गोल्डन नीडल सीविंग स्कूल और एक तिलिस्मी शहर
अगर शब्द आपको मौत के पास ले जा सकते हैं तो फिर भी क्या आप लिखेंगे एक आख़री कविता?
हेरात के महान कवि अली शेर नवाई का “हेरात” का छोटा सा पर सटीक बखान-
“यहाँ इस शहर में, जिसका नाम हेरात है, अगर आप थक कर कहीं बैठे और अपने पाँव लम्बे करें तो हो सकता है की आपकी लात किसी शायर की तशरीफ़ पर टकराए”
ये आलेख अफ़ग़ानिस्तान के एक मरूद्वीप “हेरात” के स्वर्णिम इतिहास की खोज में, मानवीय विकास का आधार बनी तीन महान सभ्यताओं और उनके महत्व को छूते हुए आगे बढ़ता है, और पहुँचता है मिडल एजेज़ के दौर में, सिल्क रूट पे चलते हुए बीसवीं सदी के अफ़ग़ानिस्तान के इर्द गिर्द थमी ब्रिटेन और रशिया की ideological लड़ायी और बीसवीं सदी के अंत में तालिबान के जन्म तक पहुँचता है।
index
इतिहास और हेरात-
पर्शियन साम्राज्य और तीन मानव सभ्यताएँ
सिल्क रोड और हेरात
हेरात का स्वर्णिम इतिहास
द ग्रेट गेम
कॉम्युनिज़म और अफ़ग़ानिस्तान
हेरात का विद्रोह
गोल्डन नीडल सीविंग स्कूल
ज़ेना करमज़ादे और लैला राज़ेघी से मुलाक़ात
तालिबान और रोज़ की ज़िंदगी
खफ़श
राजनीति, इतिहास और तथ्यों से परे होकर यहाँ शब्द हेरात और उसके DNA में बसे अद्भुत विद्रोह को समझने की कोशिश करते हैं और बुनते हैं एक कहानी जो ढूँढती है जवाब कुछ ज़रूरी सवालों के-
तानाशाही के विभत्स दौर में भी आम नागरिक अपने डरे-सहमे अन्दाज़ में कैसे विरोध के नए तरीक़े ढूँढ लेता है?
अगर कविता और शब्द आपको मौत के पास ले जा सकते हैं तो फिर भी क्या आप लिखेंगे
एक आख़री कविता?
एक आख़री शब्द?
लगाएँगे वाक्यों में छूटा रह गया एक मामूली नुक़्ता?
और अगर आप एक अफ़ग़ानी औरत हैं तो क्या अपने बुर्के में छुपा कर एक कलम
निकल पाएँगी सड़कों पर बाहर
मन की दीवार पर चुप चाप, चीखते हुए क्रांति के नारे लिख पाएँगी?
ब्रिटिश पत्रकार क्रिस्टीना लैम्ब की किताब “The sewing circles of Herat; a memoir of Afghanistan” में लिखे उनके अनुभवों में से हेरात का लेखा जोखा उधार लिया गया है जो आलेख के अंत में हेरात के दैनिक जीवन का ताना-बाना बुनता है -
“बॉर्डर पर लगे साइन बोर्ड से पता चला की हेरात शहर से अब भी 123 किलोमीटर की दूरी बाक़ी है, बमबारी से ख़राब हुयी सड़कों के कारण रास्ता और भी लम्बा लग रहा था । तेज हवा में एक कोका कोला की बोतल जले हुए रूसी टैंक के इर्द-गिर्द घूम रही थी। बॉर्डर क्रॉस करते ही ड्राइवर, कार में एक पश्तो कसेट बजा रहा था जिसमें गायक एक ही धुन को नाक से गा रहा था। टेप बंद करने के लिए मैं चाहकर भी नहीं कह पायी। इतने सालों तक तालिबान ने म्यूज़िक बैन कर रखा था।हम हेरात पहुँचने वाले थे।शाम के समय नीले आसमान में उठे धूल के तूफ़ान को पार करते ही मुझे वो ऐतिहासिक मीनारें दिखायी देने लगी, जो लगभग सौ फ़ीट से भी ज़्यादा ऊँची थी।”
हेरात का इकलौता होटल “मोवफ़क” ही मेरा ठिकाना था । सामने ही एक व्यस्त चौराहा था जिसका नाम था “गुल” चौराहा, पश्तो और दारी भाषा में गुल का अर्थ होता है “फूल”। अभी क़ुछ हफ़्ते पहले तक ही, तालिबान “गुल” चौराहे पर फ़रमान ना मानने वालों को फाँसी के तख़्तों पर लटकाया करता था।
मैं नहीं हूँ
चिनार का
कोई नाज़ुक पेड़
कि हिल जाऊँगी
कैसी भी हवा से ।
मैं एक
अफ़गान औरत हूँ,
जिसके मायने सिर्फ़
चीत्कार से
समझ में आते हैं ।
नादिया अंजुमन
इतिहास और हेरात -
“अगर आप पूछेंगे कि इस जहां में सबसे खुशहाल ज़मीन कौन सी है ? तो जवाब मिलेगा की ये दुनिया अगर एक समुद्र है और *ख़ोरासान एक सीप है तो हेरात उसके बीच में बैठा एक मोती है ।”
रूमी (1207-1273)
ख़ोरासान पर्शियन साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण प्रांत था जो उत्तर पूर्वी ईरान, दक्षिणी तुर्कमेनिस्तान और उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान को समेटे हुए था। ख़ोरासान के चार पिल्लर; अफ़ग़ानिस्तान का हेरात और बल्ख़ प्रांत, तुर्कमेनिस्तान का मर्व और ईरान का निशापुर सबसे समृद्ध शहर थे ।
“ख़ोरासान” का अर्थ “वो ज़मीन जहां से सूरज निकलता है”, ससनीयन राजवंश से मिला जो आख़री ईरानी राजवंश के रूप में जाना जाता है , उसके बाद लगभग सातवी-आँठवी शताब्दी में इस्लाम की दस्तक हुयी और मुग़ल आक्रमण की शुरुआत भी, ख़ोरासान की महानता को समझने के लिए थोड़ा पर्शियन साम्राज्य की ओर रुख़ करते हैं
पर्शियन साम्राज्य और मानव सभ्यता-
मानवीय इतिहास के सबसे महान साम्राज्यों में से एक पर्शियन साम्राज्य जो पश्चिम में यूरोप के Balkan peninsula- (आज के समय में बुल्गारिया, रोमानिया और यूक्रेन के कुछ हिस्सों को समेटे हुए) , Egypt से लेकर पूर्व में भारत की Indus Valley Civilisation तक फैला हुआ था, एक ऐसे साम्राज्य की कल्पना लगभग असम्भव सी लगती है जिसमें पूर्वी मनुष्य सभ्यताओं की महानतम उपलब्धियाँ शामिल थी -
1. Mesopotamia (8000-2000BC)
2. Egyptian Civilisation/ नील नदी के किनारे बसी मिस्र सभ्यता (3100 BC- 332 BC)
3. Indus Valley Civilisation सिंघु घाटी सभ्यता (3300-1300BC)
Mesopotamia अपना नाम पाता है ग्रीक से- MESO का अर्थ - “बीच में “और POTAMOS का अर्थ नदी -“नदियों के बीच बसी सभ्यता”
