ओ पृथ्वी! सुनो...
जंगल अपनी जड़ों में लौट रहे हैं
पेड़, सिकुड़ कर अपने-अपने बीज में
बीज के भीतर फ़िर भी कहीं किसी कोने में
थोड़ी जगह बची रह जाती है
वो पूछता है अनंत रिक्तता में घूमती पृथ्वी से
क्या तुम्हें भी थोड़ी जगह चाहिए ?
इस कठिन समय में
क्या तुम नहीं लौटोगी मुझमें ?
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