पेड़ बात करेंगे, अपना युद्ध लड़ेंगे और चाय पीने दोस्तों के घर भी आएँगे!
Lord of the rings के एँट युद्ध से लेकर केदारनाथ सिंह की कविता में पेड़ों को चाय पे घर बुलाने की बात! फ़िक्शन, नॉन-फ़िक्शन, कविता और विज्ञान के शब्दों में पेड़!
“अगली बार, मैं एक छोटे बीज से उग कर बड़ा पेड़ बनना चाहता हूँ।
बहुत बड़ा। बेहद विशाल इतना कि मैं किसी गाँव का, या छोटी सी बस्ती का पता बन जाऊं !
जैसे ही कोई पूछे "क्यों भाई! ये फ़लाँ गाँव कहाँ है?
"अरे बस! सीधा चले जाओ, सड़क घेरे बरगद का पेड़ खड़ा होगा बस वहीं से दाएँ मुड़ कर कच्ची सड़क पकड़ लेना वैसा पेड़ जिसकी शाखाओं पे गर्मी की लंबी दोपहरों में बच्चे अलसाये से लदे रहते हैं । बस इतना ही।”
मैं शायद कक्षा छटवी में रहा होऊंग़ा , जब social science की टीचर सीमा मैम ने एक वाक़या सुनाया था जब पहली बार सुना था तो लगा था ये क्या ऐसा सचमुच हुआ था हमारे इतिहास में, गुजरे यथार्थ में! या ये मात्र एक आशावादी कल्पना है !
1963 के चीन -भारत बॉर्डर conflict के बाद उत्तर प्रदेश के हिमालय से सटे पहाड़ी गाँवों (आज उत्तराखंड) में सड़कों के निर्माण के बाद जब विदेश की बड़ी बड़ी कम्पनियाँ, पहाड़ों और जंगलों के खनिजों का हनन करने पहुँचने लगी थी तब सरकार ने भी गाँव वालों को पेड़ों से दूर कर दिया, जंगलों से उन्हें अलग कर दिया
पेड़ों को काटने के लिए वन विभाग के लकड़हारों ने जब कुल्हाड़ियाँ उठायी तो गाँव की कुछ औरतों ने उन्हें रोकने के लिए, पेड़ों को गले लगा लिया, वे पेड़ों से चिपक कर खड़े हो गयी और शुरुआत हुयी चिपको आंदोलन की
ढोल, नगाड़े , नारे पर्वतों में गूंजती एक आवाज़ ने लम्बे संघर्ष के बाद पेड़ों को बचा लिया, सरकार को कम्पनी का टेंडर ख़ारिज करना पड़ा
मुझे दो बातें समझ आयी थी
1। जीवन में जितने दोस्त ज़रूरी हैं उतने पेड़ भी ज़रूरी हैं
2। किसी को गले लगाना बहुत जादुई होता है, ख़ासकर एक पेड़ को।
आप उस से गले लगिए, उसकी खोह में अपने दुःख बुदबुदाइए और उन्हें वहीं छोड़ दीजिए। आप के दुःख सुनने के बाद भी उस पेड़ के फल उतने ही मीठे रहेंगे जितने पहले थे।
सालों से सरकारें और बड़ी बड़ी कम्पनियाँ रोज़गार, और विकास के नाम पे जंगलों को काटते आयी है, पेड़ों की हत्या करते आयी है
वही सालों से उपन्यासकारों ने, कवियों ने और पर्यावरण संरक्षकों ने पेड़ों को शब्दों में फ़िर जीवंत किया है!
J. R. R. Tolkien के एपिक फंतासी उपन्यास lord of the rings के दूसरे भाग “The two towers” में एंट्स प्रजात्ति के पेड़ रक्षक , एक शैतान जादूगर द्वारा बर्बाद किया जा रहे जंगल को बचाने के लिए साथ चल पड़ते हैं ।
जर्मन forrester और लेखक Peter Wohlleben बताते हैं की उन्होंने पेड़ों से क्या सीखा है, क्या पेड़ बात कर सकते हैं? भाषा की समझ को लेकर हम कितने सीमित हैं!
केदारनाथ सिंह की एक छोटी सी कविता में कवि बरगद को घर ना ले जा पाने की बात पे अफ़सोस करता है!
