाजा ….उसके जूते तो मेरे जूतों से भी बड़े थे ..है ना पापा !”
“हम्म”
वंका ने अपनी गर्दन पिता क और घुमाकर बिना शब्दों के एक सवाल किया ..
“दिला दोगे?”
वंका की आँखों में झरने की सी चमक थी, प्रेम था ..आश्रित होने का भाव था। वंका के पिता ने प्यार से वंका के सर पर अपनी हथेली रख दी और उन्होंने भी बिना शब्दों के “कोशिश करेंगे “ ऐसा जवाब दिया।
दोनों घर पहुंचे …जैसे ही दरवाज खुला वंका का कुत्ता “चेखो” उसकी पैरों से लिपट कर कुं-कुं करने लगा |
वंका एक कोने में रखी बोरी से कोयले निकालने लगा और छोटी -छोटी लकड़ियों से तसले को भरने लगा।वंका के पिता ने मिटटी तेल की बोतल उठायी और कुछ बूंदे छिड़क के लकड़ियों आग दी, और बाहर आ गए
उन्होंने एक सिगरेट जलाई! और एक छोटी सी डाइअरी अपनी जेब से निकाल कर कुछ ढूँढने लगे!
किसी पन्ने के उप्पर दिसम्बर लिखा हुआ था!
फ़ेहरिस्त में सबसे उप्पर स्वेटर लिखा था ..फ़िर किराना और उसका खर्च ...
उसके नीचे वंका के पिता ने लिखा
चेन कवर – 60 रुपए
जन्मदिन – 500 रुपए
कुछ सोच के वंका के पिता ने आगे लिखा
जोकर -1300 रुपए
और फ़िर फ़ेहरिस्त में सबसे उप्पर लिखा हुआ “स्वेटर” काट दिया …
और सिगरेट पीते हुए खिड़की से उस पार से वंका और चेखो को तसले के पास बैठे आग तापते देखने लगे ।
अगर आपको ओवर कोट के लेख, कविताएँ और कहानियाँ पढ़ कर कुछ नया महसूस होता है तो अपने
“अपनों से” ज़रूर शेयर करें और ओवर-कोट को सब्स्क्राइब करें
हर लेख, कविता और कहानी सीधे आपके इन्बॉक्स में पहुँचेंगी!
art1- father and son by Nathalie Chaput
art2 -unknown