मेट्रो की मीठी महक, और पंद्रह हज़ार साल पुरानी हड्डी
To love without knowing how to love, wounds the person we love
बीते वर्ष की ठंड में, कथादेश पत्रिका ने साहित्य को केंद्र में रखते हुए गोवा में देश भर से लेखकों को आमंत्रित किया और सभी लेखकों ने प्रेम और प्रेम की अवधारणा पर एक एकाग्र प्रस्तुत किया। इन लेखकों में से एक मैं था,
यहाँ में अपने वक्तव्य का वीडियो और उसकी ट्रांसक्रिप्ट अटैच कर रहा हूँ, आप या तो पूरा वीडियो देख सकते हैं या इस वक्तव्य को पढ़ सकते हैं। आशा है आपको दो तीन बातें काम की मिलेंगी।
मेट्रो की मीठी महक, और पंद्रह हज़ार साल पुरानी हड्डी
कुछ भी बोलना शुरू करूँ उस से पहले तीन बातें बताना चाहूँगा -
पहला वाक़या - 12 मई 2021 की एक खबर है वो मैं पढ़ देता हूँ
केरल : लॉकडाउन में पत्नी- बच्चे से दूर होने से परेशान था शख़्स, बस चुराकर मिलने चल पड़ा . इस खबर की हाईलाइट्स हैं
A. चार ज़िलों की पुलिस को चकमा देने में रहा कामयाब. B. पुलिस की पूछताछ पर कहा -प्रवासी मज़दूरों को लेने जा रहा ।थोड़ा ज़ोर देने पर उसने क़बूल कर लिया कि उसे पत्नी की याद आ रही थी तो वो उस से मिलने जा रहा है।
दूसरा वाक़या - OCTOBER 1995 - मैसाचुसेट्स मेमोरियल हॉस्पिटल - दो नवजात जुड़वा जो तय समय से बारह हफ़्ते पहले पैदा हुए. दोनों का वजन मात्र 2 पाउंड. दोनों को अलग अलग इनक्यूबेटर्स में रखा गया. एक बच्ची प्रोग्रेस दिखा रही थी, उसका वजन धीमे धीमे बढ़ रहा था, पर दूसरी बच्ची लगातार मृत्यु की तरफ़ खसकते जा रही थी, उसका चेहरा नीला पड़ रहा था.साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी। उस समय जो नर्स वहाँ थी उसने बच्ची को पकड़ कर गले से लगाया, उसे कंबल में रखा, उसकी नाक पर सक्शन लगाया, नथिंग वर्क्ड. बच्ची आँखों के सामने नीली पड़ रही थी । This baby was about to die . उसका शरीर ठंडा पड़ते जा रहा था।
Nurse या तो उसे मरते देखती या कुछ कोशिश करती । अचानक उसने जो हेल्थी बेबी था, जो स्ट्रॉंग बेबी था उसे उसके इनक्युबेशन चैम्बर से निकाला और दम तोड़ती बच्ची के बग़ल में लेटा दिया। स्वस्थ बच्ची जो सो रही थी, उसने धीरे से अपना एक हाँथ उठाकर अपनी मरती हुई बहन के कंधों पर रख दिया।कुछ ही क्षणों में कमज़ोर बच्ची का हार्ट रेट नार्मल हो गया, उसके शरीर में खून दौड़ने लगा। ब्लड ऑक्सीजन लेवल ऊपर आने लगा, गाल लाल हो गये। बड़ी बहन उसे गले लगाये सोते रही, दूसरी ज़िंदा होते रही। ये है ब्रिल और कायरी की कहानी , जिसने मेडिकल साइंस को काफ़ी हद तक बदला। पॉवर ऑफ़ टच। आप “the rescuing hug” गूगल कर सकते हैं।