Mesopotamia वो महान सभ्यता है जिसे व्हील के अविष्कार का श्रेय दिया जाता है, cursive script का प्रयोग, Mathematics में sexagesimal number system ( संख्या 60 को आधार मानकर बना एक numeral system) के इस्तेमाल से एक घंटे को 60 मिनट में तोड़ना और दिन को 24 घंटो में बाँटना, circle को 360 डिग्री मे विभाजित करना, अलग अलग geometrical shapes का area ज्ञात कर पाना। यहाँ ऐल्जेब्रा का जन्म हुआ, Astrology और कृषि के क्षेत्र में इस सभ्यता का अद्भुत योगदान रहा। मारी, उरुक और बेबीलोन जैसे महान शहर इसी सभ्यता का हिस्सा थे ।
INDUS VALLEY CIVILISATION- (सिंधु घाटी सभ्यता)-
Urban planning, governance, water supply system, efficient drainage system का श्रेय इसी सभ्यता को जाता है, ईंटों को पका कर घर बनाना और अद्भुत मूर्ति कला, अनाज रखने के लिए स्टोर हाउस और धार्मिक स्थल, हरप्पा के अवशेष उस समय की उच्च तकनीक और प्रभावी नगर पालिका के साक्ष्य हैं।
EGYPTIAN CIVILISATION-
पपायरस के पेड़ों से काग़ज़ बने, जिसपर समय को मापने का काम शुरू हुआ, पपायरस से नावें चटाइयाँ रस्सियाँ चप्पलें बनायी गयी, कला धर्म व्यापार और फ़िलासफ़ी का केंद्र रही ये सभ्यता हमें गिज़ा के पिरामिड, स्फ़िंक्स, और इतिहास समेटे ममी दे गयी. Herodotus के अनुसार मिस्र सभ्यता में अलग बीमारियों के लिए अलग डाक्टर्ज़ थे, इन सभी की ट्रेनिंग “पर अंख”/ “ house of life” नाम के एक इन्स्टिटूशन में होती थी।
इन सभ्यताओं के अस्तित्व ने पुरातन काल के मानवीय समाज को एक नयी दिशा दी।
FOUR RIVER VALLEY CIVILISATIONS
सभी सभ्यताओं का जन्म महान नदियों के पास हुआ
Tigris और Eupherates नदियों के बीच Mesopotamia
नील नदी के किनारे पे मिस्त्र (EGYPT)
Indus नदी ने सिंघु घाटी सभ्यता को जन्म दिया
और हुआंग हे नदी के पास चीन की शांग dynasty ने जन्म लिया
Iron age में फलने फूलने वाला पर्शियन साम्राज्य (550-331 BC) लगभग दो सौ सालों तक धर्म, कल्चर, विज्ञान और कला और तकनीक का केंद्र रहा। इसी दौरान अफ़्रीका एशिया और यूरोप के बीच सर्व प्रथम व्यापार शुरू हुआ और विश्व की सबसे पहली पोस्टल सर्विस की नीव रखी गयी
331BC में सिकंदर का आक्रमण हुआ और ये विशाल साम्राज्य टूटने लगा पर इन महान सभ्यताओं के आने और जाने के दौरान एक नया परिवर्तन आया- साम्राज्यों के बीच होने वाला व्यापार बढ़ता रहा जिसने जन्म दिया roads के एक नेट्वर्क को जिसे कहते हैं सिल्क रोड या सिल्क रूट
सिल्क रोड और हेरात -
चीन की हन dynasty ने जब 130 BC में व्यापार के दरवाज़े खोले तब रोम, ग्रीस और ईजिप्ट में चीन का सिल्क छा गया। सिल्क के साथ-साथ दूसरी चीजों का भी व्यापार शुरू हुआ। ईस्ट से चायपत्ती, डाई, पर्फ़्यूम और पॉर्सेलन वेस्ट जाने लगा, भारत और अरब देशों के मसाले वेस्ट पहुँचने लगे और वेस्ट से घोड़े, ऊँट, शहद, मदिरा, गोल्ड ईस्ट की तरफ़ आने लगे। घोड़ों ने मोंग़ोल सल्तनत के लिए युद्ध कला में क्रांति ले आयी वहीं चीन के गन पाउडर से वेस्ट में युद्ध का रुख़ बदल दिया।
सभ्यताओं के इतिहास में सिल्क रूट के महत्व को दर किनार नहीं किया जा सकता, व्यापार के साथ-साथ उस समय के वैज्ञानिक विचार, धर्म और नयी तकनीक, गणितीय ज्ञान, भाषा और कल्चर का लेन देन भी शुरू हुआ
लगभग चार हज़ार मील लम्बा सिल्क रूट पंद्रह सौ सालों तक ऐक्टिव रहा, चीन के हन राज्य से लेकर तब तक जब तक Ottoman राज्य ने वेस्ट से व्यापार बंद नहीं कर दिया
*सिल्क रोड किसी एक रोड का नाम नहीं पर बहुत रास्तों का एक नेट्वर्क था जिसपर व्यापार होता था।
इन सभ्यताओं की महानता और समय के साथ साथ धीरे धीरे व्यापार से हो रहे परिवर्तन को अफ़ग़ान का प्रांत हेरात चुप-चाप सोकते रहा और मिडल एजेज़ के एक महत्वपूर्ण कल्चरल हब के रूप में उभरा ।
नाओमिद रेगिस्तान के उत्तरी छोर पे बसा हेरात का मरु द्वीप
हेरात सिल्क रूट के इर्द गिर्द बसे असंख्य शहरों में से एक था जहां दूर देशों से आए व्यापारी अपने मसाले बेचने आते थे और हेरात के तरबूज़ अपने साथ लिए जाते थे।
महान दार्शनिक Herodotus ने हेरात के बारे में कहा था की मध्य एशिया का यह शहर पूरी दुनिया के लिए ब्रेड का बास्केट है, पर बाहरी ताक़तों के लगातार हमलों ने इस खूबसूरत मरूद्वीप को एक सताए हुए शहर में बदल दिया।
330BC में सिकंदर का आक्रमण, 607 AD में अरब आक्रमण, उसके बाद समानिद, घोरिद, ग़जनविद और सेलजक जैसी इस्लामी सल्तनत का हिस्सा रहा
बारहवीं सदी में गेंगिस खान की अगुआई में मोंग़ोल आक्रमण ने हेरात को पूरी तरह तबाह कर दिया, खेती के लिए ज़रूरी नहरें बर्बाद कर दी गयी, मस्जिद, बाज़ार, घर सब कुछ नेस्तनाबूत हो गया, चौदहवीं सदी में फ़िर तैमुर लंग ने आतंक मचाया और सोलहवीं शताब्दी में उज़बेग आक्रमण
पर हेरात ज़िंदा रहा।
“सुंदर शहर सबसे ज़्यादा दुखी रहते हैं, जैसे तैसे खूद को बचाए रखते हैं”
मोंग़ोल के आधीन हेरात स्थानीय शासकों के जिम्मे था, कर्त सल्तनत ने हेरात को फिर से समेटा, नहरें, पूल, मस्जिदें, शहर को बचाने वाली मिट्टी की दीवारें फिर खड़ी हुयी।
1405 से 1447 तक तैमुर के वंशज शाहरुख़ और उसकी पत्नी ग़ोहर शाद ने Timurid era में हेरात को एक नया आयाम देने की ठानी
तिमुरिद सल्तनत के शासक बलरस ट्राइब के वंशज थे जो तुर्किश मांगोलीयन ओरिजिन से आते हैं, इस्लाम धर्म अपना लेने के बाद उन्होंने तुर्किस्तान और खोरासन को अपना गढ़ बना लिया। तिमुरिद काल की ख़ासियत यह थी उस समय शाहरुख़ के राज में मोंगोलीयन आक्रामकता तो थी ही साथ ही पर्शीयन कला भी मिली हुयी थी। और हेरात को समकालीन वैश्विक कला का संगम बनाने में सबसे ज़्यादा श्रेय दिया जाता है हेरात की रानी गौहर शाद को।