जिन्होंने lord of the rings नहीं पढ़ी है उनके लिए छोटा सा कॉंटेक्स्ट:
आयज़िगार्ड राज्य के “Saruman the White” नाम के जादूगर ने रहस्यमयी काले जादू की गहरायी में उतर कर कर अपने आप को खो दिया है, मोर्डोर के दुष्ट राजा साऊरौन के साथ मिलकर अब वो पूरे मिडल अर्थ पे राज करना चाहता है, अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए उसने पूरे आयज़ेंगार्ड को धधकती हुयी भट्टी में बदल दिया, उसके इशारे पे और्क की सेना ने हज़ारों पेड़ों की हत्या कर दी है, ये खबर जब फ़ैनगौर्न के जंगलों में पहुँचती है तो मिडल अर्थ का सबसे बूढ़ा जीव ट्री-बियर्ड, एक विशालकाय * एँट विचलित हो उठता है।
(*एंट प्रजाति के जीव पेड़ों के रक्षक कहे जाते हैं। शक्तिशाली 14 फ़ीट लम्बे, पेड़ जैसे दिखने वाले मानव या मानव ज़ैसे दिखने वाले पेड़! एंट्स जिन पेड़ों की रक्षा करते हैं उन्ही के जैसे दिखने लगते हैं)
ट्री बियर्ड फ़ैसला करता है कि अब वो दूसरे एंट्स को उनकी नींद से उठा कर उन्हें ले चलेगा एक भयंकर युद्ध की तरफ़ !
आयज़ेंगार्ड के पेड़ों को बचाने, सरुमन को हराने!
देर दोपहर , पश्चिम के पहाड़ों की ओर जाते सूरज की किरणें बादलों को भेदते हुए ज़मीन पे गिर रही थी। अचानक, सब चुप था, पूरा जंगल सन्नाटे को सुन रहा था। एंट्स की आवाज़ ओझल हो चुकी थी,इसका क्या मतलब हो सकता है? Bregalad एकदम स्थिर खड़ा था, उसकी विशालकाय काया में तनाव था, एक अजीब सी ऊर्जा थी। *Derdingle* की ओर उत्तर में ताक़ता हुआ, वो खड़ा था ।
(*Derdingle- एंट्स के मिलने की जगह *Bregalad- रोवन पेड़ों की रक्षा करने वाला एक युवा एंट )
अचानक एक संगीतमय गर्जना ने सब कुछ बदल के रख दिया : रा-हूम-राह ! राह में खड़े हुए पेड़ थरथराए और ऐसे झुक गए जैसे तेज़ हवा के थपेड़े उन पर लगातार पड़ रहे हों। एक अद्भुत, अपूर्व जुलूस की लय, ढोल नगाड़ों की गूंजती ध्वनि! धरती का हृदय जैसे धड़क रहा है और अनेकों सवार से मिलकर बनी एक आवाज़, एक भारी, अनुभवी, ऊँची आवाज़, लयबद्ध गीत में युद्ध का आह्वान कर रही है
हम आ रहे हैं, हम आ रहे हैं, ढोल नगाड़ों की गर्जना लिए हम आ रहे हैं! ता -रुंदा -रुंदा रुंदा रम हूम हूम
एंट्स आ रहे हैं, हर कदम के साथ युद्ध के नज़दीक,ऊँची उठती आवाज़ में उठता संगीत
हम आ रहे हैं, हम आ रहे हैं ! शंखनाद करते ढोल पीटते हम आ रहे हैं।
लम्बे लम्बे कदम लिए एंट्स बढ़े चले जा रहे थे। ट्री - बीयर्ड सबको रास्ता दिखाते हुए आगे आगे था, लगभग पचास एंट्स उत्साह से उसके पीछे पीछे चले आ रहे थे। उनकी आँखों में उठती चिंगारियाँ साफ़ दिखती थी , समय का धड़कना, हवा में झूलते उनके लम्बे टहनी नुमा हाथों की लय से बँध गया था।
“हूम, हौम हूम ! ये हम बढ़े चले एक विस्फोट बनकर, आख़िर हम चल पड़े !
