तब तक बैठे रहना मेरे पास
मेरे कंधे पे एक पुरानी खूँटी हैं
तुम सब अपने दुःख
अपनी चिन्ताएँ
अपनी वेदनाएँ
जो भी लगे
एक थैली में जमा कर
उसी पे टांग देना
अकेले कहीं दूर चुप चाप सुनूँगा
समीप से तुम्हारे रुदन
अकेले बारी बारी, धीरे धीरे सह लूँगा तुम्हारे दुःख
पर लौटूँगा तुम्हारे पास एक दिन
जब एक बच्चा मुझे बताएगा कि
दिन भर
फूलों पर मँडराने के बाद
शाम होते-होते कुछ
तितलियाँ
खुले मैदानों में चली जाती हैं
मरने के लिए
तुम्हारे कंधों पर तब टांग के वही थैली
बैठ जाऊँगा
तुम मुझे सुन ना तब तक
जब तक मैं रोऊँ
तब तक जब तक
मन तितली की तरह हल्का नहीं हो जाता ।
तब तक बैठे रहना मेरे पास
art by Tommy Parker
poem by Akshat Pathak