गौहर शाद को दुनिया और इतिहास शाहरुख़ की पत्नी के रूप में ही जानते हैं पर उन्होंने एक ऐसे साम्राज्य की कला को संगठित किया जो तुर्की से चीन तक फैला हुआ था और आने वाला समय मुग़ल आर्किटेक्चर के लिए नए दरवाज़े खोलने वाला था।
हेरात का बर्बाद हो चुका मसल्ला कॉम्पलेक्स अलग अलग कलाओं के मिश्रण का उदाहरण था, तिमुरिद काल इस्लामिक आर्किटेक्चर और कला का गोल्डन पिरीयड माना जाता है। फ़िरोज़ी और नीली टाइल्ज़ के साथ साथ महीन ज्यामितीय आकारों की नक़्क़ाशी इन मीनारों को एक नया, रहस्यमयी आयाम देती थी । शाहरुख़ की पत्नी गौहर शाद और उनके वंशजों ने इस्लामिक मीनारों की बदौलत मुग़ल स्कूल औफ़ आर्किटेक्चर को पूरे विश्व में प्रसिद्ध किया
Timurid सल्तनत के कलाकार हर जगह से कुछ सीखते थे, Mosaic design और चित्रकारी चीन से, कविता फ़ारसी से, वास्तुकला दुनिया भर से।
हेरात को उसकी इमारतों के कारण प्रसिद्धि मिली, ईंटों पर रंग बिरंगी टाइल्ज़ के काम से पूरा शहर चमक उठा । हेरात को अपने अनोखे आर्किटेक्चर के लिए पहचान दिलाने वाली गौहर शाद एशियन इतिहास की सबसे शक्तिशाली शक्सियतों में एक मानी जाती है जिनकी कब्र पर लिखा है “the Bilkis of all time”.
अब्दुर रहमान जामी जिन्हें महानतम पर्शियन कवि माना जाता है , शाहरुख़ की सल्तनत में ही उन्होंने अपनी कविताएँ, ग़ज़ल और शेर लिखे। गौहर के सहारे ही बिहज़ाद ने पर्शियन miniature पेंटिंग को नयापन दिया, सुल्तानों के शिकार खेलते हुए दृश्य और नवाबों का रास उन्होंने चटक नीले और फ़िरोज़ी रंगों से बयां किए । इस्लामिक कैलिग्राफ़ी की कला अपने स्वर्णिम दौर में थी
मोंग़ोल ट्राइब में औरतें घुड़सवारी करती थी, युद्ध कला में पारंगत थी और युद्ध पर गए सुल्तानों की अनुपस्थिति में उनकी पत्नियाँ राज्य की नीतियाँ और आम जनता को सम्भाला करती थी। मोंग़ोल सेना में महिलाओं की भागीदारी तक़रीबन बीस प्रतिशत थी, गौहर शाद मोंग़ोल वंश की थी और लड़ना जानती थी। 1447 में शाहरुख़ की मृत्यु के बाद भी अगले दस सालों तक हेरात को सम्भाले रखा । मसल्ला कॉम्प्लेक्स को सभी ओर से 10 मीटर ऊँची दीवार से घेरा गया और तीस मीटर ऊँची मीनार 1417 से 1437 के बीच में खड़ी की गयी मक़बरे और मीनार पर सुंदर नीले, पीले, हरे और सफ़ेद रंग की टाइल्ज़ का काम था। आज सब कुछ नीरस है जो भी बचा है उस से आँखें इन इमारतों की ख़ूबसूरती का अंदाज़ा ही लगा सकती हैं।
“1507 में जब बाबर हेरात पहुँचा तो हेरात को देख़ कर दंग रह गया, ये बाबर के लिए एक नयी दुनिया थी। कहा जाता था की मदिरा हेरात में बहती थी। हर दूसरे चौराहे पर शायर अपने शेर पढ़ रहे होते थे युद्ध से ज़्यादा शतरंज खेला जाता था , चीड़ के पेड़, धूल के ग़ुबार के बीच दिखती रंग बिरंगी इमारतें और यहाँ के लोग इस शहर को अनोखा बनाते थे!”
बाबरनामा में बाबर ने हेरात को याद करते हुए लिखा है कि पूरी दुनिया में हेरात जैसी कोई और जगह नहीं
द ग्रेट गेम -
उन्नीसवी सदी के आने वाले समय में Imperial Britain और Russia का “The great game” शुरू होने वाला था। मध्य एशिया पे दोनो ही अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहते थे और ब्रिटिश राज्य, Tsarist रशिया को अपने क्राउन जेवेल भारत से दूर रखना चाहता था । उस समय ब्रिटिश साम्राज्य हर देश पर अपना आधिपत्य ज़माना चाहता था, और मिडल ईस्टर्न देशों को यह बात क़तई मंज़ूर नहीं थी।
ब्रिटिश साम्राज्य ने रशिया को भारत से दूर रखने के लिए अफ़ग़ानिस्तान पे चढ़ाई कर के अपने शासन में ले आना ठीक समझा और युद्ध छेढ़ दिया, जिसे जाना जाता है ब्रिटिश अफ़ग़ान युद्ध के नाम से
(resulting in a series of British-Afghan Wars (1838-42, 1878-80, 1919-21)
1921 में ब्रिटिश साम्राज्य पहले ही जर्मनी के ख़िलाफ़ प्रथम विश्व युद्ध में लड़ रहा था, इसी समय उसे तीसरे अफ़ग़ान- ब्रिटिश युद्ध में हार झेलनी पड़ी और अफ़ग़ानिस्तान एक आज़ाद मुल्क बना
अंग्रेजों की हार के बाद रशिया ने अफ़ग़ानिस्तान से सम्बंध बनने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी और अफ़ग़ानिस्तान पर धीरे धीरे सोवीयत प्रभाव बढ़ने लगा
1885 में अंगरेजो ने रूसी कदमों को रोकने के लिहए मसल्लाह की चार मीनारें गिरा दी शाद का बनाया हुआ शहर धीरे धीरे तबाह होते जा रहा था। 1931 के भूकम्प के बाद दो मीनारें और ध्वस्त हो गयीं । एक झुकती मीनार को अमरीकी तारों से जैसे तैसे बाँध के खड़ा रखा गया है।
कॉम्युनिज़म और अफ़ग़ानिस्तान-
1964 में Afghanistan के लोकतांत्रिक राज तंत्र घोषित होने के समय से ही कॉम्युनिस्ट प्रभाव बढ़ने लगा था। 1964 से लेकर 1992 में People’s Democratic Party of Afghanistan (PDPA) के गिरने तक कॉम्युनिस्ट विचारधारा ने काफ़ी हद तक काबूल की राजनीति को प्रभावित किया था।
ग्रेट गेम की शुरुआत से Tsarist रशिया afghanistan ब्रिटिश राज्य के ख़िलाफ़ लड़ने में अफ़ग़ानिस्तान की मदद करते आ रहा था। PDPA अफ़ग़ानिस्तान की पहली कॉम्युनिस्ट पार्टी थी जिसके प्रणेता नूर मोहम्मद ताराकी भारत और रशिया के कॉम्युनिस्ट मूव्मेंट से प्रभावित थे। और अफ़ग़ानिस्तान में भी प्रगतिवादी कॉम्युनिस्ट दौर लाकर देश को इस्लामिक कट्टरवाद से मुक्त करवा कर एक नए आयाम पे ले जाना चाहते थे । Saur revolution जिसे एप्रिल क्रांति भी कहा जाता है जिसमें 1978 में PDPA ने अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति की सत्ता पलट दी और one party system लागू कर दिया।