तीसरा निजी अनुभव है - कथादेश में पहली कहानी छपी थी,मेरी घर वालों से उम्मीद थी की अब कुछ कहेंगे, अब कुछ कहेंगे। पर कोई कुछ नहीं बोला, मैंने भी ज़्यादा कोशिश नहीं की। मैं जहां रहता हूँ, मेरा मोहल्ला एक फ़िल्म के सेट जैसा है, एक चौड़ा घेरा कहीं बीच में मेरा घर और चारों और दुकानें। डेयरी,फ़ोटोकॉपी, चाय की टपरी, किराना जो हर् मोहल्ले में होती है। मैं सुबह उठा और दूध लेने गया, जो डेरी पर था वो मुझ से नाराज़ था - आपसे एक शिकायत है हमको - पिता जी को काहे जाने दिये आके, थोड़ा मना के रोक लेते तो रुक जाते। मैंने कहा कहाँ जाने दिये ? वो बोले कहानी में। मैं दूसरी दुकान पर शायद अम्मा के छालों की दवाई लेने गया तो वहाँ दुकानदार बोले - फिर वो जब दोनों कमरे में चले जाते हैऊँ तो आगे क्या होता है। मैं मुड़ा तो मैंने देखा की पिता जी अपना हाफ पैंट पहने इठलाते हुए चले आ रहे हैं, और बग़ल में उनके कथादेश की कॉपी दबी है। पिता जी सुबह से पूरे मोहल्ले में घूम घूम के सबको कहानी पढ़ा रहे थे।
इन तीनों घटनाओं में किसी का संबंध किसी से नहीं है - सब का नेचर भी अलग है पर एक कॉमन फैक्टर है। सभी में। हर घटना में एक पैटर्न टूट-टा है, वो आदमी अपनी पत्नी से नहीं मिल पाता, कैसे मिलता इतने नियम थे।।।वो बस चुराकर निकल जाता है, दूसरे घटना में एक प्रोटोकॉल था जिसे सब मानते थे, नर्स उस प्रोटोकॉल को तोड़ देती है, तीसरी घटना में मैं पिता जी से कुछ शब्द सुन ना चाह रहा था उन्होंने उस एक्सपेक्टेशन को तोड़ दिया
जब भी हम उस भावना की बात करते हैं जिसे हम सब प्रेम कहते हैं - त्याग, समर्पण, मासूमियत ये सब होती है उसमें पर मुझे लगता है एक तरह का ह्यूमर भी होता है प्रेम में, प्रेम अचंभे में डाल देते हैं, प्रेम पैटर्न को तोड़ता है। शायद इसलिए जो लोग समाज में क्रांति के बारे में सोचते हैं। प्रयासरत रहते हैं, या हड़ताल पे बैठते वो भी एक पैटर्न तोड़ना चाहते हैं, हमारे यहाँ माँग मनवाने के लिए काम नहीं करते, हड़ताल होती है। चीन में ज़्यादा कम करते हैं ओवर प्रोडक्शन करते हैं ताकि प्रोडक्ट कि वैल्यू गिर जाये। पैटर्न अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरह से टूटता है।
पर मुझे लगता है इस तरह से प्रेम एक आंतरिक क्रान्ति है। एक तरह की दीप्ति जो बहुत ही निजी होती है, पर पूरे समूह को प्रभावित कर सकती है, बेहतर बना सकती है।
मेट्रो पे मीठी महक, और पंद्रह हज़ार साल पुरानी हड्डी
हम हमेशा कहते हैं - आज के इस तेज दौर में।।।पर आज गौर कीजिए इस से तेज कोई दौर था नहीं। हम सोचने लगे हैं कि हम एक महीना या एक साल जीते है, भई साहब हम सत्तर साल जीते हैं, किस बात की जल्दी है पर है।
इस में इस वक्तव्य में प्रेम की उतनी ही बात करूँगा जितनी डरावनी फ़िल्मों में भूत के दर्शन होते हैं, न्यूनतम। प्रेम उतना हो होगा जितना ज़रूरी है। प्रेम स्वादुनसार आता रहेगा।
ये जो हमारा काँच की इमारतों का समाज है, जिसकी खिड़कियों पर लटकर कर मज़दूर खिड़कियाँ साफ़ करते हैं, तेज़ वातानुकूलित दफ़्तरों से आप उन्हें खिड़कियाँ साफ़ करते देख सकते है।
