कचरु की बीमारी
a short story: डाक साब ने कचरु की पीठ को अलग अलग जगह से दबा कर देखा, सांसें भी सुनी।उन्हें लगा जैसे दुनिया की सबसे कठोर और कमज़ोर सतह “कचरु की पीठ” ही है ।
डाक साब ने अपना स्टेथोस्कोप कचरु की छाती पे रखा और उसकी धड़कन सुनने लगे, बग़ल में, बेंच पे बैठी बिमला के मुँह से शब्द धड़कन के वेग से भी ज़्यादा तेज़ी से एक एक कर बाहर निकले जा रहे थे, जैसे वो सामने बैठे डाक साब को नहीं ख़ुद को सब बता रही हो।
“ना कुछ खाता है ना पीता है,ना बोलता है । पहले जब रोज़ पी के तमासा करता था तब मैंईच झगड़ा करती थी , अब इसको गिलास भर के कच्ची भी खुदई पिलाती हूँ , पर ज़ुबान इतनी भी नहीं हिलती की कम से कम थूक गटक ले,बस दिन भर बैठा खिड़की से खेत देखता रहे,ना जाने का है खेत में,बंजर के बंजर!!”
डाक साब उठे,कचरु को क़मीज़ उप्पर उठाने के लिए कहा ,पर कचरु अनभिज्ञ सा, घिसी हुयी चप्पल को अंगूठे के मैले नाखून से कुरेदता बैठा रहा, डाक साब खियाइ हुयी क़मीज़ पे तीन गोल गड्ढों को देखने लगे, धूप में जली हुयी पीठ छुपी हुयी दिखायी दी।
बिमला ने बेंच पे बैठे बैठे आगे झुक कर कचरु की क़मीज़ उप्पर उठायी और कंधे की हड्डी तक चढ़ा दी ,कचरु की पसलियाँ साफ़ दिखती थी जैसे सूखे बैल का कंकाल हो ,जिसने जीते जी ख़ूब मेहनत की हो और मरने के बाद गिद्धों के झुंडों को दावत का बुलव्वा भेजा हो। डाक साब ने कचरु की पीठ को अलग अलग जगह से दबा कर देखा, सांसें भी सुनी।उन्हें लगा जैसे दुनिया की सबसे कठोर और कमज़ोर सतह “कचरु की पीठ” ही है ।
“परसों रात तो डाक बाबू, ये माँ -बहन की गाली बकने लगा, हम तो खुस हो गए सुनकर, पड़े पड़े ही देवी मैय्या को मनाए की चलो कुछ बोला तो”
डाक बाबू ने अचरज से बिमला की ओर देखा ,
“अब सन्नाटे से तो जेई भला की गाली ही बके! है की नहीं डाक साब !"
उठ के देखी तो नींद में हाथ हवा में लहर रहे हैं,बैलों को गाली बकते बकते हकाल रहा था। इस के पास गयी,उठायी इसको तो उठा और भागा बाहर, पीछे जाके देखी तो ठूँठ के पास बैठकर रोए ख़ूब”
“ठूँठ के पास?” डॉक्टर ने कोरे काग़ज़ पे दवाई के नाम लिखते हुए पूछा।
“बैल वहीं बँधे रहते थे ना डाक साब”
“तो कहाँ गए बैल ?”
बिमला एक क्षण को रुकी “ अरे ! जभि तो बताया आपको,वोई तो, जोड़ा बेच के आया ना पिछले सोमवार के बैल बाज़ार मे, बदले में जो नोट लेकर आया,वो अगलेई दिन सरकार ने बंद कर दी,उसके अगले दिन इसने बोलना बंद कर दिया”
बिमला ने कचरु की क़मीज़ ठीक की, फिर कमर में खुसी रुमाल की एक पोटली निकाली।
“हम बोले की ऐसे कैसे कोई नहीं लेगा नोट ! नेता वेता तो कुछ भी बकें हैं, डाक बाबू पढ़े लिखे हैं,समझदार हैं, ऐसे कोई नोट बंद हो जाएँ क्या? हैं! ,आप लेंगे ना डाक साब,ये देखो हज्जार -हज्जार के छः नोट हैं ...
ले लेंगे ना आप?”
बिमला की आवाज़ में अचानक एक कम्पन सुनायी दी !
“रहने दो,बाद में दे देना”
डाक साब ने अगले मरीज़ को अंदर आने का इशारा किया,कचरु ने धीरे सी आँख ऊठा कर डाक साब को देखा और आँख मूँद कर एक छन के लिए गर्दन झुकायी, कचरु का आभार डाक साब के टेबल पे तैरता रहा, वो जानता था की ये दवाइयाँ काम नहीं करेंगी क्योंकि किसान की बीमारी दवाइयों से ठीक नहीं होती ,वो एक अवस्था है ।
पर्ची पे यदि डाक साब ने गीली मिट्टी की महक, फ़सलों में लहर बन कर घूमती हवा और बैलों की घंटी की आवाज़ ये लिख दिया होता तो बिमला कम से कम क़चरु को एक झूठी उम्मीद बाँध देती, बैलों के जाने का शोक कचरु मौन से मना रहा था और बिमला शब्दों से। बिमला ने पूरी ताक़त लगाकर कचरु को उठाया और बाहर ले गयी ।
photograph by Akshat Pathak
short story by Akshat Pathak
हृदय स्पर्शी.! बहुत खूब