प्रेम में दुनिया
खिड़कियों के बाहर सुनहरे आसमान में डूबते सूरज के ठीक सामने से होकर झुंड में गुज़र रही हैं विशालकाय मछलियाँ व्हेल मछलियाँ!
इस बात का बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं है मुझे कि मेरे बिना बताए, मुझसे कई सौ मील दूर बैठे हुए भी तुम इस बात का अंदेशा हो जाता है कि मैं ठीक नहीं हूँ!
अचानक फ़ोन कर के पूछ लेती हो “कुछ हुआ क्या?”
“नहीं नहीं सब ठीक है!” मैं बुदबुदाता हूँ यह दर्शाते हुए कि “कि कुछ भी ठीक नहीं, पर मैं तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहता पर फिर भी हो सकते तो….”
यह सुनकर तुम और आश्वस्त हो जाती हो कि कुछ ठीक नहीं है!
“मैं मिलने आ जाती हूँ!” कहकर तुम रुकती हो
“मिल लेने से क्या होगा!” सोच कर मैं तुम्हें मना ही करने वाला होता हूँ कि अचानक लगता है की “सब कुछ सिर्फ़ मिल लेने से ही ठीक हो जाएगा”
तुम्हारा होना मुझे यथार्थ से एक फंतासी की तरफ़ ले जाएगा जहां ग्रैविटी प्रेम से संचारित है!
प्रेम के कम होते ही लोग आकाश की ओर रुख़ करेंगे और प्रेम के वापस आते ही वो धीरे धीरे नीचे लौटने लगेंगे यह जानते हुए कि इस दुनिया में असीमित त्रासदी झेलनी होगी पर वो अकेले नहीं होंगे
उनके साथ कोई होगा! सीमित समय के लिए जिस से वो टूटकर प्रेम कर सकें
खिड़कियों के बाहर
सुनहरे आसमान में
डूबते सूरज के ठीक सामने से होकर
झुंड में गुज़र रही हैं
विशालकाय मछलियाँ
व्हेल मछलियाँ!
बिस्तर पे बैठे-बैठे हमारे पैरों की
स्थिर उँगलियाँ
छू रही हैं नीचे सोए हुए पानी को
कई सौ साल पुराने कछुओं का एक जोड़ा उप्पर आता है साँस लेने
पीठ पर उनके उग आया है
जीवन से लबालब भरा एक द्वीप
पीले पलाश में फँसे रह गए हैं बादल
रेड वुड की टहनियों में चाँद लटका है जिसकी परिक्रमा कर रहा है एक
फ़ीनिक्स
फ़टी एढ़ियों को स्पर्श करता हुआ
गुज़र जाता है
कछुओं की पीठ पे
उगा है एक गुलमोहर,
पैरों की मैली दरारों में अटके रह
जाते हैं झरबेरा के फूल
स्पर्श में सम्भावनाएँ हैं
सम्भावना में अनगिनत यथार्थ छुपे हैं
यथार्थ में एक अदृश्य कल्पना रहती है
कल्पना में लिप्त है हमारा एक
अनछुआ जीवन जिसे अभी जिया
जाना बाक़ी है
जहाँ एक अनभिज्ञ स्मृति की
सम्भावना अभी बाक़ी है
बचपन की ओर लौटना अभी बाक़ी है
कमरे में झील का धुंधला भ्रम है
झील में कमरे का !
जीवन में प्रेम का प्रतिबिम्ब है
प्रेम में जीवन का !
नीली चादर पे नृत्य करते आगे बढ़ता हुआ
दर्जनों फ़्लेमिंगो का एक गुलाबी झुंड
तुम्हारी कलाइयों के नीचे से होकर
गुज़रा है अभी-अभी ,
बढ़ रहा तुम्हारे खुले बालों से होकर
बहती एक काली नदी की ओर,
धूप के टुकड़े उनपर गिरकर बन जाते हैं अज्ञात ऊष्मा को अपने भीतर
समेटे झिलमिल तारे
जब फ़्लमिंगो चोंच डुबाये उन तारों को ढूँढते हैं पानी के अंदर
तब वे आकाशगंगा में विचरण करते
यात्री बन जाते हैं
जो बहुत दूर आए हैं पृथ्वी को छोड़ कर
खोज रहे हैं निरंतर जिजीविषा
एक दिन चोंच में दबा के लौट जाएँगे तारों को
लटकते रहेंगे बाहर ब्रम्हाण्ड की
समूची स्मृति में हमारे इतिहास के
महीन तुच्छ रेशे
जिनसे समुद्र में टपकते रहेगी एक
ध्वनि
जिसे सुनेंगे
सभी पेड़ पत्थर और पठार
मैं तुम्हारा नाम पुकारता हुँ
तुम्हें
बुलाने के लिए
और कई प्रेम पत्र एक साथ गूंजते हैं दीवार पे बसे पहाड़ों में!
समय और स्पेस के कंस्ट्रक्ट को तोड़ते हुए
तर्क और कारणों के आयाम को
भेदते हुए
वे गूंजते हुए पहुँचते हैं उस बच्चे की हथेली पे जिस पर अभी अभी
एक घायल
गौरैया ने आख़री साँस ली है!
तुम उठ कर बग़ल के कमरे में
जाकर बैठी जाती हो
जहाँ खिड़की से एक हाथ दूर घूमता रहता है
भूला दिया गया एक बर्फीला ग्रह
art by Giussi Innico