जैसे ही ट्री-बियर्ड की नज़र मैरी, पिपिन और Beraglad पर पड़ी
“आओ हमारा साथ दो ! आओ मूट के साथ हो चलो, हम चले आयज़ेंगार्ड की ओर उसे तबाह करने!
(*मूट -एंट्स का समूह, मैरी और पिपिन -हॉबिट प्रजाति के दो युवा )
“हम चले आयज़िगार्ड की ओर!” सभी एंट्स ने हुंकार भरी
क्या हुआ अगर आयज़िगार्ड को पत्थरों और चट्टानों ने ढँक रखा है, क्या हुआ अगर आयज़िगार्ड मज़बूत है, सख़्त है।
हम बढ़े, हम चले, हम बढ़े युद्ध की ओर!
हम दरवाज़े तोड़ेंगे, लोहे को मोड़ेंगे
पेड़ जल रहे हैं डाले टूट रही हैं
आयज़ेंगार्ड की भट्टियाँ जल रही हैं
हम बढ़ रहे हैं युद्ध की ओर
क़यामत की भूमि की ओर, आयज़ेंगार्ड की ओर
ढोल नगाड़ों के साथ युद्ध की ओर !
अद्भुत जीवटता से लबालब गीत गाते हुए एंट्स बढ़ चले दक्षिण की ओर, आयज़ेंगार्ड की ओर!
Bregalad की आँखें चमक रही थी ट्री -बियर्ड के कंधों से कंधा मिला कर चल रहा था, दोनो हॉबिट अब ट्री
बि-यर्ड के कंधो पर सवार थे , गर्व के साथ वो शामिल थे उस संगीतमय जुलूस में।
दोनो हॉबिट सोच रहे थे की बदलाव धीमे धीमे होगा, पर ऐंट्स में इस फुर्तीले बदलाव से वो हथप्रभ थे जैसे बहुत सालों से रुके हुए पानी ने बाढ़ बन कर बहने का फ़ैसला ले लिया हो। जैसे ही संगीत कुछ देर के लिए रुका और सिर्फ़ एंट्स के बाधते कदमों और झूलते हाथों की आवाज़ हवा में घूम रही थी पिपिन ने ट्री बि यर्ड से पूछा “एंट्स ने बड़ी जल्दी फ़ैसला ले लिया, है ना! “
“जल्दी?” ट्री बियर्ड ने कहा “हाँ! हूम! हाँ! जितना जल्दी मैंने सोचा था उस से भी जल्दी, मैंने सालों से इन्हें इस तरह आवेश में आते हुए नहीं देखा !हम एंट्स को दख़लंदाज़ी पसंद नहीं हूम हूम! हमें तब तक नहीं उकसाया जा सकता जब तक हमारा अस्तित्व ख़तरे में ना हो! साउरौन और समुद्र के मानवों के युद्ध के बाद से कभी जंगल में ये नौबत नहीं आयी की हमें जंगलों को बचाने के लिए युद्ध पे निकलना पड़े! एल्विश, ऐंटिश और इंसानों की भाषा में ऐसे कोई शब्द नहीं जो सरुमन की इस हरकत को बयान कर सके! सरुमन की बर्बादी का समय आ गया है!
“क्या तुम वाक़ई आयज़ेंगार्ड के दरवाज़े तोड़ दोगे!”मैरी ने पूछा
हो, हम, हाँ हम कर सकते हैं, तुम्हें शायद हमारी शक्ति का अंदाज़ा नहीं है ! हम धरती के हड्डियों से बने हैं, जितनी आसानी से पेड़ों को उनकी जड़ों से उखाड़ा जा सकता है उतनी ही आसानी से हम चट्टानों को चकनाचूर कर सकते हैं! बल्कि और जल्दी, एक झटके में। जब तक कोई हमें कुल्हाड़ी से ना काटे, या जादू के इस्तेमाल से हमें जलाने की कोशिश ना करे, हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, हम आयज़ेंगार्ड को नष्ट कर देंगे, उसकी रक्षा करने वाली ऊँची दीवारों को नेस्तनाबूत कर देंगे।
ट्री बियर्ड कुछ समय बाद शांत हो गया, पिपिन ने देखा कि उसकी बूढ़ी झुर्री दार भौहें झुकी हुयी थी, ट्री-बियर्ड की आँखें उदास थी पर निराश नहीं, उन आँखों में एक हरी रोशनी की चमक दिखायी दी जो ट्री बियर्ड के विचारों के अंधे कुएँ में बहुत गहरा उतर गयी। उसने अपनी आँखें आसमान पे जमायी और अपने साथियों को चेताते हुआ कहा “ ये जानते हुए भी की हम अपनी मृत्यु की तरफ़ बढ़ रहे हैं, हम चलेंगे, आगे बढ़ेंगे! एंट्स का आख़री जुलूस आगे बढ़ेगा। कुछ नहीं कर के मरे, इस से बेहतर है कुछ कर के मरेंगे ! और एंट्स के इस जुलूस को एक गीत की ज़रूरत है। जंगलों को पेड़ों की ज़रूरत है!