PDPA के भीतर भी एक अजीब सी राजनीति शुरू हो गयी और वो दो गुटों में बंट गया - खल्क़ और परचम। परचम देश के पढ़े लिखे urban intellectuals को represent करता था तो वहीं खल्क़ गाँवों के लोगों की माँग उठाता था, परचम के नेता थे बबरक कर्मल और खल्क़ के नेता थे ताराकी और हफ़िज़ुल्लाह अमीन।
खल्क़ तबके ने अपने दबदबे से परचम तबके के नेताओं को या तो जेल भिजवा दिया या फिर उन्हें रूस भागने पे मजबूर कर दिया। खल्क़ तबके की अगुआई में PDPA ने लैंड और मैरिज रिफ़ॉर्म् ऐक्ट इंट्रडूस किये, साथ ही Afghanistan में कट्टर इस्लाम को सोशलिज़म से बदलने का बड़ा ज़िम्मा उठाया, यूनिवर्सल एजुकेशन और महिलाओं के लिए एक समान आधिकार लाने की भी कोशिश की
पर सत्ता में आते ही अमीन और ताराकी के सम्बंध बिगड़ने लगे और 1979 में अमीन ने ताराकी की हत्या करवा दी और और सत्ता हड़प ली पर अफ़ग़ानिस्तान के लम्बे इतिहास में ये कोई नयी बात नहीं थी की कोई बाहरी ताक़त अफ़ग़ानी राजनीति को चला रही हो। PDPA को सोवियत रूस का समर्थन था तो उनके विरोधी Afghan National Government के पीछे अमेरिका खड़ा था।
1979 में जब सोवियत संघ के सामने ये बात साफ़ हो गयी की इसी समय अपने चरम पर चल रहे ईरान की इस्लामिक क्रांति के असर से बहुत से गुट और विरोधी अब कॉम्युनिस्ट PDPA के विरोध में खड़े होंगे और PDPA घुटने टेक देगी, अमीन द्वारा लायी गयी socialist reformist policies को पूरे देश में सिरे से नकारा जा रहा था तब रूस में बैठी हाई कमांड को एक फ़ैसला लेना पड़ा जिससे अफ़ग़ान इतिहास ने एक नया मोड़ ले लिया
27 december 1979 को सोवियत संघ ने ऑपरेशन 333 लॉंच किया और अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हफ़िज़ुल्लाह अमीन की हत्या कर दी और देश का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया
देश से निकाले गए, परचम तख़्त के लीडर बबरक कर्मल को अफ़ग़ानिस्तान का लीडर बना दिया गया
यहाँ शुरूआत होती है सोवियत अफ़ग़ान युद्ध की
सोवियत आर्मी के अफ़ग़ान पहुँचते ही लड़ाकों के समूह, जिन्होंने PDPA और कॉम्युनिस्ट विचारधारा से लड़ने के लिए बंदूक़ें उठायी थी वो अब सोवियत सेना से लड़ने लगे। पहाड़ों पर रहने वाले , खेती करने वाले इन मुसलमान गुरिल्ला लड़ाकों को मुजाहिदीन कहा जाता था जो अलग अलग इलाक़ों से आते थे और अलग परम्परा से ताल्लुक़ रखते थे पर कॉम्युनिज़म के विरोध में और इस्लाम की रक्षा में एकजुट हो गए।
वेस्ट इन समूहों को अफ़ग़ान रेज़िस्टन्स के नाम से भी जानता था
आने वाले सालों में सोवियत संघ ने इस युद्ध में एक लाख से ज़्यादा सैनिक भेजे, अपना सारा बल लगा दिया पर शहरी अफ़ग़ानिस्तान से आगे नहीं बढ़ पाए, गाँवों पे मुजाहिदीन नियंत्रण रहा। 1989 में सोवियत संघ के बिखरने के पहले उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने का फ़ैसला किया इस उम्मीद में कि रूसी सहायता से मुहम्मद नजीबुला की अगुवाई में PDPA इस देश की कॉम्युनिस्ट सरकार को सम्भालेगा पर उनके जाते ही 1992 में नाजीबुला को राष्ट्रपति के पद से हटा दिया गया और फिर लड़ाकों का समूह देश में अपनी सरकार स्थापित करने के लिए लड़ने लगा इसी ऊहापोह में जन्म हुआ तालिबान का, पश्तो भाषा में इस शब्द का अर्थ है “छात्र”
1979 हेरात का विद्रोह - ताराकी की हत्या के पहले जब अफ़ग़ानियों पे कॉम्युनिज़म थोपा ज़ा रहा था । हेरात विचलित हुआ और1979 के 15 मार्च से 20 मार्च तक पूरा हेरात एक हिंसक विद्रोह की गिरफ़्त में चला गया, इस विद्रोह को अफ़ग़ानिस्तान का कॉम्युनिज़म के विरुद्ध जनता का पहला विरोध माना जाता है। ताराकी और अमीन के नेतृत्व में लाए ज़ा रहे अग्रेरीयन रिफ़ॉर्म और शिक्षा में इस्लाम विरोधी परिवर्तन हेरात के विद्रोह का बड़ा कारण बने, 5 दिन तक चली हिंसा में लोगों ने तेल के पीपों को अपनी ढाल बनाया और सरकार के सैनिकों से लड़ते रहे। तीन हज़ार से लेकर पच्चीस हज़ार लोगों ने अपनी जान गवाईं
हेरात का विद्रोह सोवियत संघ के लिए चिंता का विषय बना और उन्होंने अमीन के नेत्रत्व पर अपना भरोसा खो दिया और उसकी हत्या का निर्णय लिया ।
10 साल तक चला ये युद्ध अफ़ग़ानिस्तान के वही साबित हुआ जो अमेरिका के लिए वियतनाम साबित हुआ था, रशियन सेना के अफ़ग़ानिस्तान से निकलते ही, नब्बे के दशक की शुरुआत में ज़ल्द ही Afghanistaan तालिबान की पकड़ में आ गया और हेरात जैसे शहर फिर नेस्तनाबूत किए गए पर हेरात फिर लड़ा।
उन्नीसवी सदी में इम्पीरीयल ब्रिटेन, बीसवीं सदी में कॉम्युनिस्ट रशिया अब इक्कीसवी सदी में अमेरिका तालिबानी आतंक से लड़ने के लिए और ट्विन टॉवर पे अटैक का बदला लेने के लिए अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में घुसपैठ करने वाला था,
एक और सदी
एक और युद्ध
जो बीस बरस चलता ही रहेगा
आम लोगों की ज़िंदगी भी चलती ही रहेगी, और हर दिन लड़ना होगा अपने हक़ों के लिए
तालिबान के शासन में ज़िंदगी नरक बन जाएगी ये हेरात के लोग जानते थे
आगे के अंश, किताब से Christina lamb के शब्दों में
जिस समय मैं हेरात पहुँची, उस समय तालिबान डिफ़ेन्सिव पर था और अमेरिकन आर्मी से बचकर कंधार की तरफ़ भाग रहा था, लोगों में फिर भी एक अजीब सी हताशा थी जैसे कंधे लटका कर नीचे देखते रहना कोई आदत हो