इसी दफ़्तर में घुसने से पहले मशीन पे अंगूठा लगाना पड़ता है , फिर मशीन बताती है कि आज आप एक मिनट देरी से आए हैं, तो आप हाफ़ डे काम करेंगे । आधे दिन की सैलरी काटेंगी आप बहुत ग़ुस्से में है, आप उस मशीन को गाली बकना चाहते हैं या उसी पंच इन मशीन को एक पंच मारना चाहते हैं। पर आप ऐसा नहीं करते, क्योंकि आप ऐसा कर नहीं सकते आप अपने HR को एक पोलाइट मेल लिख सकते हैं जहां आप उन्हें बता पायें की आप इन कारणों से एक मिनट लेट हो गए. अपने जीपीएस का रिकॉर्ड शेयर करें । आप काम शुरू करते हैं। आपका लैपटॉप स्क्रीन पे बिताया हुआ समय रिकॉर्ड करता है, और आपको बताता है कि इस हफ़्ते आपने कितने घंटे लैपटॉप पे काम किया। स्मोकिंग कॉर्नर पर आप बेवजह अपने फ़ोन पे स्क्रोल करते हुए सिग्रेट पीते हैं, इन इमारतों में गूंजती कबूतरों की आवाज़ आप में और विषाद भरती है। जब आप ऑफिस से निकलते हैं तो पंच इन मशीन आपको याद दिलाती है कि आपने आज यहाँ रोज़ से कम समय बिताया, आप सैलरी ना कटे इसलिए अपने टीम हेड को इन्फॉर्म करते हैं कि आप आज ओवर टाइम करेंगे। पर साढ़े अंतः बजे आपको अचानक एक अजीब सी गंध याद आती है, मीठी - चॉकलेटी - भूख। आप याद करने की कोशिश करते हैं पर जटिल हो गया है मामला। आप गंध को कैसे याद कर सकते हैं, वो तो सिर्फ़ “आदिम रात्रि की महक” में रेणु ही याद दिला पाये थे आपको याद नहीं पर इतने बजे शरीर को आदत हो गई है उस गंध की और उस स्वाद की ।दरअसल मरोल नाका से मेट्रो पकड़ कर लाइन बदलने के लिए आप वेस्टर्न एक्सप्रेस मेट्रो पर उतरते हैं, वेस्टर्न एक्सप्रेस की एस्केलेटर से उतरते ही मेट्रो के प्लैटफ़ॉर्म का वो हिसा उस गाड़ी chocolaty महक से भरा रहता , वहाँ पे चॉकलेट और सुगर से लबालब भरे हुए WAFFLES मिलते हैं
नीचे उतरते ही एक तरफ़ Mac D और दूसरी तरफ़ केएफ़सी फ़्राइड चिकन बर्गर की महक,
दफ़्तर से लोग नहीं लौटते, थके हारे भूखे शरीर लौटते हैं इन्हें जंक फ़ूड की ये महक बहुत्त प्रेम से बुलाती है. जहां सबसे ज़्यादा दफ़्तर होते हैं वही सबसे ज्यादा शराब की दुकानें भी होती हैं ।
मार्केट आपके साथ, हम सबके साथ एक तरह का पावलोव एक्सपेरिमेंट कर रहा है -
एक कुत्ते को एक कमरे में बंद कीजिए घंटी बजाये उसे ख़ाना दीजिए, अगले दिन भी यही कीजिए, कुत्ते को एक कमरे में बंद कीजिए, एक घंटी बजाये फिर ख़ाना दीजिए, उसके दिमाग़ में एक पैटर्न बन जाएगा की जब भी घंटी बजेगी, उसे खाना मिलेगा आप अब सिर्फ़ घंटी बजाये, घंटी के बजते ही कुत्ते के शरीर में हार्मोन्स रिलीज़ होंगे जिस से वो एक्साइटेड महसूस करेगा, आप उसे ख़ाना मत दीजिए, उसकी जीभ से सलाइवा टपकने लगेगा, यही पैटर्न रिपीट किया तो कुत्ता आक्रामक भी हो सकता है.