आयज़ेंगॉर्ड के उप्पर फैले आसमान में एक लम्बी रात छाने वाले थी।
हो हूम हम
रा रूम रम
हो हो
हम चले !
पिपिन ने पलट कर देखा तो, एंट्स की संख्या बढ़ते ही जा रही थी।फ़ैनगौर्न का जंगल जाग चुका था ,दूर तक फैले ख़ाली मैदानों में जंगल एक लय में आगे बढ़ रहा था, अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए पेड़ पहाड़ों पे चढ़े जा रहे थे, पिपिन नींद, स्वप्न और यथार्थ में अंतर नहीं कर पा रहा था, विशालकाय पेड़ बिना रुके, बिना थके बस चले जा रहे थे।
एक रंगहीन शाम चुप चाप सो गयी
संगीत थम चुका था, रात का सन्नाटा चारों ओर फैला था, पत्तियों की आवाज़ें और पेड़ों के पैरों तले हिलती धरती की कम्पन! बस यही था , ऊँचायी से अब वो देख पा रहे थे,
पर्वतों की शृंखला का अंत, अंधेरे में चुपी एक घाटी: नान कुरुनिर,
सरुमन की घाटी , उसका साम्राज्य आयज़ेंगार्ड
आयज़ेंगॉर्ड के उप्पर फैले आसमान में एक लम्बी रात छाने वाले थी।
हो हम हो हम
रु रूम रु रम !
विशालकाय अद्वितीय एंट्स जबं गीत गाते आगे बढ़ते हैं तो मैं अचंभित रह जाता हुँ अपनी कल्पना में, पेड़ों का एक समूह युद्ध के लिए निकल पड़ा है, उनके उठते भारी कदमों की कम्पन, हिलती शाखाओं पे सरसराती पत्तियाँ, जंगलों में उठते नारे सुनकर लौटता हूँ एक सवाल की तरफ़ कि क्या हम प्रक्रति के बारे में सब क़ुछ जान चुके हैं, कुछ और बाक़ी नहीं रह गया? समुद्र को कितना समझना बाक़ी है, खुले आसमान में अनगिनत रहस्य छुपे हैं!
पेड़ों को कितना जानना बाक़ी रह गया है!
बार बार लगता है कि अभी तो बस एक नयी शुरुआत हुयी है!
“We fail to appreciate that we are living on a tiny island of consciousness within a giant ocean of alien mental states. Just as the spectrums of light and sound are far larger than what we humans can see and hear, so the spectrum of mental states is far larger than what the average human is aware of.”