गोल्डन नीडल सीविंग स्कूल -
तालिबान के हेरात पर क़ब्ज़े के बाद एक भी हेराती तालिबानी adminsitration का हिस्सा नहीं बना, हेरात के लोगों का प्रगतिवादी इतिहास जिसमें एक औरत का ख़ास रुतबा है - गौहर शाद, और जहां की ज़्यादातर जनसंख्या शिया मायनॉरिटी है, ये हेरात के collective disobedience का बहुत बड़ा कारण था। जो तालिबान को नागवार गुजरा और तख़्त पर बैठते ही तालिबानियों ने शहर में महिलाओं के हम्माम बंद कर दिए, पर्शियन भाषा बोलने पे रोक लगा दी, सूफ़ी संतों की बहुत सी मज़ारों पे माथा टेकने के मनाही कर दी, और गवर्नर ऑफ़िस पे बनी एक पेंटिंग जो हेरात का पाँच सौ साल का इतिहास बताती थी उसपर कालिख पुतवा दी
मोहमद सय्यद मशाल जिन्होंने ये पेंटिंग बनायी थी, तालिबान की इस करतूत के बाद वो ग़म से मर गए
हालाँकि उन्हें लंग कैंसर भी था पर लोगों का मान ना है की वो ग़म से ही मरे हैं
“ हेरात अपने इतिहास में असंख्य युद्धों का गवाह रहा है, कल्पना कर पाना भी कठिन है की इस शहर की आत्मा अब भी जीवित होगी, पेड़ों से ढँकी दो बड़ी इमारतों के आगे, कोने में मेरा होटल था। एक था ब्लड बैंक स्ट्रीट और दूसरा सिनेमा स्ट्रीट, मैं सिनेमा स्ट्रीट की तरफ़ बढ़ गयी, भीख माँगने वाली औरतें और बच्चे मेरे पीछे आने लगे, उनसे बचते हुए मैंने दूसरे रास्ते पर चली आयी जो एक सफ़ेद colonial style बिल्डिंग तक ले जाता था उसपर अंग्रेज़ी और पर्शीयन में लिखा हुआ था “literary circle of Herat”
मैं उसे कौतूहल से देखते खड़े रही। दरवाज़ा खुला हुआ था, मैं अंदर आयी ये सोचते हुए की शायद कुछ नहीं मिलेगा, अमेरिकन bomber planes दक्षिण में कंधार की तरफ़ बढ़ रहे थे, तालिबान मुल्ला उमर की अगुवाई में आख़िर तक लड़ना चाहता था।
इमारत के अंदर विशाल ख़ाली कमरे थे, मुझे दरवाज़े के बाएँ तरफ़ जूतियाँ दिखायी दी। अंदर क़ाली पोलो नैक की टीशर्ट पहना एक आदमी जो जवान रॉबर्ट डे नीरो जैसा दिखता था, अनंत में घूरते हुए बैठा था। उसने अपना परिचय दिया “अहमद सईद हघिघी” सॉसाययटी प्रेसिडेंट ओफ़ लिटरेरी सर्कल
मैंने अहमद से सवाल किया “तालिबानी आतंक के दौर में भी यह लिटरेरी सर्कल सर्वाइव कैसे कर पाया?
मुस्कुराते हुए अहमद ने कहा “सिर्फ़ तालिबानी दौर ही नहीं पर सदियों से सल्तनतें हेरात का क़त्ल करते आ रही हैं, गौहर शाद के समय से। पर अभी भी कुछ ज़िंदा है यहाँ”
“यह लिटरेरी सर्कल कितना पुराना है ?”
“ सन 1920 से चला आ रहा है, मक़सद था हेरात के इतिहास और कल्चर को बचाए रखना, लोग आते थे और अपनी नज़्म, क़िस्से पढ़ते थे पर सरकार ने हमेशा हमारा विरोध ही किया, कॉम्युनिस्ट सरकार ने हेरात के intellectuals को जेल में डाल दिया फिर जब 1980 में रूसी आए तो उन्होंने हमें एक propaganda machine में बदलने की कोशिश की, बहुत से लोग ईरान भाग गए, पर तालिबानियों के दौर से बुरा कोई दौर नहीं देखा।
उन्होंने भी रूसियों के तरह हेरात के लिटरेरी सर्कल को एक propaganda में बदलने की कोशिश की, जब हमने विरोध जताया तो सॉसायटी के members को सरे आम कोड़े मारे गए। हमारे पोयट्स और लेखक मजबूर होकर एक दूसरे के घर में मिलने लगे और वहाँ कविता पाठ शुरू हुआ
धीरे धीरे हेरात का literary circle एक underground literary movement बन गया
हमने नए तरह से लिखना शुरू किया, अपनी कहनियाँ कहने के लिए symbolic language का इस्तेमाल किया जैसे Orwell ने ऐनिमल फार्म में किया था, हमने भी पक्षियों और जानवरों को कहानियों में ला कर राजनीतिक बातें कही”
अहमद फिर चुप हो गया, कमरा बहुत ठंडा था, सर्द फ़र्श से मेरे पैर सुन्न पड़ गए थे
“तालिबानी उपस्थिति का सबसे ज़्यादा असर हेरात की औरतों पे हुआ, उन्होंने लड़कियों के स्कूल बंद करवा दिए और महाविध्यालयों से उन्हें बैन कर दिया, फिर काबुल पे क़ब्ज़ा करते ही लड़कियों के स्कूलों को मस्जिदों में तब्दील कर दिया,और हमारी पर्शियन भाषा को बैन कर दिया और फ़ीमेल टीचर्ज़ को त्वंखाह देना बंद कर दिया
हमने खुद से ये सवाल किया की हम इस स्थिति से कैसे लड़ सकते हैं
एक ही जवाब था
“ क्या” मैंने पूछा, अहमद बहुत देर तक अपनी आँखों में सोचता रहा कि उसे आगे कुछ कहना चहिये या नहीं।
अहमद अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ और कहा “ मेरे साथ आइए”
मैं अहमद के पीछे पीछे चलते हुए होटेल के पास से गुल चौराहे को पार करते हुए अज़ीज़ की हजामत की दुकान तक पहुँची, कच्चे रास्ते से थोड़ा दूर आगे एक दरवाज़ा था जहां एक बोर्ड पे लिखा हुआ था
“ GOLDEN NEEDLE LADIES SEWING CLASSES ”
-MONDAY, WEDNESDAYS। SATURDAYS
“ हम उनसे लड़े, हमने एक नयी शुरुआत की” हघिघि ने दरवाज़े पे लगे बोर्ड की तरफ़ इशारा करते हुए कहा
पिछले पाँच सालों से हफ़्ते में तीन दिन, हेरात की लड़कियाँ, तालिबान द्वारा निर्धारित हल्के नीले रंग का बुर्का और फ़्लैट जूतियाँ पहन कर इस जंग खाए दरवाज़े पे नियम से दस्तक देती हैं। उनके हाथों में लटकते लहराते बैग के अंदर, कॉटन, कैंची और कपड़ों पे लगाए जाने वाली चमकी और कपड़ों के नीचे नोट्बुक और पेन छुपे होते थे।
ये थी GOLDEN NEEDLE SEWING SCHOOL के स्टूडेंट्स जो यहाँ सिलायी सीखने आते थे पर उन्होंने अपने इतने सालों में एक भी कपड़ा नहीं सिला था।
सिलायी स्कूल, हेरात यूनिवर्सिटी के 47 वर्षीय लिटरेचर प्रफ़ेसर मोहम्मद नासिर रहियाब के घर से चलता था।