एक बार इस घंटी को अपने फ़ोन के नोटिफिकेशन से रिप्लेस कर दें। लाइक्स, शेयर, कमेंट की इस दुनिया में जैसे ही बेल आइकॉन की आवाज़ आपके फ़ोन में आएगा आपका ब्रेन SALIVATE करेगा, क्योंकि ऐप्स आपके बिहेवियर का डेटा तैयार रखते हैं, आप किस तरह की जीन्स पसंद करते हैं से लेकर आप किस तरह के घर में रहना चाहते हैं।
होमो सपिएंस के समूचे इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी नयी तकनीक ने हम सब के सोशल बिहेवियर को आल्टर कर दिया हो , पर पिछले बीस सालों में मैंने यही होते देखा है। हमारी नये सिरे से क्लासिकल कंडीशनिंग की जा रही है
आपका जीने का तरीक़ा, आपका खाना, आपकी नींद, आपकी इंसेक्यूरिटीज़, हर चीज़ जो बहुत निजी है अब बिक रही है
सब कुछ बिक रही हैं, विज्ञापनों ने हेम घेर रखा है, जो आज कल एक अजीब व्याकरण को फॉलो करते हैं। रणबीर सिंह एक ऐड में फोटोग्राफर है, वो फ़ैमिली फोटो ले रहे हैं। पूरे परिवार ने कुर्ता पजामा, एथनिक कपड़े पहन रखे हैं, सिवाय एक आदमी के जिसने थोड़ा डल् सा सूट पहना है। फोटोग्राफर उस आदमी को फ्रेम से बाहर कर देता है और कहता है कि “अरे तैयार होकर आइये” और वो आदमी उस फ़्रेम का हिस्सा नहीं बनता। उसे जमात में शामिल होने के लिए मान्यवर का वो सूट ख़रीदना ही पड़ेगा। अगर आप स्टॉक मार्केट में पैसा नहीं लगाते तो फिर आप गरीब ही रह जाएँगे. Mutual fund के बारे में नहें पता तो आपको बेड़ा गर्क हो जाएगा
हर विज्ञापन आपसे बहुत बड़ा है, आपको ख़रीदना चाहता है फिर आपको बेचना चाहता है। हर होर्डिंग आपको इंटिमिडेट करता है, विशाल काय, चमकता हुआ। कभी गौर किया है आपने, बांद्रा हाईवे पर लगे हुए एक एक होर्डिंग बोर्ड की महीना का किराया पाँच लाख से पंद्रह लाख के आस पास है, चमकते हैं। जैसे कीड़े चमकती हुई चीज़ों कि तरफ़ खींचे चले जाते हैं वैसे हम भी इन विज्ञापनों की तरफ़ चले जाते हैं। जैसा कि मैंने कहा हर कोई हर किसी को कुछ बेच रहा है, अंधेरी स्टेशन अब अंधेरी नहीं एलआईसी अंधेरी के नाम से जाना जाता है घाटकोपर - मोबाइल कंपनी के विवो को अपना नाम बेच चुका है, विवो घाटकोपर! एक रूसी स्टार्ट अप स्पेस में एडवरटाइज़म्ट दिखाना चाहता है कल्पना कीजिए शुरुआत में, पूर्णिमा का चाँद चमक रहा है और उस पर कोका कोला की छवि , या फिर रात के आसमान में आपको चलती हुई बीएमडब् का ऐड दिखेगा.
मुझे लगता है फ़िलॉस्फ़िकली हम सभी लोग एक बहुत इंट्रेस्टिंग जगह पर खड़े हैं, एक अजीब से सामाजिक और राजनीति मोड़ पर, रशिया यूक्रेन युद्ध, इज़राइल गाजा LEBANON, चुनाव हारने के बाद एक हारा हुआ प्रेसिडेंट अपने फ़ॉलोवर्स को कैपिटल हाउस पे अटैक करने के लिए भेज देता है, आज वो फिर जीतने की कगार पर है, दुनिया बदलने वाला एंट्रेप्रेनियआर ELON MUSK उसके साथ खड़ा है। मीडिया एक धीमा ज़हर बीच रहा है रोज़, लगातार हम सभी एक धीमी स्प्रिचुअल मौत मर रहे हैं। Wisdom और इनफार्मेशन दोनों में हम कंफ्यूज हो चुके हैं.
इन सब बातों के लिए क्षमा चाहता हूँ पर ये सब ज़रूरी था इस बात पर पहुँचने के लिए
वही आदमी जो दिन भर से थका हारा भटक रहा था, जो पंच इन मशीन को पंच करना चाहता था, जो रोज़ पूरी दुनिया से हारता है, उलझता है, हारता है थकता है।वो अगले दिन फिर इस दुनिया मे उतरने के लिए ख़ुद को कैसे समेटता होगा, क्या होगा उसके पास?