(युवल नोआह हरारी की किताब “homo dues” से)
होमों सैपीयंज़ की प्रजाति सबसे ज़्यादा इवॉल्व्ड और विकसित है, ये केवल हम सबका साझा किया हुआ एक बेतुका भ्रम है! हो सकता है दूसरी प्रजाति के जीव और जानवर भावनाओं को एक अलग भाषा के द्वारा खूद को बेहतर व्यक्त कर पाते होंगे।
Vampire चमगादड़ों का झुंड जब रात में अपनी गुफा से बाहर निकलता है तो हर रात ऐसा नहीं होता की हर चमगादड़ को शिकार मिल जाए, ऐसे भूखे चमगादड़ अपना पेट भरने के लिए अपने साथियों से खून उधार ले लेते हैं, और जब उनकी मदद करने की बारी आती हैं तो क़र्ज़ लिया हुआ, उतना ही खून वापस उसी चमगादड़ को लौटाते हैं, बिना ब्याज के।
व्हेल मछली और होमों सैपीयंज़, मस्तिष्क में लिंबिक सिस्टम नाम के एक ख़ास हिस्से में असंख्य जटिल भावनाओं को महसूस करते हैं, पर व्हेलों के लिंबिक सिस्टम में एक और हिस्सा होता है जो होमों सैपीयंज़ में नहीं पाया जाता, हो सकता है उस हिस्से में व्हेल हमसे बेहतर और ज़्यादा गहराई के साथ अपने वातावरण और भावनाओं को महसूस कर पाती होंगी।
व्हेल एक दूसरे को सौ किलॉमेटर की दूरी से सुन सकती हैं, हर व्हेल के पास अपना एक ख़ास संगीत होता है जिसमें हमारी समझ के परे लय और एक अद्भुत पैटर्न होता है, उसे दूसरी व्हेल ही समझ पाती है।
बाख और मोत्ज़ार्ट अगर उस संगीत को सुनते तो शायद हथप्रभ रह जाते।
इनका संगीत एक ख़ास फ़्रीक्वन्सी पे घंटो जारी रहता है जिसे दूसरी व्हेल imporvise कर के अपना लेती है। वैज्ञानिक सालों से इन धुनों का विश्लेषण कर रहे हैं! पर आज तक कोई ये नहीं जान पाया की एक व्हेल क्या और कितना महसूस करती है!
एक चमगादड़ की दुनिया कैसे दिखती है? चमगादड़ ईको लोकेशन के इस्तेमाल से पेड़ों के बीच, तेज़ रफ़्तार से घूमते हुए उसकी दुनिया हम से भी बेहतर और ज़्यादा बारीकी से देख सकती है।
एक समय था जब पेड़ों को जीवित भी नहीं माना जाता था, ना कोई ये मानता था कि उन्हें दर्द महसूस होता है!
धीरे धीरे उन लोगों के मन में कुछ ख़ास सवाल उपजे जो दूसरे से ज़्यादा दुनिया को देखना, समझना और सुनना चाहते हैं
क्या पेड़ों की छुपी हुयी ज़िंदगी होती है ?
क्या पेड़ आपस में बात कर सकते हैं?
क्या पेड़ सुन सकते हैं?
क्या पेड़ ख़ुद की रक्षा कर सकते हैं?
क्या पेड़ भी एक दूसरे का ख़याल रखते हैं?
लौटते हैं एक किताब की तरफ़ “ the hidden life of trees” इस किताब में वाक़ई पेड़ों की छुपी हुयी ज़िंदगी रहती है।
जर्मन फ़ोरेस्टर और लेखक PETER WOHLLEBEN लिखते हैं पेड़ों की भाषा,उनकी धीमी ज़िंदगी और उनकी संवेदनशीलता पर
पेड़ों की भाषा :
लगभग चार दशक पहले अफ़्रीकन सवाना में वैज्ञानिकों ने देखा की ज़िराफ़ों के झुंड ने अकासिया/ इज़रायली बबूल की पत्तियों को खाना शुरू ही किया था, मिनटों के भीतर ही बबूल की पत्तियों में ज़हरीले रसायन आ गए थे जिस से उसका स्वाद कढ़वा हो गया, ये बबूल की ख़ुद को बचाने की एक कारगर तकनीक थी। ज़िराफ़ ये भाँप कर आगे के पेड़ों की ओर बढ़ चले, पड़ोसी पेड़ों ने भी यही तरीक़ा अपनाया और जिराफ़ का झुंड वहाँ से आगे बढ़ गया। पर ज़िराफ़ आने वाले हैं, इस बात का पता पड़ोसी पेड़ों को भी चल गया!