स्कूल के अंदर प्रवेश करते ही-
लड़कियाँ अपना बुर्का उतार कर नीचे बिछी क़ालीन पे बैठ जाती और फिर रहियाब साहब उन्हें पढ़ाना शुरू करते, ऐसे विषय जिनके लिए तालिबान उन्हें फाँसी पे लटका सकता था
विषय थे - Literary criticisism, Aesthetics, Persian poetry
साथ ही साथ Shakespeare, James Joyce और Nabakov के टेक्स्ट
जब रहियाब साहब बच्चियों को पढ़ा रहे होते तो घर का कोई छोटा बच्चा बाहर खेल रहा होता जैसे ही कोई तालिब या अनजान घर के पास पहुँचता, बच्चा भाग कर घर में जाता और और रहियाब साहब को आगाह करता, प्रफ़ेसर चुप-चाप अपनी किताबें उठा कर अंदर चले जाते और उनकी पत्नी एक आधा सिया हुआ बुर्का लेकर बच्चियों को सिलायी पढ़ाने लगती।
पर एक बार प्रफ़ेसर साहाब की बिटिया बीमार थी, उसने बिस्तर पकड़ रखा था और उनका बेटा बाज़ार से ब्रेड लेने गया था, अचनाक दरवाज़े पे दस्तक हुयी, सामने क़ाली पगड़ी पहने हुए एक तालिब खड़ा हुआ था, समय पाकार प्रफ़ेसर साहब अंदर के कमरे में चले गए और छात्राओं ने अपनी किताबें तकिए और कुशन के नीचे छिपा दी। प्रफ़ेसर साहब को याद आया की वो उस बोर्ड को साफ़ करना भूल गए हैं जिस पर उन्हें क्रांतिकारी बातें लिखी थी। वो दूसरे कमरे में चुप चाप चाय पीते बैठे रहे, डर से उनके हाथों में बैठा चाय का कप काँप रहा था पर उनकी ख़ुशक़िस्मती थी की तालिब घोर अनपढ़ था, वो समझ ही नहीं पाया की बोर्ड पे क्या लिखा हुआ है , मामूली तफ़्तीश के बाद वो चलता बना।
एक ऐसे समाज में जहां एक बाप का अपनी खुद की बच्ची को पढ़ाना एक गुनाह था, वहाँ सीविंग सर्कल जैसा एक अंडर्ग्राउंड स्कूल चलाने का एक ही मतलब था, गुल चौराहे पे ना जाने और कितनी और लाशें टंगी मिलती ।
“इतने योद्धाओं ने हेरात को बचाने के लिए अपनी जाने गँवा दी, क्या वो जिनके हथियार सिर्फ़ शब्द हैं वो चुप बैठे रहें, वो भी लड़ सकते हैं।हम पैसों से गरीब हैं, इसका ये मतलब नहीं की हम हमारे कल्चर को भी गरीब होने दे, जो हम कर रहे हैं अगर वो ना करते तोह ये त्रासदी असहनीय होती।”
गोल्डन नीडल सीविंग स्कूल से प्रभावित होकर पूरे शहर में सैकड़ों जगह ऐसी ही अंडर्ग्राउंड ऐक्टिविटीज़ शुरू हो गयी और छात्राओं ने एक मूव्मेंट शुरू कर दिया । लिटरेरी सर्कल के बहुत से लेखक बच्चियों के घर जाकर उन्हें पढ़ाने के लिए बुर्का पहनने लगे। UNISEF के एक official ने ये डेटा पेश किया की तालिबानियों की मौजूदगी में हेरात शहर की लगभग उंतीस हज़ार लड़कियों और औरतों ने इस सीक्रेट मूव्मेंट में हिस्सा लिया और खुद को साक्षर और शिक्षित बनाने का ज़िम्मा उठाया।
रहियाब साहब कहते हैं की “हर समाज को अपने सुखों और दुखों का आइने दिखाने के लिए कवियों और कहानीकारों की ज़रूरत होती है, साहित्य विहीन समाज वैसा ही है जैसे बिना रीढ़ के हड्डी का शरीर”
ज़ेना करमज़ादे और लैला राज़ेघी से मुलाक़ात -
मिस्टर हघिघि की मदद से मुझे प्रफ़ेसर साहब की एक स्टूडेंट से मिलने का मौक़ा मिला, ज़ेना अपनी सहेली लैला के साथ पब्लिक लाइब्रेरी में मुझसे मिलने आयी, उन्हें बुर्के में अपनी तरफ़ बढ़ते देख मुझे लगा जैसे इनका कोई शेप नहीं, कोई फ़ॉर्म नहीं, भीड़ में बुर्का पहने औरतें अपने सहेलियों को कैसे पहचानती होंगी?
ज़ेना और लैला ने बुर्का उतार दिया
लिटरेरी सर्कल के बाजू में बनी लाइब्रेरी और ज़्यादा उदास थी, खिड़की से पेड़ों की सूखी डालियाँ दिखायी पड़ती थी
“हम इसे पुस्तकों की क़ब्रगाह कहते हैं” ज़ेना ने हंसते हुए कहा, यहाँ कभी पच्चीस हज़ार किताबें हुआ करती थी पर पिछले साल तालीबानियों ने हमसे किताबें छीन ली, वो सभी किताबे जो सुन्नियों के धर्म और आस्था के ख़िलाफ़ हैं, वो किताबें जो ईरान में छपी हैं, जिनमें विद्रोह की राजनीति है, जो पश्चिम सभ्यता की बात करती हैं, या जो कॉम्युनिस्ट विचारधारा की हैं, वे सभी किताबें ले गए और एक दिन शहर के बाहर धुआँ उठते दिखा और शब्दों की चीख सुनायी दी,
वो सभी किताबें जला चुके थे।
शेल्फ पर सिर्फ़ Moby-Dick, 1965 world almanac, Book of Eskimo और Road to Huddersfield रखी हुयी थी, जिन्हें समय रहते पुराने थीयटर में और यूथ सेंटर की lavatory में छुपा दिया गया था। हेरात की महान ऐतिहासिक किताबों को पाकिस्तान में बेच दिए गया और तालिबान मिनिस्ट्री का एक अफ़सर बॉर्डर पे तैनात था जो किताबों की स्मग्लिंग को रोकता था पर हम गाड़ियों के पुर्ज़ों में उन्हें छुपा कर हेरात के अंदर ले आया करते थे।
तालिबान जब आया तब ज़ेना second year medical student थी, “ मैं एक बड़ी डॉक्टर बनना चाहती थी, पर सब बर्बाद हो गया। हम बस अपने कमरे में बंद रहते थे जैसे कोई गाय अपने दड़बे में बंद रहती है, पूरी दुनिया से हमारा कनेक्शन कट चुका था, ना television, ना म्यूज़िक, ना रेडीयो ना दोस्त, डॉक्टर के पास जाने के लिए भी हमें घर के किसी आदमी के साथ जाना पड़ता था, अगर अकेले जाते थे तो कोड़े खाने की सजा थी।पूरे हेरात में केवल एक ही डेंटिस्ट था जो चोरी छुपे औरतों का भी इलाज किया करता था, तालिबान को उसकी खबर लग गयी, उन्होंने डेंटिस्ट को गिरफ़्तार कर लिया और सभी पेशंट्स को पीटा”
ज़ेना की आँखों में दबा हुआ ग़ुस्सा था और मुँह से ठंडी भाप निकल रही थी। बाहर गौरैय्या चहचहा रही थी, पत्ते उड़ रहे थे एक सेकंड को मैंने सोचा की एक बंद खिड़की से ये सब होते हुए देखना कैसी ज़िंदगी है?
