मैं फ़िर आऊँगा
मैं फ़िर आऊँगा
भले ही जन्मांतर के बाद
तुम्हारे ही पास ।
मैं झगड़ा करूँगा
देवताओं से
और नक्षत्रों की बाधाएँ पार कर के
सुबह खिड़की पर अकस्मात् आये
दूर देश के पक्षी की तरह
या ग़लत करवट सोने के बाद
बाँह में हुए दर्द की तरह
मैं आऊँगा -
सुबह कुछ राख हो जाने के बाद भी
बची रह गयी पवित्र चिंगारी की तरह,
नीम के बौर की कढ़वी-मीठी गंध की तरह,
किसी बेहद बूढ़े के जीवनव्यापी विषाद या
किसी बच्चे की अकारण हंसी की तरह,
मैं फ़िर आऊँगा
भले ही जन्मांतर के बाद
तुम्हारे ही पास।
Kavita: Ashok Vajpeyi
images: From Paris Texas