बबूल ने साथी पेड़ों को चेताने के लिए एथीलीन गैस का इस्तेमाल किया था , जैसे ही पड़ोस के बबूल को ये पता चला कि उसकी पत्तियों को ख़तरा है उसने भी अपनी पत्तियों में सिग्नल भेज दिया, और उनका स्वाद बदल गया।
जैसे ही एक कैटर्पिलर या कोई और जीव पेड़ों की पत्तियों का चबाना शुरू करता है ,पेड़ों को दर्द महसूस होता है। जिन पत्तियों पे हमला किया गया है उनके आस पास के टिशू बदलने लगते हैं और मदद के लिए इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजते हैं, जैसे हमें दर्द कुछ milliseconds में ही महसूस हो जाता है, धीमी ज़िंदगी जीने वाले पेड़ों में ये बहुत धीमी गति से महसूस होता है
जब पत्तियों को कोई कीड़ा खा रहा होता है, तब पेड़ एक ख़ास तरह की गंध छोड़ते हैं ये गंध उन्ही शिकारी कीड़ों को या पैरासाईट को बुलाती है जो पत्तियों पर हमला करने वाले कीड़ों को खा सकें, ये निमंत्रण निर्भर करता है हमलावर कीड़ों के सलाइवा पर !
उदाहरण के लिए देवदार के पेड़ कैटर्पिलर से बचने के लिए एक ख़ास क़िस्म के पैरासाईट को बुलाते हैं जो कैटर्पिलर के अंदर घुसकर उसे धीरे धीरे पूरा खा जाता है! कौन सा सलाइवा किस कीड़े का है ,यह पहचानने की पेड़ों की क्षमता ये बताती है की उन के पास स्वाद ग्रंथियाँ भी होती हैं।
ज़मीन के नीचे फैले, आपस में उलझे जड़ों के नेट्वर्क उनकी canopy से भी ज़्यादा क्षेत्र में फैले होते हैं ।
इस जादुई नेट्वर्क को वुड वाइड वेब कहा जाता है
पेड़ सामाजिक जीव हैं,
एक स्वस्थ पेड़, बीमार पेड़ को जड़ो से खाना पहुँचाता है, उसका ख़याल रखता है।
“A tree is as good as the forrest that surrounds it”
पेड़ जड़ो से, इलेक्ट्रिक सिग्नल से और गैस की महक से बात चीत तो करते ही हैं पर क्या पेड़ सुन सकते हैं?
जब शोधकर्ताओं ने अंकुरित हुए बीजों को एक लैब में रखा तो measuring instrument ने जड़ों को
220 hz की frequency पे चटखते हुए सुना
पर ये तो एक साधारण आवाज़ भी हो सकती है, लकड़ी को जलाओ तो भी चटखने की आवाज़ आती है!
और ध्यान देने पर कुछ नया पता चला
जब भी अंकुरित बीजों को 220 hz की फ़्रीक्वन्सी पे एक आवाज़ सुनायी गयी, तो छोटे छोटे पौधों ने अपनी दिशा बदल कर धीरे धीरे उस ओर घूम गए जहां से आवाज़ आ रही थी।
ये नन्ही घाँस और पौधे आवाज़ को रजिस्टर कर रहे थे।
क्या पौधे ध्वनि को समझते हैं? सुनते हैं!
मै उम्मीद करता हुँ कि कभी पेड़ों को बात करता हुआ सुन पाऊँ और वो मुझे सुन पाएँ! मैं उन्हें गले लगा के धन्यवाद ज़रूर कहूँगा, और आशा करूँगा की वो बदले में एक छोटी सी डाल मेरे कंधों पर भी टिका दें ।
शायद कभी देख पाऊँ उन्हें चलता हुआ जुलूस में या कभी मिलूँ morning walk पे
केदारनाथ सिंह की इस कविता में वो बरगद को घर बुलाना चाहते हैं!
नए शहर में बरगद
जैसे मुझे जानता हो बरसों से
देखो, उस दढ़ियल बरगद को देखो
मुझे देखा
तो कैसे लपका चला आ रहा है
मेरी तरफ
पर अफसोस
कि चाय के लिए
मैं उसे घर नहीं ले जा सकता।
source :
book:
1.Lord of the rings -PART 2 -Dark Tower
chapter 4 Tree-beard and chapter 9 Flotsam and Jetsam
2. Homo Deus by Yuval Noah Harari
chapter 6-The modern Covenant
chapter -10 - The. ocean of Consciousness
3.The Hidden life of trees by Peter Wohlleben
chapter 2 -The language of trees
Hindi translation: Akshat Pathak
Adbhoot!