“हम बस इस उम्मीद में जीते रहे की एक दिन स्कूल फिर खुलेंगे या शायद तालिबान एक दिन चला जाएगा, ज़िंदा रहने में गणित ने मेरी बहुत मदद की, मैं सुबह के तीन बजे तक अपने ज़हन में मैथेमैटिक्स के अलग अलग फ़ॉर्म्युला बड़बड़ाते रहती थी, मुझे लगता था जैसे ही मैं ये भीतरी कैल्क्युलुस रोक दूँगी मैं मर जाऊँगी, मैं डरती थी की एक दिन सारी equations और फ़ॉर्म्युला ख़त्म हो जाएँगे और तालिबान यहीं रहेगा, अगर मुझे पता होता की तालिबान यहाँ सात साल रहेगा तो मैं पहले ही खुदख़ुशी कर लेती”
लैला एक लेखिका हैं, जो रहियाब साहब के स्कूल में Dostoyevsky, James Joyce, Alexander Dumas जैसे महान लेखकों को पढ़ती हैं, सीविंग स्कूल के वो चंद घंटे जैसे एक जादुई दुनिया हैं, लैला जो बस चौबीस साल की हैं, दो उपन्यास लिख चुकी हैं, एक उपन्यास forced marriage के बारे में है जिसका नाम है Mirage और दूसरा Beyond our vision, जिसमें एक लड़की के पिता युद्ध में मर जाते हैं और फ़िर लड़की पूरे परिवार को सम्भालती है, दोनो उपन्यास बहुत मेहनत से पर्शीयन भाषा में लिखे गए हैं, उनके काग़ज़ लगभग फटने की कगार पे हैं क्योंकि हेरात में बहुत सारा काग़ज़ इस्तेमाल करना तालिबों के मन में शक पैदा करता है । लैला कुछ तीस कहनियाँ भी लिख चुकी हैं जो लिटरेरी सर्कल के जर्नल में प्रकाशित होती हैं, लैला ये सभी काम एक मर्दाना नाम का इस्तमाल कर के छपवाती हैं, सभी कहनियाँ तालिबान शासन में औरतों की ज़िंदगी पे प्रकाश डालती हैं पर हमेशा एक metaphor की सहायता लेती हैं
“मैंने एक कहानी लिखी थी जिसका नाम था “हबरी बोश “जिसका मतलब होता है गुड न्यूज़, और यह परेशान औरत का monologue था जो अपने बीमार रिश्तेदार के कारण पढ़ने स्कूल नहीं जा पाती, उसके सभी भाई स्कूल जाते हैं और वो एक बंद कमरे में घुट-ते रहती है।”
रोज़ की ज़िंदगी - चूँकि औरतों के पास घर में करने के लिए कुछ होता नहीं था, cosmetics और beauty products जो की पूरी तरह से प्रतिबंधित थे, अचानक से पॉप्युलर हो गए। मेरे दोस्त और मेरी बहनें सारा दिन मेक अप करने में बीता देते, ईरान और पाकिस्तान से लेटेस्ट लिप्स्टिक की स्मग्लिंग होने लगी।जब TV पे बैन लगा तो लोगों ने अपने घरों में सैटलायट डिश लगवा लिए और फ़ॉरेन प्रोग्राम देखने के लिए V.C.R का लेनदेन बढ़ गया, घरों में खाने के लिए रोटी नहीं थी पर सैटलायट डिश TV ज़रूर थी, जब तालिबान को इस बात का पता चलता तो लोगों को पीटा जाता और उनके गले में TV बाँध कर शहर में घुमाया जाता. TITANIC film देखने के बाद सभी लड़कियों को Di Caprio से प्यार हो गया और लड़के Jack जैसे हेयर स्टाइल रखने लगे, पर साथ ही उनकी लम्बी दाढ़ी भी होती थी। पर ज़्यादातर अमेरिकन फ़िल्में violent होती हैं तो और यहाँ तो लोग हर दिन खून ख़राबा देखते हैं तो हॉलीवुड की माँग कम थी, अगर लोगों की दिमाग़ पे कुछ जादू से चढ़ा था तो वो था बॉलीवुड, हिंदी फ़िल्में जिसमें अधिकतर प्रेम कहानियाँ होती हैं और आख़िर में कमजोर आदमी जीत जाता है, या उसकी शादी हो जाती है-इस से लोगों को उम्मीद मिलती थी, हमारे शहर के बच्चे और सिनेमा प्रेमी हिंदी बोलने लगे और शाहरुख़ से लेकर आमिर सबको जानते थे, पर उन्हें हमारे शहर के इतिहास के बारे में कुछ भी नहीं पता था, उन्होंने कभी बिहज़ाद और गौहर शाद का नाम नहीं सुना।
बातचीत के बाद लैला और रेज़ा ने अपना बुर्का वपास पहना और सड़कों पे ओझल हो गयी।
खफ़श -
लिटरेरी सर्कल के डिनर पे हर कोई मुझसे पूछता रहा की क्या मैं खफ़श से मिली हूँ ? अगर नहीं तो ज़रूर मिलना चाहिए, खफ़श एक कवि हैं सबने बताया,खफश की अद्भुत image ज़हन में बैन गयी, एक कवि जो anti taliban resitance का हीरो है, उसका पता भी बहुत ख़ास था
“Go to camel stable and everybody there knows him ” मै जब खफ़श से मिलने पहुँची तो disappoint हो गयी। खफ़श एक छोटे क़द का, लम्बी ग्रे दाड़ी वाला आदमी निकला जिसके सर पे बाल भी नहीं थे, वो कहीं से भी हीरो नहीं था। किसी सूफ़ी संत की मज़ार पे बैठ सूफ़ी गीत गाने वाले आदमी जैसा था खफश। उम्र पचपन थी पर और बूढ़ा लगता था।
“सिर्फ़ तिमुरिद काल में, जब गौहर शाद यहाँ थी हेरात की कविता लगभग डेढ़ सौ साल फली -फूली उसके बाद से सिर्फ़ दर्द ही दर्द है” रूसियों के आने के बाद सारी कविता फिर war front पे ही पढ़ी जाने लगी, तालिबान के आने के बाद कविता तो taboo जैसा हो गया। हेरात के अधिकतर कवि यहाँ से चले गए, मैं नहीं गया, बचपन के सात साल ईरान में रहा फिर यहाँ आ गया, मैं यहाँ वहाँ जाने से थक गया हुँ और सबसे बड़ा कारण तो यह है की मैं यहाँ अपनों की मदद करना चाहता हुँ”
हेरात में रहते रहते मुझे सात बार गिरफ़्तार किया गया, खफश एक शिया मुस्लिम हैं और एक शिया स्कूल में पढ़ाते भी हैं, तालिबानियों के लिए शिया काफिर हैं और ये एक कॉमन बिलीफ़ है की उनके समूह हिस्सा का हिस्सा बनने के लिए किसी को दस शिया मुसलमानों को मारना पड़ेगा। तालिबान के ख़िलाफ़ खफ़श का हथियार उनकी नज़्में हैं। “मैं शरीर से मज़बूत नहीं, मेरा दिल भी कमजोर है, कविता लिखना ही आख़री रास्ता बचता है लड़ने के लिए”