मैं उम्मीद करता हूँ कि उसके पास दोस्त होंगे जो रात में दिन भर की अनगिनत हारों का मज़ाक़ दो बियर के कैन के साथ उड़ा देते होंगे मैं उम्मीद करता हूँ कि उसके पास थामने के लिए अपने प्रेमी, प्रेमिका की हथेलियाँ होंगी। मैं उम्मीद करता हूँ कि उसके पास माँ पिता होंगे जिन्हें वीडियो कॉल पर कैमरा फ्लिप करते नहीं आता। मैं उम्मीद करता हूँ कि वो अपने आप को बटोर लेता होगा जैसे तैसे क्योंकि उसके पास उसके हिस्सा का बचा कूचा प्रेम है पर मुझे सच में लगता है कि हम सभी को कुछ हो गया है और कोई इस बात कि लेकर गंभीर नहीं है ,। सब कुछ बहुत पास है, पर हम कहीं बहुत अकेले हैं, दोस्तों से ज़्यादा एक आँठ इंच का डिवाइस हमें जानता है। जानकारी की भरमार है, संवेदनाओं की कमी है और स्पर्श लुप्त हो चुका है।
ये कोई कोइन्सिडन्स नहीं की दो साल पहले एक अदृश्य वायरस ने हमसे हमारा होना छीन लिया था,
स्पर्श, निकटता, हाँथ थामना प्रतिबंधित था
थोड़ा ह्यूमन एनाटॉमी के बारे में सोचे- एक सीधी रेखा हमें दो भागों में विभाजित कर सकती है, दूसरे मनुष्य भी ऐसे ही बने हैं .मैं जानता हूँ कि मैं ग़लत हूँ पर मुझे बहुत ऐसा लगता है कि हम एक दूसरे को गले लगा सकें इसलिए हम ऐसे ही एवोल्व हुए हैं . हमारे पूर्वज ऐप्स के अलावा और कोई प्रजाति के जीव एक दूसरे को गले नहीं लगाते।
सोच कर अचंभित रह जाता हूँ कि जितने युद्ध हुए हैं आज तक!
ना जाने कितनी ही सीमाऐं लाँघ दी गयी
बर्बरता से कितनी हत्याऐं कर दी गयी
फिर भी हम सब बचे हुए हैं?
फिर भी हम सब नष्ट नहीं हुए
कैसे ?
कैसे ना कहूँ पूरे विश्वास से
की ये सब होने के बाद भी
ज़रूर, कहीं ना कहीं
किसी पेड़ की खोह में छिपकर ही सही
पर
हमने अपने अपने हिस्से का प्रेम थोड़ा ज़्यादा किया है
इसलिए हम बचे हुए हैं
इसलिए हम अब तक नष्ट नहीं हुए
इंटरनेट पर कभी ये क़िस्सा पढ़ता था,
मार्गरेट मीड नाम की एक अमेरिकन एंथ्रोप्लोजिस्ट से जब किसी स्टूडेंट ने सवाल किया की सभ्यता की सबसे पहली निशानी क्या है? गुफाओं में बने हुए चित्र या पुरातन महानगरों के अवशेष, पत्थरों से बने हुए हथियार या मिट्टी की सुराही ? सभ्यता कब पनपी ?मार्गरेट ने अपना समय लिया और कहा की “लगभग पंद्रह हज़ार साल पुरानी एक फ़्रैक्चर्ड फ़िमर बोन, जो हिप्स से घुटनों तक जाती है, ये हड्डी कभी टूटी थी फिर ये ठीक हुई। उस समय एनिमल किंगडम में अगर किसी की हड्डी टूट जाती थी तो आपकी मौत निश्चित थी, कोई भी जानवर आपका शिकार कर सकता है, आप भाग नहीं सकते, अपने आप को बचा नहीं सकते, आपके लिये कोई इंतज़ार नहीं करेगा।पर अगर एक टूटी हुई हड्डी वापस जुड़ पायी है तो ये इस बात का सबूत है की कोई एक किसी दूसरे के लिए रुका था, कोई एक किसी दूसरे को अकेला छोड़ भाग नहीं आया था, कोई एक था जो दूसरे के दर्द को समझता था, कोई एक था जो प्रेम करता था और वहीं सभ्यता पनपी ।
सभ्यता के पनपने के पीछे बहुत बड़ा कारण प्रेम भी था। प्रेम क्या है? पाना, खोना,महसूस करना, बहुत ज़्यादा महसूस करना, किसी बने बनाये पैटर्न को तोड़ने वाला एहसास।
कई बार इन डेटिंग ऐप्स के बारे में भी सोचता हूँ।
