मिलावट
मैं नहीं कर पाती फ़र्क़ अब काली मिर्च में मिले हुए पपीते के काले बीज और काली मिर्च के बीच
मैं नहीं कर पाती फ़र्क़ अब
काली मिर्च में मिले हुए
पपीते के काले बीज
और काली मिर्च के बीच।
काली मिर्च के तीखे स्वाद की स्मृति
नहीं रही अब मेरी जिह्वा पर
और पपीते के बीज भी
नहीं लगते मुझे स्वादहीन।
मैं अब नहीं पहचान पाती
दालचीनी के साथ मिले हुए
लकड़ी के छोटे टुकड़े
या हींग में मिला हुआ आटा।
नहीं बची कोई स्मृति
अब मुझमें सुगंध की।
कोई एतराज़ ही नहीं मुझे अब
घी में मिलाए गए उबले हुए आलू से
या दूध में मिलाए गए चावल के पानी से।
शकरकंद पर लगा हो चाहे गेरुआ रंग
या केसर में मिले हों लाल रंग के धागे।
दरअसल, मैं करना ही नहीं चाहती फ़र्क़ अब
एक जीवन में मिलाए गए दूसरे जीवन से।
मेरी रसोई आज प्रसन्न है—
घुल-मिल गए जीवन से।
poet: Manisha Joshi
art: Ohn Mar Win