जब भी कविता लिख कर पूरी होती मेरे दोस्त उन्हें दूसरे काग़ज़ों पे लिख कर या xerox कर के circulate कर देते । अमर बिल मरूफ, हेरात के एक कुख्यात moral policeman पे लिखी कविता यहाँ सभी को मुँह ज़बानी याद थी
“I told you to say your beard is long
And under it are the plans of a Saudi
You moral policeman in the middle of the bazaar
Are as greedy as a long-tailed donkey in a *trough”
*trough- पशुओं को खिलाने या पिलाने की नाँद*
बच्चे पर्शियन भाषा में आख़री की दो पंक्तियाँ गाते यहाँ से वहाँ घूमते और तालिबानियों को जीभ चिढ़ा कर भाग जाते। उन्हें कोई अंदाज़ा ही नहीं था की ये सब कौन लिख रहा है, ये कविता anti- taliban anthem बन गयी थी । उन्हें मुझपे शक तो था पर कोई सबूत नहीं मिला, उन्हें कभी कोई कविता नहीं मिली।
खशफ़ खड़ा हुआ और प्लाइवुड से बनी एक दीवार को ठोकते हुए कहा “ये नक़ली दीवार है”, उसने दीवार को ऐसे खोल दिया जैसे अलमिरह हो, उसमें बहुत सारे खंड बने थे जो काग़ज़ों से भरे हुए थे, यहाँ खशफ़ की सारी नज़्में और कविताएँ महफ़ूज़ थी और एक बड़ा सा TV भी। खफश ने धीरे से एक टॉर्च उठाया और उसे घुमा कर खोल दिया, टॉर्च के अंदर भी रोल्ड पेजेज़ थे “यहाँ बहुत सेंसिटिव नज़्म छुपा कर रखता हुँ”
तालिबानी यहाँ कई बार आए और हर बार ख़ाली हाँथ लौटे, मैंने उन्हें कहा है कि मै इमाम सज्जाद की prayers “khatab” का अनुवाद कर रहा हुँ, और करता ही जा रहा हुँ पिछले पंद्रह सालों से
एक बार जब तालिबान के सुप्रीम लीडर मुल्ला ओमर ने kandahar में पैग़म्बर मोहम्मद की दरगाह से उनका पाक लबादा ओढ़ कर खुद को *आमिर-उल मोमिनीम (*supreme leader of islamic community) घोषित कर लिया था
तब खफ़श ने एक कविता लिखी जिसकी पंक्तियाँ हैं
“Congratulations for cloaking a pile of dung with an ass’s skin”
और फिर कवि ने मुल्ला ओमर की चार मूर्तियाँ बनवायी, एक आँख पे पट्टा पहनाया (मुल्ला ओमार की एक आँख सोवीयत सेना से लड़ते हुए बंब धमाके में उड़ गयी थी)
और भेड़ के ऊन से दाढ़ी बनायी और बुत के नीचे यही नज़्म लिख कर, कर्फ़्यू लगने के एक घंटे बाद 10 बजे शहर के चार अलग अलग कोनों पर ये बुत रख दिए। शहर के सारे कवियों को गिरफ़्तार कर लिया गया, कवियों के साथ साथ dentist doctors भी गिरफ़्तार हुए, क्योंकि वो बुत का कास्ट किसी प्रफ़ेशनल का काम लगता था।
“वो मुझे लेने रात के दो बजे आए, मैं गिड़गिड़ाया की इस से मेरा कोई लेना देना नहीं, या तो जूठ बोलता या मारा जाता, उन्होंने मेरी उँगलियों को लकड़ियों से पीटा ताकि मैं और कुछ ना लिख पाऊँ, पाँच महीने के लिए घर में नज़र बंद कर दिया गया।”
खफ़श खुश था की तालिबानी अंततः अमेरिका के दबदबे में हेरात से जा रहे थे, उसने तोहफ़े में मुझे एक नज़्म दी जिसका शीर्षक था “The godly sword”
जिसकी एक पंक्ति “Begin taking out the ruthless and break the butterflies free” मुझे आज भी याद है।
मैं नहीं हूँ
चिनार का
कोई नाज़ुक पेड़
कि हिल जाऊँगी
कैसी भी हवा से ।
मैं एक
अफ़गान औरत हूँ,
जिसके मायने सिर्फ़
चीत्कार से
समझ में आते हैं ।
नादिया अंजुमन
नादिया अंजुम हेरात के गोल्डन नीडल स्कूल की एक छात्रा थी , और अफ़ग़ान की सबसे चुनिंदा कवियों में से एक। 2001 में जब तालिबान का आतंक ख़त्म हुआ तब नादिया ईक्कीस वर्ष की थी, उनका भविष्य सामने था हेरात यूनिवर्सिटी से लिटरेचर में ग्रैजूएट हुयी और अगले वर्ष उनकी कविताओं का संग्रह“GUL-E- DODI”/“FLOWER OF SMOKE” अफ़ग़ान औरतों की आवाज़ और उनके दर्द का आइना साबित हुयी। पाकिस्तान और ईरान में भी इन्हें खूब पढ़ा गया ।शादी के बाद उनके शौहर ने कई बार उनके कविता लिखने पे आपत्ति जतायी पर नादिया लिखते रही । ईद पे अपने घर जाना चाहती थी, इस बात से नाराज़ पती ने नादिया को पीट पीट कर मार डाला। उनकी कविताएँ सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान ही नहीं पर पूरी दुनिया के किसी भी तबके में हिंसा झेल रही औरतों की बात करती हैं।
फरवरी 2020 में US ने अफ़ग़ानिस्तान से मई 2021 तक अपनी सेना वपास बुलाने का फ़ैसला लिया और अमेरिका के देश से बाहर निकलते ही, तालिबानियों ने फिर काबुल को अपने क़ब्ज़े में ले लिया, रेज़ा, लैला, प्रफ़ेसर रहियाब और खफश ज़ैसे लोगों के लिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी भी एक युद्ध है, क्या वे सभी फिर से विरोध के नए तरीक़े ढूँढ पाएँगे?
इसका जवाब ढूँढ पाना मुश्किल है की आख़िर एक इंसान अपने जीवन में कितना और कब तक लड़ सकता है ?
हेरात के कल्चर, अफ़ग़ानी इतिहास और आम लोगों के अद्भुत resitance को समझने की कोशिश करता ये आलेख अगर आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों से ज़रूर शेयर करें
research links -
1.Photographs from Afghanistan
4.Emergence of Mujahideen and Taliban