लेफ्ट स्वाइप -राइट स्वाइप पे आपका प्रेम टिकता है
अगर डेटिंग ऐप्स जैसे टिंडर, बम्बल और हिंज अगर वेस्ट के देशों में नहीं बने होते, अगर सिलिकॉन वैली से नहीं निकले होते तो क्या अंतर होता। प्रेम जगहों के हिसाब से भी अपने रूप बदलता है, फ़र्ज़ कीजिए अगर ये ऐप्स जापान में बनी होती
पर जो हमारे यहाँ वेबसाइट बनी - शादी।कॉम उसमें जातिवादी फ़िल्टर हुआ करते थे, हमारे समाज में अपने ऐब हैं. पर मैं कुछ और कहना छह रहा हूँ
वेस्ट की फिलोसफी के बजाये ईस्ट की फ़िलासफ़ी को फॉलो करते मेरा मतलब
I love fish - Western philosophy और इंडियन फिलोसफी में प्रेम की अवधारणा बड़ी अलग हैं, बहुत गहरायी में गये बिना कोशिश करता हूँ इस बात को समझने की. -“I love fish” का तत्पर्य वेस्ट में होगा - आई लव द आईडिया ऑफ़ फिश इन माय माउथ और इसी वाक्य का ईस्टर्न काउंटरपार्ट होगा “ आई लव फिश” लेट हर बी, उसे उन्मुक्त जीने दो /जैसे कहिए “मैं बेहतर महसूस करता हूँ जब तुम आस पास आती हो” इस के मायने बेहद बदल जाते हैं जब आप कहें “जब तुम आस पास होती हो मैं महसूस करता हूँ “-=
महान लेखक जेम्स बाल्डविन अपने एक निबंध में लिखते हैं “ मुझे नहीं लगता की कोई भी सिस्टम, किसी भी प्रकार की सरकार, या कोई भी इंस्टीटूशन किसी को बचाता है, जहां तक समझ कहती है कि सिर्फ़ एक इंसान ही इंसान को बचा सकता है, हमेशा नहीं, कभी कभी, पर उतना ही काफ़ी है।Where all human connections are distrusted, the human being is very quickly lost.
महान वियतनामी झेन बुद्धिस्ट मोंक, और गुरु Thich Nhat Hanh (ठीक नाट हान) कहते हैं
“To love without knowing how to love wounds the person we love. To know how to love someone, we have to understand them. To understand, we need to listen.”
किसी से प्रेम करना बिना जाने की उस से कैसे प्रेम करना, ये उस इंसान को चोट भी पहुँचा सकता है. प्रेम कैसे करना है, जानने के लिये हमें उसे समझना होगा. समझने के लिए पहले हमें उसे सुन होगा और किसी को भी सुनने के लिये खुद को पूरी तरह से ख़ाली करना होता है, अपना वॉल्यूम _(लंबाई गुणित चौड़ाई गुणित गहराई) बढ़ानी पड़ती है, हमें प्रेम को लेने और देने, दोनों के लिए एक पैटर्न को तोड़ना होता है तभी तो सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखते हैं की
(Sarveshwar dayal saksena )
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गई हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गई है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी नहीं
न बाहर, न भीतर।
हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने छोटे हो गए हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक कि घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
संभावनाओं से घिरे हैं.
Apke vicharo aur lekhan ki tarang me behene me bahut anand ata hai..aap isi duniya ka udaharan dekar ek alag duniya me le jate hain...likhte rahiye..aur hume aesi hi Nirmal lehero ka anand lete rehne dijiye