दिद्दा जिस दिन नहीं रही थी
उस दिन एक जापानी आदमी आया
ख़ूब रोया और
दिद्दा के घर के सामने छोड़ गया
एक पीला टेलीफ़ोन
दिद्दा बहुत बड़ी थी
लम्बी चौड़ी
अपने पिता,दद्दा जितनी विशाल
जब साथ में दोनों टहलने निकलते थे तो
लोग कहते थे
दिद्दी और दद्दा जा रहे हैं
बोलते बोलते
दिद्दी का नाम कब दिद्दा हो गया पता ही नहीं चला
दिद्दा के husband बाहर रहते थे
किसी दूसरे शहर में
ऐसा वो बताती थी
बरगदाई अमावस पर बरगद को धागा बांधती थी दिद्दा
करवाचौथ मनाने भी कहीं ज़ाया करती थी
लोगों को बाद में मालूम चला कि
दिद्दा पूरा दिन स्टेशन पर बैठी रहती
पूरी रात बैंच पे लेटी रहती
और अगली दोपहर लौट आती थी
दद्दा के मरने के बाद
दिद्दा ने एक पी.सी.ओ खोला
वो था पूरे शहर का पहला पी.सी.ओ.
हमारे मोहल्ले का लैंड्मार्क “दीद्दा का पी.सी.ओ!"
एक पीला फोन बाहर काउंटर पर
दूसरा कैबिन के अंदर
रायपुर, जावरा खैरागढ़, ईटारसी
जहाँ भी फ़ोन करना होता था
बड़े लोग काउंटर के फोन से बात करते थे
हम कैबिन के फोन से चुपचाप बड़ों की बातचीत सुनते
एक तीसरा फोन और था
लाल फोन, ऐंटेना वाला,
बिना तार का जादुई फोन
जिस से दिद्दा पूरे मोहल्ले वालों की बात सुनती थी
मोहल्ले वाले अपने रिश्तेदारों का नम्बर लिए बिना दिद्दा के पी.सी.ओ पहुँच जाते थे
दुकान में हर जगह सबके नम्बर लिखे थे
हमारे रिश्तेदारों के नम्बर अंदर चिपके थे, कैबिन में
ऐसा लगता था की दिद्दा की दुकान के सारे नंबर को मिला दें तो infinity तक पहुंचा जा सकता है
हमारे गणित के शिक्षक
दिद्दा से संख्या उधार लेने आते थे
एक बार, ख़ाली दोपहर में जब दिद्दा किसी से बात कर रही थी
तो मैंने चुप-चाप कैबिन के फोन से सुना था
दिद्दा किसी अफ़गानी आदमी को एक कविता गा कर सुना रही थी
“जो तुम आ जाते एक बार”
दिद्दा शर्मा रही थी
कविता के खत्म होने पर वो आदमी बहुत ज़ोर से हंसा था
मैं भी हंसा था …
दिद्दा के हाथ के दो तमाचे गाल पे छप गए थे
फिर उन्होंने दो चौकलेट देकर भगा दिया
उसके बाद से दिद्दा जब भी मिलती थी तो दो चौकलेट दिया करती थी
दिद्दा ने मुझे बताया था कि उनका फोन जादुई है
बिना तार जोड़े
दुनिया के किसी भी आदमी की बात सुन सकती थी दिद्दा !
अब तक शायद पूरी दुनिया के हर इंसान से बात हो चुकी थी दीदा की
मेरी बात दिद्दा ने अफ़्रीका में किसी औरत से करवायी थी
ना उसे कुछ समझ आया था ना मुझे
पर अनभिज्ञ भाषा का कानो में पड़ना बहुत ही रहस्यमयी था
हो सकता हो उसने मुझे यूनिवर्स के सबसे बड़े राज बता दिए हों
दिद्दा सब को जानती थी
दिद्दा को कोई नहीं जानता था
हम सब एक दूसरे के साथ थे
दिद्दा अलग अकेली थी
समूची दुनिया के अनगिनत देश में रहने वाले अकेले लोग ये बात जानते थे
जब दिद्दा नहीं रही
तो उनके घर के सामने एक जापानी आदमी
पीला टेलीफोन छोड़ कर चला गया था
एंटेना वाला
मैंने फ़ोन उठाकर कान पर रखा
उस तरफ़ से कुछ आवाज़ आयी
“हैलो दिद्दा! दिद्दा बोल रही हैं !"मैंने पूछा
दिद्दा दुनिया की सारी भाषाओं में
अपना
अकेलापन मुझे सुना रही थी!
बारी बारी से पूरे मोहल्ले ने दिद्दा से बात की थी
दिद्दा जीवित नहीं थी
पर हमारी दिद्दा हम सबसे बात करके खुश थी
दिद्दा के अकेलेपन को तुमने अपना बना दिया और हम सबको एक महोल्ला। पुरानी यादों की एक पोटली से एक पल को चुराकर सामने रख दिया और...
बाकी सब कुछ डॉट डॉट में कह गया।😉
"सारी भाषाओं में" ऐसे लगता है जैसे दिद्दा एक जगह रहकर भी सभी जगह होती हो या यूं कहूं कि...
दिद्दा हर बोली में भाषा में है, हर जगह है।
और ये "एंटीना" मुझे बार्यबार "एंटिला" दिखता है समझ नहीं आता।😊